कैसे जीना भा गया
दिल में जब तेरा खयाल आता है,
बस एक ही सवाल आता है,
न तुम्हें सोच पाती हूँ,
और न लिख पाती हूँ,
तुम्हारी यादें अब भी आती हैं,
दर्द के लहरों से टकरा लौट जाती हैं,
महसूस करना चाहता है तुम्हें दिल,
पर पहले ही तड़प उठता है,
उस दर्द की सिहरन से,
जिसे दिल ने महसूस किया है,
काश तुम समझ पाते,
दिल की अनकही बातों को,
हो सके तो महसूस करना,
मेरी तड़पती रातों को,
जाते-जाते ये तो बता दो,
कैसे फरेब करना तुम्हें आ गया,
भुला कर मुझे तुम्हें,
कैसे जीना भा गया।।
मधुमिता घोष “प्रिणा”