शराब पर कविता

शराब पर कविता

कुण्डलिया छंद

पीना छोड़ शराब को,इससे है नुकसान।
तन मन खूब खराब हो,बीमारी की खान।।
बीमारी की खान,रखो अपने सुध बुध को।
खुश हो घर परिवार,रोक लेना तुम खुद को।
छोड़ शराबी यार,अगर बढ़िया से जीना।
नशा पान बेकार,कभी मत इसको पीना।।

मधुशाला दर छोड़ दे,इससे तन बर्बाद।
पीते आज शराब जो,पछतावा हो बाद।।
पछतावा हो बाद,मिले जब घर में ठोकर।
पत्नी बच्चे दूर,करे क्या सबको खोकर।।
रहो नशे से दूर,लगा कर इच्छा-ताला।
अब तो जाना छोड़,नशा बेचे मधुशाला।।

राजकिशोर धिरही

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