Author: कविता बहार

  • जब होगा महक मिलन

    जब होगा महक मिलन

    मिला किताब में सूखा गलाब,
    देख फिर  ताजगी सी आई।

    याद आ गया वो सारा मंजर
    फिर खुद से खुद ही शरमाई।

    वो हसीन पल थे खुशियों भरा
    साज बजा ज्यो रागिनी आई।

    धड़कने दिल  की हुई बेकाबू
    गात ने ली फिर से अंगड़ाई।

    अब जब होगा “महक” मिलन
    सोंच अंग में सिहरन भर आई।

      मधु गुप्ता “महक”

  • आना कभी गाँव में – बलवंत सिंह हाड़ा

    आना कभी गाँव में – बलवंत सिंह हाड़ा

    ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्रायः गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्रायः बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं। परम्परागत रूप से गाँवों में शहरों की अपेक्षा कम सुविधाएँ होती हैं। विकिपीडिया

    आना कभी गाँव में – बलवंत सिंह हाड़ा

    आना कभी गाँव में - बलवंत सिंह हाड़ा
    गाँव पर हिंदी कविता

    धरती के आंगन मे
    अंबर की  छाँव में
    आना कभी गाँव में।।


    बरगद की डाल पे
    गाँव की चौपाल पे
    खुशी के आँगन में
    झुला झुलने को
    आना कभी गाँव में।।


    संध्या के गीत सुनने
    लोक कलाए देखने
    दादी की कहानी सुनने
    आना कभी गाँव में।।


    खेतों की मेड़ पे
    सरसों के खेत पे
    हरियाली देखने
    आना कभी गाँव में।।


    सावन के झुले कभी
    कोयल की बोली मीठी
    बरखा रानी की धारा
    भोजन की थाल पे
    आना कभी गाँव में।।


    होली के रंग खेलने
    दीवाली के दीप जलाने
    राखी पे धागा बाँधने
    ईद की सेवईयाँ चखने
    शादी की धूम देखने
    आना कभी गाँव में।।


    बेहरूपिया का रुप देखने
    बच्चों की धमाल देखने
    चाय की मनावर देखने
    बलवंत को मिलने
    आना कभी गाँव में।।

    बलवंतसिंह हाड़ा

  • गरीबी पर कविता

    नज़र अंदाज़ करते हैं गरीबी को

    गरीबी पर कविता
    कविता संग्रह

    नज़र अंदाज़ करते हैं गरीबी को सभी अब तो।
    भुलाकर के दया ममता सधा स्वारथ रहे अब तो।

    अहं में फूल कर चलता कभी नीचे नहीं देखा,
    मिले जब सीख दुनियाँ में लगे ठोकर कभी अब तो।

    बदल देता नज़ारा है सुई जब वक्त की घूमे,
    भले कितना करें अफ़सोस समय लौटे नहीं अब तो।

    गुज़ारा कर गरीबी में समझता पीर दुखियों की।
    लगा कर के गले उनको दिखाता विकलता अब तो। 

    सदा जीवन नहीं रहता लगो कुछ नेक कामों में,
    भरोसा कब कहाँ रहता मिटे पल में निशां अब तो।

    पुष्पाशर्मा”कुसुम”

  • विदाई गीत /कविता

    तुम रुक न सको

    विदाई गीत /कविता

    सौजन्य-अरुणा श्रीमाली

    तुम रुक न सको तो जाओ, तुम जाओ..

    तुम रुक न सको तो जाओ, तुम जाओ…

    पढ़-लिख कर विश्राम न करना

    कर्म-क्षेत्र में आगे बढ़ना ।

    यही कामना आज हमारी,

    तुम्हें इसे है पूरी करना ।

    अपना भविष्य बनाओ, तुम जाओ ॥

    विदा कर रहे आज तुम्हें हम,

    हृदय हमारा भर-भर आता

    आँखें भी तो नम हैं तुम्हारी,

    उनसे टपका अश्रु बताता,

    दिल को तुम समझाओ, तुम जाओ ॥

    त अमिट स्त्रोत प्रेरणा के तुम जो

    छोड़ चले हो पीछे अपने।

    हम इन पर ही सदा चलेंगे,

    नहीं असत्य होंगे ये सपने

    मत हताश हो जाओ, तुम जाओ ॥

    सच्चाई किसे कब कहाँ

    सौजन्य-अरुणा श्रीमाली

    सच्चाई किसे कब कहाँ याद आई।

    मिलन में छुपी है विदा की जुदाई ।।

    तनों की जुदाई विदाई नहीं है,

    हृदय की जुदाई विदाई सही है।

    फिर भी न जाने क्यूं आती रुलाई ।

    नदी-नाव का योग आया गंवाया।

    गया हाथ से कब कहाँ जान पाया।

    अचानक विदा की घड़ी आज आई ॥

    कहाँ जान पाये कि पाथेय क्या दे ?

    उपादेयता को उपादेय क्या दे ?

    सिवा आँसुओं के कहाँ भेंट पाई ॥

    न सोचा कभी था

    ० सौजन्य-दत्ता क्षीरसागर

    न सोचा कभी था, इस दिन के आने का ।

    गुरुवर! आपकी विदाई में समारोह मनाने का ।।

    बदले सात महीनों में औ’ महीने दिनों में ।

    विश्वास नहीं होता, कभी इस क्षण के आने का ।

    आपके नेह-सागर में, हिलोरें लेते रहे हम

    कैसे सह सकेंगे, किनारे कर दिये जाने का ।।

    ज्ञान मान आन के पथ पर चलने का ।

    उपदेश सत्य के साथ, सदा हमारे साथ रहने का ।

    खबर सुन विदा की, प्राणों के छटपटाने का ।

    बिना आपके, संसार में दिन गुजारने का ।।

    भले ही आप होंगे विदा, स्कूल इस भवन से,

    पर भूल के भी मत सोचना, मन से विदा होने का ।।

    कैसे विदा करें हम

    कैसे विदा करें हम, मन मानता नहीं है।

    लेकिन करें भी क्या अब, वश भी तो कुछ नहीं है ।

    कैसे विदा करें हम….

    धन्य भाग्य थे हमारे, जिस दिन पधारे थे तुम ।

    तकदीर अब हमारी, रूठी ही जा रही है ।

    कैसे विदा करें हम….

    क्यों छोड़ जा रहे हो, मझधार में बिलखते ।

    करुणा के सिन्धु ऐसा, अनुचित उचित नहीं है ।

    कैसे विदा करें हम….

    गुरु दिव्य ज्ञानमय तुम, अन्धेरे दिल के दीपक ।

    अज्ञान में भटकते, क्यों छोड़ जा रहे हो ।।

    कैसे विदा करें हम….

    कैसा समय सुहाना छाया था सब के दिल में।

    लेकिन ये घड़ियाँ, निर्दय बीती क्यों जा रही है ।।

    कैसे विदा करें हम….

    आनन्द के कल्प तरुवर, फुला फला हमारे ।

    गुरु आपके बिना पल, वर्षों समान ही है ।

    कैसे विदा करें हम….

  • स्वागत समारोह गीत /कविता

    स्वागत समारोह गीत /कविता

    [1]

    उल्लास भरे दिल से

    ० सौजन्य-प्रतिभा गोयल

    उल्लास भरे दिल से हम स्वागत करते हैं

    आंगन में बहार आई, औ’फूल बरसते हैं।

    उल्लास भरे दिल से…..

    ल पलकों से है प्रियवर, यह पंथ हमारा है।

    अरमान भरे दिल में, हम खुशियाँ मनाते हैं ।।

    उल्लास भरे दिल से.

    घड़ियाँ ये सुहानी हैं, खुशियों का आलम है ।

    श्रद्धा के फूलों से हम पूजन करते हैं।

    उल्लास भरे दिल से…

    उम्मीद के धागों से, पलकों को सँवारा है।

    टूटे ना कभी धागा, यकीन हम करते है।

    उल्लास भरे दिल से

    आंचल में अंबर के जब तक सूरज-चाँद-सितारे हैं।

    नए खून में जब तक दम है, तब तक हम अंगारे हैं।

    [2]

    अभिनन्दन स्वागत सत्कार

    ० सौजन्य-प्रतिभा गोयल

    अभिनन्दन स्वागत सत्कार…..

    नई कलियों से आएगी

    प्रगति की नई बहार ।

    अभिनन्दन स्वागत सत्कार…..

    पूर्व दिशा में आया सूरज,

    स्वर्णिम किरणें लेकर ।

    पंछी चहके हैं स्वागत में

    गूँजे युक्त मधुर स्वर ।

    नवप्रभात की नई किरण में

    होगा स्वप्न साकार ।।

    अभिनन्दन स्वागत सत्कार…..

    नील गगन में उड़ते बादल

    स्वागत करते अपार ।

    अपने आंचल के जल में

    ली अंजलि भर बरसाये ।

    ये मोती ही लाएँगे अब

    नवगति औ’ नव विचार ॥

    अभिनन्दन स्वागत सत्कार…..

    हिमगिरी का हृदय पिघला

    बन कर निर्मल धारा।

    मरुभूमि में अंकुर फूटे

    सरसाया थल सारा।

    नव युग के नव अंकुर

    रचें भावी नव संसार ||

    अभिनन्दन स्वागत सत्कार……..

    [3]

    भल आया, भूल आया

    0 सौजन्य — प्रतिभा गोयल

    भल आया, भूल आया

    भल आया, मेहमान अठे रे,

    एक बधावो म्हे गास्यां जी।

    आता जाता अठे सो रईजो,

    भूल मती ना जाईजो। ओ…..

    क याद करा जद दौड़ियां दौड़ियां,

    बेगां बेगा आईजो ॥

    भल आया, भूल आया…….

    लो फूलड़ां रो हार पेरावां

    गढ़े मन री आशा। ओ…

    घणी करां मुनवारां थाणी

    घणी करा अभिलाषा ॥

    कि भल आया, भूल आया……

    फल-फूलण री दो आशीसां

    म्हे थासूं आ चावां । ओ…..

    धिन घड़ी धिन भाग सरावां

    आगे बढ़ता जावां ॥ ओ…

    भल आया, भूल आया….