गुलाबचंद जैसल द्वारा रचित तरक्की की सीढ़ियां सभी भारतीयों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कविता है । आज वह समय आ गया है कि हम तरक्की के असली मायने को समझें।
तरक्की की सीढ़ियां
चलो निकालें नदियों से रवाब* को कि- जल जीवों को जीवन मिलेगा और – हमें स्वच्छ पानी नदियाँ भी बहती रहेंगीं। चलो निकालें घरों से पॉलिथीन कि- गाएँ मारने से बचेंगी नालियाँ फंसने से बचेंगी और हवा- स्वच्छ उड़ेगी जीवन बचेगा। चलो निकालें घरों से कपड़ें जूट का बैग सब्जी, राशन, सामान लाने को कि- पैसे बचेंगे दुकानदार के और हमारे पर्यावरण बचेगा प्रदूषण से- जीवन खुशहाल होगा। चलो निकालें घरों से लोक संस्कृति को कि- सब समझेंगे, बूझेंगे बच्चे, बूढ़े और जवान सुधरेगा समाज माहौल और- हम सब बचा पाएंगे अपनी संस्कृति। चलो निकाले घरों से-मनों से कड़वाहट को की- एक दूसरे से सौहार्द बढ़ेगा प्रेम बढ़ेगा आपस में एक दूसरे के प्रति और- साम्प्रदायिकता समाप्त होगी देश तरक्की की सीढ़ियां चढ़ेगा।
शब्द-संकेत
रवाब-गाद, कचरा
–गुलाब चंद जैसल स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक केंद्रीय विद्यालय हरसिंहपुरा
भारत की पंचायती राज प्रणाली में गाँव या छोटे कस्बे के स्तर पर ग्राम पंचायत या ग्राम सभा होती है जो भारत के स्थानीय स्वशासन का प्रमुख अवयव है। सरपंच, ग्राम सभा का चुना हुआ सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है। प्राचीन काल से ही भारतवर्ष के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में पंचायत का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सार्वजनिक जीवन का प्रत्येक पहलू इसी के द्वारा संचालित होता था।
पंचायत पर कविता
पंचायत के बीच में , ले सच की सौगंध । माँग दिव्य सिंदूर दूँ , थाम रहा मणिबंध ।। थाम रहा मणिबंध , हाथ ये कभी न छोड़ूँ । जो भी हो परिणाम , प्रेम का बंध न तोडूँ ।। कह ननकी कवि तुच्छ , पंच बस करें इनायत ।। प्रेम रहा है जीत , दस्तखत दे पंचायत ।
पंचायत मजबूत जब , सुधरेगा हर गाँव । सपने देखे सुनहरे , रहे सुमत की छाँव ।। रहे सुमत की छाँव , मगर उल्टा है होता । मगरमच्छ घडियाल , पेट भर खाके सोता ।। कह ननकी कवि तुच्छ , बंद कैसे हो रवायत । स्वप्न करे साकार , स्वस्थ हो हर पंचायत ।।
पंचायत निर्णय करे , सुनकर सारे कथ्य । सबकी होती एकमत , सत्य सभी के तथ्य ।। सत्य सभी के तथ्य , बंद हो हर हंगामा । कहीं खुशामदखोर , न पहने शुचिता जामा । कह ननकी कवि तुच्छ , सत्य की रहे सियासत ।। परिवर्तित व्यवहार , मान पाये पंचायत ।।
गौतम बुद्ध एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। इनका जन्म लुंबिनी में हुआ था। 29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गये.
गौतम बुद्ध पर रचना ( विश्व करुणा दिवस विशेष)
शुद्धोधन अनमोल धन,यशोधरा के प्राण। धर्म, कर्म, उपदेशना,जीव मात्र कल्याण।।
नश्वरता संसार की,क्षण भंगुर सुख भोग। गहन हुई अनुभूति ये,दुख के मौलिक रोग।।
जप तप व्रत भी कर लिया,हुआ नहीं मन शांत। जाना,सम्यक् धारणा,रहित करें ये भ्रांत।।
सहज भाव में लीन थे,साखी बस,नहिं शोध। प्रज्ञा की आँखें खुलीं,हुआ सत्य का बोध।।
सत्य-बोध के साथ ही,करुणा बही अपार। निकल पड़े वे विश्व को,देने निर्मल प्यार।।
उनके पथ,पाखंड ने,रचे बहुत षडयंत्र। किन्तु सभी निष्फल हुए,सूरज हुआ स्वतंत्र।।
आजीवन करते रहे, महाभाग परमार्थ। सिद्ध,तथागत ने किया,जीवन का सिद्धार्थ।।
जब कलिंग को काटकर,हारा नृपति अशोक। प्रायश्चित था,बुद्ध के,चरणों का आलोक।।
आज अस्त्र की होड़ है,विस्फोटित है युद्ध। अहंकार में सिरफिरे, नहीं बुलाते बुद्ध।।
समाधान या शांति का,हल है केवल प्रेम। धर्मयुद्ध तब ही कहो,हो मानव का क्षेम।।