Author: कविता बहार

  • बुद्ध जयंती पर कविता

    बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह बैसाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है जिसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। इसी दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था।

    बुद्ध जयंती पर कविता

    गौतम बौद्ध
    गौतम बौद्ध

    सिद्धार्थ!
    ऐसा क्यों ?
    फिर चले गये,
    सत्य, दिव्य-ज्ञान की खोज,
    अपलक राह देखती,
    नि:शब्द खड़ी,
    यशोधरा!

    दुःख,
    दूर कैसे,
    स्वार्थ, संलिप्त माया,
    माटी… माटी, यही ‘जाया’,
    मनुजता रोती पड़ी,
    दीवार बनी,
    ईर्ष्या ।

    आओगे,
    ‘बुद्ध’ बनकर,
    लेकर ‘शांति’ अमृतधारा,
    सींचन हो मरूभूमि पर,
    सृजित पल्लव नवल,
    प्रेम, समर्पण,
    मनुजधर्म।
    शैलेन्द्र कुमार नायक ‘शिशिर’

  • परम प्रेम की शुभ परिभाषा- हिंदी कविता

    परम प्रेम की शुभ परिभाषा -हिंदी कविता

    परम प्रेम की शुभ परिभाषा- हिंदी कविता

    निर्मल मन-मुरली की धुन पर प्रेम गीत गाया जाता है।
    राग-द्वेष से मुक्त हृदय ही,गान दिव्यतम् गा पाता है।।

    सरल,सरल होना है दुर्लभ,
    किन्तु जटिलता बड़ी सरल है।
    सुधा समर्पण से मिलती है,
    अहंकार ही आप गरल है।
    मनोभाव मानव-दानव का, सुख-दुख का होता दाता है…..

    जन्मभूमि जननी की ममता,
    त्याग,प्रेम की अनुपम भाषा।
    नीलकंठ की कथा सुनाती,
    परम प्रेम की शुभ परिभाषा।
    त्राण त्रास से जग को देता,प्रेम जगत् हित का त्राता है।…….

    रवि-शशि की किरणों में ढलता,
    ईश्वर उज्जवल प्रेम तुम्हारा।
    प्रीति बनी पर्जन्य तुम्हारी,
    श्रावण मासी करुणा-धारा।
    प्रेम नहीं याचक होता है,दान-धर्म ही अपनाता है।………

    अगणित वर्णों-पुष्षों वाला,
    सुरभित शोभित यह मधुवन है।
    शोणित,स्वेद कणों से सिंचित,
    सत्य-सुमन विकसित यौवन है।
    प्रेम बिना निष्प्राण जगत् है,जीवन यह ही उपजाता है।

    रेखराम साहू
    बिटकुला / बिलासपुर

  • विश्व धरोहर दिवस पर कविता

    विश्व धरोहर दिवस अथवा विश्व विरासत दिवस, (World Heritage Day) प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाई जा सके।

    poem on world heritage day
    poem on world heritage day

    विश्व धरोहर दिवस पर कविता (18 अप्रैल)

    प्रमुख धरोहर है हमारे,
    पूर्वजों से जो पाए संस्कार।
    इससे ही होता है निर्मित,
    हम सबका ही व्यवहार।

    संस्कारों के साथ संस्कृति,
    यह भी महत्वपूर्ण है भाई।
    आपके अपनों के बीच यह,
    नहीं वह बनने देता खाई।

    स्वतंत्रता जो मिली हमें है,
    इसका बहुत ही मंहगा दाम।
    सेनानियों के बलिदान का,
    इतिहास में लिखा काम।

    संस्कार, संस्कृति और स्वतंत्रता,
    इनका अपना विशेष महत्व है।
    बड़े जतन से इसे संभालें,
    सुख – संतोष के ये प्रमुख तत्व है

    महेन्द्र कुमार गुदवारे,बैतूल

  • हनुमान जी पर छंद कविता

    hanuman hindi poem

    हनुमान जी पर छंद कविता


    सबसे न्यारे, राम दुलारे,
    सब भक्तों के प्यारे हैं |
    घर-घर, द्वारे-द्वारे लगते,
    हनुमत के जयकारे हैं ||

    भक्ति भाव से भक्त पुकारे ,
    अंतर्मन से माने है |
    भक्तों में हैं भक्त बड़े प्रभु,
    सारा जग यह जाने है ||

    हनुमत की लीला इस जग में,
    मोह सभी को लेती है |
    भक्ति भाव मन में जागृत कर,
    सुखदायक फल देती है ||

    पार लगाते नैया सबकी ,
    भक्त शरण जो आते हैं |
    कष्ट सभी कट जाते उनके ,
    मनचाहा फल पाते हैं ||

    हरीश बिष्ट “शतदल”
    रानीखेत उत्तराखण्ड

  • वीणापाणि सरस्वती पर हिंदी में कविता

    यहाँ पर वीणापाणि सरस्वती पर हिंदी में कविता लिखी गयी है जिसमे कवि ने माँ सरस्वती का गुणगान किया है.

    sharde maa
    सरस्वती माँ

    वीणापाणि सरस्वती पर हिंदी में कविता

    हे वीणापाणि माँ सरस्वती
    तुम ज्ञान के सुर पिरोती माँ
    मैं ठहरा अज्ञानी बालक
    तुम तो हो ज्ञान की ज्योति माँ

    स्वागत करूँ मैं तेरा दिल से
    करके हंस सवारी आती माँ
    भाग्य मेरा खुल जाता जो
    तुम मन मंदिर में होती माँ

    श्वेत कमल है आसन तेरा
    श्वेत ही वस्त्र पहनती माँ
    मन का अंधियारा दूर करो
    सुन लो मेरी विनती माँ

    मैं अबोध तेरी शरण में आया
    तुम तो अवगुण हो हरती माँ
    दे दो स्थान चरणों में मुझको
    मैं हूँ कंकड़ तुम मोती माँ

    विद्या बुद्धि बल दे दो मुझको
    छोटा सा हूँ विद्यार्थी माँ
    आओ विराजो जिह्वा पर
    तुम तो हो ममता की मूर्ति माँ

    आरती गाऊँ करूँ वंदना
    बरसा दो अपनी प्रीति माँ
    मुक्ति मार्ग खुल जाता मेरा
    आशीष जो अपना देती माँ

    - आशीष कुमार मोहनिया, कैमूर, बिहार