Author: कविता बहार

  • मन की व्यथा – आशीष कुमार

    मन की व्यथा

    इस निर्मोही दुनिया में
    कूट-कूट कर भरा कपट
    कहाँ फरियाद लेकर जाऊँ मैं
    किसके पास लिखाऊँ रपट

    जिसे भी देखो इस जहाँ में
    भगा देता है मुझे डपट
    शांति नहीं अब इस जीवन में
    कहाँ बुझाऊँ मन की लपट

    जो भी था मेरे पास में
    सबने लिया मुझसे झपट
    रिश्तों की जमा पूँजी में भी
    सबने लगाई मुझे चपत

    कमाई मेरे इस जीवन की
    हुई न मुझ पर खपत
    नोचने को तैयार थे बैठे
    मेरे अपने धूर्त बगुला भगत

    गल रहा निज व्‍यथा में
    छुटकारे की है मेरी जुगत
    हार ना जाऊँ इस जीवन से
    रूठी किस्मत से सब चौपट

    ठुकरा दिया हर एक ने जब
    प्रभु पहुँचा हूँ तुम्हारी चौखट
    कृपा करो हे दीनदयाल
    हर लो मेरी विपदा विकट

    – आशीष कुमार
    माध्यमिक शिक्षक
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • वागेश्वरी वंदना

    वागेश्वरी वंदना

    माँ वीणावादिनी , मां बुद्धिदायिनी
    तव महिमा है अपरंपार
    कर माते तू लोकाद्धार
    तव ममता से जग आलोकित
    ज्योतिर्मय जग जगमग शोभित
    गाता नवगीत संसार………!
    वागेश्वरी , माँ ज्ञानदायिनि ,
    सबको देती बुद्धि, ज्ञान ,
    तव दृग जग का कल्पना द्वार……!
    दृष्टि से सृष्टि आलोकित
    तेज से जगजीवन है शोभित
    तव कृपावश ज्ञान प्रसार…..!
    हे माँ भारती , हे माँ सुरवासिनी ,
    गीत-संगीत, कला विज्ञान
    सर्व मर्म माँ तेरे हाथ
    बढता विज्ञान
    नर छूता आसमान
    मातृकृपा वश साहित्योद्धार…….!
    शारदे , माँ सरस्वती
    तव महिमा है अपरंपार ,
    मनुज करता नित नूतन आविष्कार
    तव कृपावश जग कल्याण……!

    रूपेश कुमार

  • संविधान का मान तिरंगा है

    संविधान का मान तिरंगा है

    तीन रंग से बना हुआ ये
    संविधान का मान तिरंगा है।
    पूरे जग में सबसे न्यारा
    आन बान अरु शान तिरंगा है।।

    जाति पांति के भेद मिटाता
    ये हम सबकी करता रखवाली।
    तीन रंग इसके अंदर है
    लहराता ये तब बजती ताली।।
    लोकतंत्र का है प्रतीक ये
    न्याय दिलाता जान तिरंगा है।।
    तीन रंग से बना हुआ ये,
    संविधान का मान तिरंगा है।।

    इस ध्वज का आश्रय पाकर के
    भेद दिलों के सब मिट जाते हैं।
    छोटा बड़ा न हो कोई भी
    अधिकार समान सभी पाते हैं।।
    देख इसे हम फूले जाते
    हम सबका अरमान तिरंगा है।
    तीन रंग से बना हुआ ये,
    संविधान का मान तिरंगा है।।

    सरहद की रक्षा जो करते
    वे सब इसके खातिर ही मरते।
    सारे हिंद देश के वासी
    नमन सदा इसको हमसब करते।।
    जन गण मन गूंजे इस जग में
    भारत का जयगान तिरंगा है।
    तीन रंग से बना हुआ ये,
    संविधान का मान तिरंगा है।।

    इसका हरा रंग प्रतीक है
    मात भारती की हरियाली का।
    श्वेत सुख शांति का प्रतीक है
    केसरिया रंग खुशहाली का।।
    जीते मरते इसकी खातिर
    हम सबकी पहचान तिरंगा है।
    तीन रंग से बना हुआ ये,
    संविधान का मान तिरंगा है।।

    हर भारतवासी के दिल में
    ये सदा सर्वदा बसा हुआ है।
    दुनिया में है सबसे आगे
    इसने हर एकमन को छुआ है।।
    बहुत पुण्य करने पर पाया
    ईश्वर का वरदान तिरंगा है।
    तीन रंग से बना हुआ ये,
    संविधान का मान तिरंगा है।।

    ✍️ डॉ एन के सेठी

  • मन की व्यथा

    मन की व्यथा

    इस निर्मोही दुनिया में
    कूट-कूट कर भरा कपट
    कहाँ फरियाद लेकर जाऊँ मैं
    किसके पास लिखाऊँ रपट

    जिसे भी देखो इस जहाँ में
    भगा देता है मुझे डपट
    शांति नहीं अब इस जीवन में
    कहाँ बुझाऊँ मन की लपट

    जो भी था मेरे पास में
    सबने लिया मुझसे झपट
    रिश्तों की जमा पूँजी में भी
    सबने लगाई मुझे चपत

    कमाई मेरे इस जीवन की
    हुई न मुझ पर खपत
    नोचने को तैयार थे बैठे
    मेरे अपने धूर्त बगुला भगत

    गल रहा निज व्‍यथा में
    छुटकारे की है मेरी जुगत
    हार ना जाऊँ इस जीवन से
    रूठी किस्मत से सब चौपट

    ठुकरा दिया हर एक ने जब
    प्रभु पहुँचा हूँ तुम्हारी चौखट
    कृपा करो हे दीनदयाल
    हर लो मेरी विपदा विकट

    आशीष कुमार
    माध्यमिक शिक्षक
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

  • सेनानी बन जाएं हम

    चलो गुलामी आज़ादी का,
    मिलकर खेल बनाएं हम।
    तुम व्यापारी अंग्रेज बनो,
    और सेनानी बन जाएं हम।।

    तुम हम पर कर लगाओ,
    तो तड़प तड़प जाएं हम।
    भूख प्यास बर्दाश्त ना हो,
    और सेनानी बन जाएं हम।।

    सत्ताधारी भ्रष्टाचारियों के,
    जंजाल में फंस जाएं हम।
    नासूर लाइलाज बनो तुम,
    और सेनानी बन जाएं हम।।

    बेरोज़गारी की आग में,
    झुलस झुलस जाएं हम।
    पेपर लीक तुम करवाओ,
    और सेनानी बन जाएं हम।।

    सब्जबाग दिखाओ हमको,
    और बहक बहक जाएं हम।
    विश्वासघात बर्दाश्त ना हो,
    और सेनानी बन जाएं हम।।

    रचनाकार – राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान