Author: कविता बहार
आज यह कैसी घड़ी
भीड़ अब आगे बढ़ी, स्वार्थ में खूब अड़ी
तंत्र हो गया घायल, आज यह कैसी घड़ी।
कौन चोर कौन चौकीदार, पता नहीं चले यहाँ
अपनों के बीच खड़ी दुनिया, लगती कुटिल है यहाँ
भोले- भाले भूखे- प्यासे, बेघर हो घूमें जहाँ
आँखों में आँसू हैं उनके, हाय अब जाएँ कहाँ
नीति भी सिर पर चढ़ी, हाथ में जादू- छड़ी
कहीं बज रही पायल, कहीं रोए हथकड़ी।
भीड़ अब आगे बढ़ी……..
सत्ता के लिए बेचैन जो, जेब हों भरते जहाँ
भक्षक हैं बने- ठने रक्षक, किसकी कहें हम यहाँ
माफिया भी साथ हों जिसके,जीत हो उसकी वहाँ
अपनों से हार जो गए हैं, आँसू पिएंगे यहाँ
भावना इतनी पढ़ी, आस्था पीछे पड़ी
जो है उसका कायल, उससे ही आँख लड़ी।
भीड़ अब आगे बढ़ी…….
आसाराम बापू की तरह, गुरू मिलते हों जहाँ
अपनी आस्तीन में ही जब, साँप पलते हों जहाँ
कैसे कोई सीधा- सादा, इनसे बचेगा यहाँ
एक बार चँगुल में फँसकर, रोता रहेगा यहाँ
सजी- सँवरी है मढ़ी, जुड़ी सत्ता से कड़ी
संयासी भी रॉयल, छड़ी रत्नों से जड़ी।
भीड़ अब आगे बढ़ी……..
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद -निवास’
बरेली (उत्तर प्रदेश)राम-नाम विधा :- चौपाई
राम-नाम विधा :- चौपाई
राम-नाम लगे सबको प्यारा |
सबने ही तन-मन में धारा ||
राम सभी के पूज्य कहावे |
सच्चे मन से सब जन ध्यावे ||
सबको सद् का मार्ग दिखाते |
बीच भँवर से पार लगाते ||
प्रभु नाम की जपे जो माला |
रहते उन पर सदा कृपाला ||
छण में दुष्ट ताड़का मारी |
छूँ कर शिला अहिल्या तारी ||
चखे बेर सबरी के खाए |
अंतर्मन से प्रभु मुस्काए ||
राम-नाम जग में अति पावन |
भजें सभी सबसे मनभावन ||
राम-नाम सब मन में धारें |
राम कृपा से भाग्य सँवारें ||
हरीश बिष्ट “शतदल”
रानीखेत || उत्तराखण्ड ||मनहरण घनाक्षरी -दशहरा
किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।
मनहरण घनाक्षरी -दशहरा
नवरात्रि अतिकान्त,
दैत्यगण भयाक्रांत,
तिथि विजयदशमी,
सब को गिनाइए।
राम जैसे मर्यादित,
रहो सखे शांतचित,
धीर वीर देश हित,
गुण अपनाइए।
यथा राम शक्ति धार,
दोष द्वेष गर्व मार,
तिया के सम्मान हेतु,
पर्व को मनाइए।
आसुरी प्रतीक मान,
सनातनी रीति ज्ञान,
दानवी बुराई रूप,
रावण जलाइए।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान