Author: कविता बहार

  • रोटी पर 5 बेहतरीन कविताएं -चौपाई छंद

    13 जून 2022 को साहित रा सिंणगार साहित्य ग्रुप के संरक्षक बाबूलाल शर्मा ‘विज्ञ’ और संचालक व समीक्षक गोपाल सौम्य सरल द्वारा ” रोटी” विषय पर चौपाई छंद कविता आमंत्रित किया गया जिसमें से रोटी पर 5 बेहतरीन कविताएं चयनित किया गया। जो कि इस प्रकार हैं-

    रोटी पर 5 बेहतरीन कविताएं -चौपाई छंद

    कविता 1


    भूख लगे तब रोटी खाना।
    तभी लगे वह स्वाद खजाना।।
    कच्ची भूख में नहीं खाना।
    चाहे मन को बस कर पाना।।

    हानि बहुत स्वास्थ यही करती।
    कई बिमारी शरीर भरती।।
    सादा रोटी सबसे अच्छी।
    लेकिन हो नहीं कभी कच्ची।।

    नित्य आहार करना तुम उत्तम।
    होती है सेहत सर्वोत्तम।।
    दाल भात अरु रोटी खाना।
    चूल्हे पर तुम इसे पकाना।।

    मिलकर के सब मौज मनाना।
    जीवन अपना सफल बनाना।।
    रोटी की महिमा है न्यारी।
    होती है यह दुर्लभ भारी।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    कविता 2




    रोटी की है अजब कहानी।
    बच्चों तुमको बात बतानी।।
    है साधन जीवन यापन की ।
    आवश्यकता रोटी जन की।।

    रोटी की चिन्ता में जीना।
    बहे पिता का सदा पसीना।।
    माता सेंके निशिदिन रोटी।
    बड़ी कभी हो जाती छोटी।।

    रोटी में ईमान भरा हो।
    रूखी- सूखी प्यार भरा हो।।
    मेहनत की रोटी अति प्यारी।
    तृप्ति अमिय सम देती न्यारी।।

    मुझको बस इतना ही कहना।
    चोरी हिंसा से बच रहना।।
    दीन दुखी जब द्वार पुकारे।
    रोटी देकर क्षुधा निवारें।

    पुष्पाशर्मा’कुसुम’

    कविता 3

    ईश्वर ऐसा दिन दिखलाओ l
    भूखे रहे न लोग अभावों ll
    माना करते सब मनमानी l
    जाने क्या मानव ने ठानी ll
    दंभ करे करता बरबादी l
    आयोजन कोई या शादी ll
    रोटी कचरे फेंकी जाती l
    हा अब दुनिया नहीं लजाती ll
    आज देश में कुछ हैं ऐसा l
    भरी गरीबी ईश्वर पैसा ll
    एक समय का दाना पानी l
    चलती खाली पेट कहानी ll
    अब बात ये सोचने वाली l
    जितना खा उतना ले थाली ll


    @ बृज

    कविता 4

    भूख पेट की है आग बड़ी।
    बैठी है तन ज्यों सोन चड़ी।।
    जीव जगत को जो लगती है।
    पेट भरे से जो मिटती है।।

    भूख लगी तो सब संसारी।
    करने लगे मेहनत भारी।।
    काम-धाम कर अर्थ कमाएं।
    लेकर दानें खाना खाएं।।

    दाल-भात या रोटी प्यारी।
    खाते हैं सब जन घरबारी।।
    रोटी सब्जी बहुत सुहाये।
    मय चटनी जी भर जाये।।

    माँ रोटी में रस भरती है।
    स्वाद भोज में करती है।।
    दादी अपने हाथ खिलाती।
    सब बच्चों को बहुत सुहाती।।

    रोटी घर की बहुत सुहाये।
    सभी पेट भर खाना खाये।।
    तोंद डकारें ले इठलाती।
    नींद बहुत फिर सबको आती।।

    रोटी की आती है रंगत।
    जैसी हो तन मन की संगत।।
    मन होता है सबका वैसा।
    खाते हैं जो दाना जैसा।।

    रोजी जैसी रोटी मिलती।
    रोटी जैसी काया फलती।।
    नीयत जैसी रोजी-रोटी।
    होती सद् या होती खोटी।।

    प्राण जीव का है ये रोटी।
    इस खातिर है लूट खसोटी।।
    गिरा आदमी रोटी खातिर।
    लूटे सबको बनकर शातिर।।

    नेक हृदय सब जन काम करो।
    नेक कमाई से नाम करो।।
    भूखे को तुम भोजन देना।
    छीन निवाला दोष न लेना।।

    @ गोपाल ‘सौम्य सरल’

    कविता 5

    माता रोटी रोज बनाती।
    बिठा सामने लाल खिलाती।।
    माँ रोटी में प्यार मिलाती।
    शक्ति सही है, यहाँ ताकत ले।

    पिता खेत में अन्न उगाते।
    तब हम रोटी बैठे खाते।।
    पिता कहाते पालनहारा।
    पाले सुख से है परिवारा।।

    रोटी मोटी पतली रहती।
    भूख सभी की रोटी हरती।।
    घी से चुपड़ी होवे रोटी
    चाहे सूखी खायें रोटी।।

    ज्वाला रोज मिटाती रोटी।।
    खा बच्चे सो जाये रोटी।।
    सो जाये बच्चे खा रोटी।
    रोटी क्या क्या रंग दिखाती।
    चोरी ड़ाका है करवाती।।

    महनत की रोटी है फलती।
    रोटी से काया है बनती।।
    कभी नहीं तुम फेंको रोटी।
    भूखे को तुम दे दो रोटी।।

    कहूँ राम जी देना रोटी ।
    सबको एक समाना रोटी।।
    बिन रोटी मुनिया है रोती।
    जाग जाग रातों में सोती।।

    केवरा यदु”मीरा”राजिम

  • हाकलि/मानव छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    हाकलि/मानव छंद [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रत्येक चरण में 14 मात्रा होती हैं , तीन चौकल के बाद एक द्विकल होता है (4+4+4+2) l यदि तीन चौकल अनिवार्य न हों तो यही छंद ‘मानव’ कहलाता है l

    hindi sahityik class || हिंदी साहित्यिक कक्षा
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    उदाहरण –

    बने ब/हुत हैं/ पूजा/लय,
    अब बन/वाओ/ शौचा/लय l
    घर की/ लाज ब/चाना/ है,
    शौचा/लय बन/वाना है l
    – ओम नीरव

    विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है –
    22 22 22 2
    गागा गागा गागा गा
    फैलुन फैलुन फैलुन अल
    किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l

  • मापनीमुक्त मात्रिक छंद विशेषताएं

    मापनीमुक्त मात्रिक छंद विशेषताएं :

    (क) इन छंदों की लय को किसी मापनी में बाँधना संभव नहीं है l इन छंदों की लय को निर्धारित करने के लिए कलों ( द्विकल 2 मात्रा, त्रिकल 3 मात्रा, चौकल 4 मात्रा) का प्रयोग किया जाता है –
    द्विकल = 2 या 11
    त्रिकल = 21 या 12 या 111
    चौकल = 22 या 211 या 112 या 121 या 1111

    hindi sahityik class || हिंदी साहित्यिक कक्षा
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    (ख) कलों के अतिरिक्त चरणों या पदों के आदि-अंत में किसी निश्चित मात्राक्रम की चर्चा भी की जाती है जिसमें प्रायः वाचिक भार ही प्रयुक्त होता है l
    (ग) कभी-कभी कलों का प्रतिबन्ध पूरा होने पर भी लय बाधित हो जाती है अर्थात लय होने पर कलों का प्रतिबन्ध होना अनिवार्य है किन्तु कलों का प्रतिबन्ध होने पर लय का होना अनिवार्य नहीं है l
    उदाहरण :
    श्रीरा/म दिव्य/ रूप/ को , लंके/श गया/ जान l
    4+4+3+2 , 4+4+3
    चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल, चौकल+चौकल+त्रिकल
    अर्थात इस पंक्ति में दोहा छंद के अनुसार कलों का प्रतिबन्ध पूरा है फिर भी यह पंक्ति दोहा छंद की लय में नहीं है l
    यह पंक्ति दोहे की लय में इस प्रकार होगी —
    दिव्य/रूप/ श्री/राम/ को, जान/ गया/ लं/केश l
    3+3+2+3+2 , 3+3+2+3
    (घ) मापनीमुक्त छंदों में लय ही सर्वोपरि है जो मुख्यतः अनुकरण से आती है l अस्तु रचनाकारों के लिए उचित है कि वह पहले किसी जाने-समझे छंद को सस्वर गाकर उसकी लय को मन में स्थापित करे , फिर उसी लय पर अपना छंद रचे और अंत में मात्राभार तथा नियमों की जांच कर लें l
    (च) मापनीमुक्त मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं – 1) सम मात्रिक छंद जिनके सभी चरणों के मात्राभार और नियम सामान होते हैं जैसे चौपाई, रोला आदि 2) अर्धसम मात्रिक छंद जिनमें मात्राभार और नियम की दृष्टि से विषम चरण परस्पर एक सामान होते है और उनसे भिन्न सम चरण परस्पर एक सामान होते हैं जैसे दोहा, सोरठा, बरवै आदि तथा 3) विषम मात्रिक छंद जिनके चरणों के मात्राभार और नियम भिन्न होते हैं किन्तु अर्धसम मात्रिक नहीं होते हैं जैसे कुण्डलिया, कुण्डलिनी, छप्पय आदि l

  • चौपई या जयकरी छंद कैसे लिखें

    चौपई या जयकरी छंद [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रयेक चरण में 15 मात्रा होती हैं, अंत में 21 या गाल अनिवार्य होता है, कुल चार चरण होते हैं, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l

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    उदाहरण :
    भोंपू लगा-लगा धनवान,
    फोड़ रहे जनता के कान l
    ध्वनि-ताण्डव का अत्याचार,
    कैसा है यह धर्म-प्रचार l
    – ओम नीरव

  • शब्दों की महत्ता पर कविता

    शब्दों की महत्ता पर कविता
    kavi ki kalam

    शब्दों की महत्ता पर कविता


    चुभते हैं कुछ शब्द,
    चूमते हैं कुछ शब्द /
    शब्दकोश से निकलकर,
    भावनाओं की गली से-
    गुजरते हैं,
    और पाते हैं अर्थ,
    कहीं अनमोल,
    कहीं व्यर्थ ।
    संगति का प्रभाव
    तो पड़ता ही है।
    कितने जीवंत रहे होंगे !
    शब्द जब भाव ने-
    दिया होगा जन्म ।
    पर प्रदूषित परिवेश की-
    परवरिश ने कर दिया –
    जर्जर,दुर्बल और तिरस्कृत।
    गलत हाथों में है मशालें,
    रोशनी के लिए जलाते हैं-
    घर,बस्ती, नगर,मानवता-
    आवाज आती है “स्वाहा!!”
    और होम दी जाती है-
    संवेदना, संस्कृति –
    होने लगता है-
    वध,साधु शब्दों का,
    सभ्य शब्दों के द्वारा,
    स्वस्ति वाचन का स्वर,
    निस्पंद कर जाता है ,
    लेखनी के हृदय को।


    ——- R.R.Sahu