Author: कविता बहार

  • त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक]

    त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] विधान – 32 मात्रा, 10,8,8,6 पर यति, चरणान्त में 2 गा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

    hindi sahityik class || हिंदी साहित्यिक कक्षा
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    पहली तीन या दो यति पर आतंरिक तुकांत होने से छंद का लालित्य बढ़ जाता है l तुलसी दास जैसे महा कवि ने पहली दो यति पर आतंरिक तुकान्त का अनिवार्यतः प्रयोग किया है l

    उदाहरण :
    तम से उर डर-डर, खोज न दिनकर, खोज न चिर पथ, ओ राही,
    रच दे नव दिनकर, नव किरणें भर, बना डगर नव, मन चाही।
    सद्भाव भरा मन, ओज भरा तन, फिर काहे को, डरे भला,
    चल-चल अकला चल, चल अकला चल, चल अकला चल, चल अकला।

    – ओम नीरव

  • सार छंद [सम मात्रिक]

    सार छंद [सम मात्रिक] विधान – 28 मात्रा, 16,12 पर यति, अंत में वाचिक भार 22 गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

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    उदाहरण :
    कितना सुन्दर कितना भोला, था वह बचपन न्यारा,
    पल में हँसना पल में रोना, लगता कितना प्यारा।
    अब जाने क्या हुआ हँसी के, भीतर रो लेते हैं,
    रोते-रोते भीतर-भीतर, बाहर हँस देते हैं।

    – ओम नीरव

    विशेष : इस छंद की मापनी को इसप्रकार लिखा जाता है –
    22 22 22 22, 22 22 22
    गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा
    फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन
    किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l

  • गगनांगना छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    गगनांगना छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 16,9 पर यति, चरणान्त में 212 या गालगा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

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    उदाहरण :

    कब आओगी फिर, आँगन की, तुलसी बूझती,
    किस-किस को कैसे समझाऊँ, युक्ति न सूझती।
    अम्बर की बाहों में बदरी, प्रिय तुम क्यों नहीं,
    भारी है जीवन की गठरी, प्रिय तुम क्यों नहीं।

    – ओम नीरव

  • रोला छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    रोला छंद [सम मात्रिक] विधान – 24 मात्रा, 11,13 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 21 या गाल (अपवाद स्वरुप 122 या लगागा भी) और यति के बाद वाचिक भार 12 लगा या 21 गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत l प्रत्येक चरण यति पर दो पदों में विभाजित हो जाता है l

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    पहले पद के कलों का क्रम निम्नवत होता है –
    4+4+3 (चौकल+चौकल+त्रिकल) अथवा
    3+3+2+3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)

    दूसरे पद के कलों का क्रम निम्नवत होता है –
    3+2+4+4(त्रिकल+द्विकल+चौकल+चौकल) अथवा
    3+2+3+3+2 (त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+त्रिकल+द्विकल)

    उदाहरण :
    नागफनी की बाग़ बनी हो जब अँगनाई,
    घूमे लहू लुहान देश की ही तरुणाई l
    फिर पाँवों में डाल चले जो कविता पायल,
    बोलो मेरे मीत न हो कवि कैसे घायल l

    – ओम नीरव

    विशेष : दोहा के विषम और सम चरणों का क्रम परस्पर बदल देने से सोरठा छंद बनता है और उसकी प्रत्येक पंक्ति का मात्राक्रम 11,13 होता है किन्तु वह रोला का चरण नहीं हो सकता है जबकि रोला के चरण का मात्राभार भी 11,13 ही होता है ! कारण यह है की दोनों के लय भिन्न होती है l अस्तु रोला को दो सोरठा के समान समझ लेना नितांत भ्रामक है l

  • साल आता रहा दिन गुजरता रहा

    साल आता रहा दिन गुजरता रहा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    साल आता रहा दिन गुजरता रहा
    चाँद लाचार होकर पिघलता रहा।।
    उनको रोटी मिली ना रही आबरु
    वो तो रुपये की सूरत बदलता रहा।।


    दूर मुझसे रहे खाई गहरी रही
    वक़्त मुझसे मुझी में सिमटता रहा।।
    पांच वर्षों में इक बार कम्बल बंटे
    ठंढ से उनका कस्बा क्यूँ डरता रहा।।


    उनकी नज़रों का है कुछ असर इस क़दर
    जिस्म जड़ हो गया, होश उड़ता रहा।।
    कब से जलता है दिल उनकी यादों में यूं
    उनके आते ही लोहू ये जमता रहा।।


    इस नए साल में कुछ भी बदलेगा क्या
    सूफ़ी तारीख कैलेंडर बदलता रहा।।

    //संध्या सूफ़ी//
    पता– डॉ संध्या सिन्हा
            A/4/39, NML FLATS AGRICO
            JAMSHEDPUR, PIN 831009
            JHARKHAND