Author: कविता बहार

  • शबरी के बेर(चौपाई छंद)

    शबरी के बेर(चौपाई छंद)

    छंद
    छंद

    त्रेता युग की कहूँ कहानी।
    बात पुरानी नहीं अजानी।।
    शबरी थी इक भील कुमारी।
    शुद्ध हृदय मति शील अचारी।।१

    बड़ी भई तब पितु की सोचा।
    ब्याह बरात रीति अति पोचा।।
    मारहिं जीव जन्तु बलि देंही।
    सबरी जिन प्रति प्रीत सनेही।।२

    गई भाग वह कोमल अंगी।
    वन ऋषि तपे जहाँ मातंगी।।
    ऋषि मातंगी ज्ञानी सागर।
    शबरी रहि ऋषि आयषु पाकर।।३

    मिले राम तोहिं भक्ति प्रवीना।
    यही वरदान ऋषि कह दीना।।
    तब से नित वह राम निहारे।
    प्रतिदिन आश्रम स्वच्छ बुहारे।४

    कब आ जाएँ राम दुवारे।
    फूल माल सब साज सँवारे।।
    राम हेतु प्रतिदिन आहारा।
    लाती फल चुन चखती सारा।।५

    एहि विधि जीवन चलते शबरी।
    कब आए प्रभु राम देहरी।।
    प्रतिदिन जपती प्रीत सुपावन।
    बाट जोहती प्रभु की आवन।।६

    जब रावण हर ली वैदेही।
    रामलखन फिर खोजे तेंही।।
    तापस वेष खोजते फिरते।
    वन मृग पक्षी आश्रम मिलते।।७

    आए राम लखन दोऊ भाई।
    शबरी सुन्दर कुटी छवाई।।
    शबरी देख चकित भई भारी।।
    राम सनेह बात विस्तारी।।८

    छबरी भार बेर ले आती।
    चखे मीठ फिर राम खवाती।।
    अति सनेह भक्ति शबरी के।
    खाए बेर राम बहु नीके।।9

    शबरी प्रेम भक्ति आदर्शी।
    राम सदा भक्तन समदर्शी।।
    भाव प्रेम मय शुद्ध अचारे।
    जाति वर्ग कुल दोष निवारे।।१०
    . __
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

  • मात पिता पूजन दिवस दोहे

    मात पिता पूजन दिवस दोहे

    पिता

    सीमा पर रक्षा करे, अपने वीर जवान।
    मरते मान शहीद से, जीते उज्ज्वल शान।।

    प्रेम दिवस पर है विनय , सुनिये सभी सुजान।
    मात पिता को नेह दें, मन विश्वासी मान।।

    न्यौछावर हैं देश पर , मातृभूमि के पूत।
    त्याग और बलिदान हित, क्षमता लिए अकूत।।

    मातृ शक्ति को कर नमन, नारी का सम्मान।
    सृष्टि संतुलन संचरण, रखें आन अरु शान।।

    मात जन्म देती हमें, पाल पोष संस्कार।
    लेना नित आशीष तुम, करना सच सत्कार।।

    मात पिता गुरुदेव के, ईश धरा अरु देश।
    हम कृतज्ञ इनके रहें, सद्भावी परिवेश।।

    माने तो पितृ देव हैं, दे जीवन पर्यन्त।
    कविजन लिखते हारते, महिमा अमित अनंत।।

    मात लगाती वाटिका , रक्षक पिता सुजान।
    मात पिता का श्रम सखे, फल भोगे संतान।।

    मात पिता पूजन दिवस, आज मने त्यौहार।
    दो प्रसून सप्रेम तुम, उत्तम मृदु आहार।।

    मात पिता के बोल शुभ, अनुभव है अनमोल।
    मान सदा उनका करें, मधुर बोल रस घोल।।
    . °°°°°
    © बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ

  • पिता सदा आदर्श हैं (पिता पर दोहे)

    पिता सदा आदर्श हैं (पिता पर दोहे)

    पिता

    ख्याल रखें संतान का, तजकर निज अरमान।
    खुशियाँ देते हैं पिता, रखतें शिशु का ध्यान। ।१

    मुखिया बन परिवार का , करतें नेह समान ।
    पालन पोषण कर पिता , बनते हैं भगवान ।।२

    जिसकी ऊँगली थामकर , चलना सीखें आज ।
    मातु–पिता को मान दें, करें हृदय में राज।।३

    शीतल छाया दें पिता, बरगद वृक्ष समान ।
    शाखा बनकर आज हम, रखें पिता का ध्यान।।४

    पिता सदा आदर्श हैं , परिमल इनका ज्ञान ।
    धारण कर लें नेक गुण, पिता रूप भगवान ।।५

    गढ़ने नवल भविष्य को, बनते पितु आधार।
    प्रेम त्याग से सींचकर, देते हैं संस्कार।।६

    बनकर घर की नींव पितु, सहते दुःख अपार।
    देते हैं छाया हमे , रक्षित घर परिवार ।।७

    आए संकट की घड़ी, देते संबल आस।
    आगे बढ़ने की सदा, भरतें मन विश्वास।।८

    बूढ़े हाथों आज भी, करते सारे काम।
    मातु–पिता को तो कभी , मिला नहीं आराम।।९

    पढ़ लेते हैं बेटियों, की मन की दुख आप।
    बनकर हिम्मत हौसला, हरते पितु संताप।।१०

    उदधि समाहित है जहाँ, पितु का हृदय विशाल।
    वंदन करती *पर्वणी*, रख पितु पग में भाल।।११

    पद्मा साहू *पर्वणी* खैरागढ़
    जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

  • शरणार्थियों का सम्मान

    शरणार्थियों का सम्मान

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    होकर मजबूर वो घर- द्वार छोड़ गए,
    पुराने सुरमई यादों से अपना मुँह मोड़ गए।
    दहशतगर्दों के साजिश से होकर नाकाम,
    फिरते इधर- उधर लोग यूं ही करते इनको बदनाम।
    उम्मीद भरी नैनो से जो देखा सपना,
    समय की मार से वो कभी न हुआ अपना।
    मिलता जब इनको सहयोग तो छा जाता चेहरे पर मुस्कान,
    अब हम करेंगे, शरणार्थियों का सम्मान।

    पढ़ने के उम्र में करते ये काम होकर बेसहारा,
    टूटी – फूटी झोपड़ – पट्टी सा घर है इनको प्यारा।
    अपनी जमीन गांव – गली को याद कर चुपके – चुपके रोया,
    समय की चाल में भूल गया वो क्या पाया और खोया।
    होगा वो महापुरुष जो करे इनपर सेवा – दान,
    अब हम करेंगे,शरणार्थियों का सम्मान।

    अत्याचार और जुल्मों – सितम का मार,
    पीकर गम के आंसुओं को करते खुशी का इजहार।
    कोई भी इनके दर्द को न जाना,
    करते रोजगार के लिए मजदूरी और गाना – बजाना।
    काश इनका भी होता एक अलग पहचान,
    अब हम करेंगे, शरणार्थियों का सम्मान।

    किस्मत के मार से खुद को गए भुल,
    पहनते फटे कपड़े – चप्पल और खाते हैं धुल।
    कोई इनको धिक्कारे कोई करे इनको प्यार,
    फिर भी अपने दुःखों का कभी न करें ये इजहार।
    चलाकर अभियान करेंगे रक्षा बढ़ेगा इनका शान,
    अब हम करेंगे, शरणार्थियों का सम्मान।



    —– अकिल खान रायगढ़ जिला- रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

  • गंगा दशहरा (20 जून) पर गीत

    गंगा दशहरा (20 जून) पर गीत

    राम
    राम

    गोद में तुम सदा ही खिलाती रहो, प्यार से आज तुम ही दुलारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

    मौत के बाद भी तो रहे वास्ता, तुम दिखाओ हमें स्वर्ग का रास्ता
    अस्थियाँ, भस्म सब कुछ समर्पित करें, फिर नई जिंदगी से भला क्यों डरें
    क्या पता कौन सा जन्म हमको मिले, कौन सी आत्मा फूल बनकर खिले
    आस्थाएँ नहीं मिट सकेंगी कभी, अंत में साथ पाते तुम्हारा सभी।

    पत्र मुख में पड़े हों तुलसी के जब, और जल तुम पिलाकर पुकारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारों हमें।

    घूमते हैं यहाँ खूब ठग आजकल, नाम से वे तुम्हारे करते हैं छल
    आज दंडित करो तुम यहाँ दुष्ट जो, फिर कभी भी न सज्जन असंतुष्ट हो
    व्यर्थ स्नान हो जब हुआ मन मलिन, पापियों के बढ़े पाप हैं रात- दिन
    कौन उद्धार उनका करेगा कहाँ, जो सताते रहे निर्बलों को यहाँ।

    तुम हमें दुर्दिनों से बचाती रहो, एक बच्चा समझकर निहारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

    साथ में सत्य- निष्ठा रहेगी अगर, फिर मिलेगी हमें प्यार की ही डगर
    जब कदम डगमगाएँ हमें थामना, नफरतों का नहीं हो कभी सामना
    कर रहे माफिया अब तुम्हारा खनन, आज उनका यहाँ पर करो तुम दमन
    लोग तुमको यहाँ जो प्रदूषित करें, एक दिन देखना वे तड़पकर मरें।

    आज वातावरण जब घिनौना हुआ, दूर उससे रखो फिर सँवारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)
    मोबा० नं०- 98379 44187