शबरी के बेर(चौपाई छंद)
त्रेता युग की कहूँ कहानी।
बात पुरानी नहीं अजानी।।
शबरी थी इक भील कुमारी।
शुद्ध हृदय मति शील अचारी।।१
बड़ी भई तब पितु की सोचा।
ब्याह बरात रीति अति पोचा।।
मारहिं जीव जन्तु बलि देंही।
सबरी जिन प्रति प्रीत सनेही।।२
गई भाग वह कोमल अंगी।
वन ऋषि तपे जहाँ मातंगी।।
ऋषि मातंगी ज्ञानी सागर।
शबरी रहि ऋषि आयषु पाकर।।३
मिले राम तोहिं भक्ति प्रवीना।
यही वरदान ऋषि कह दीना।।
तब से नित वह राम निहारे।
प्रतिदिन आश्रम स्वच्छ बुहारे।४
कब आ जाएँ राम दुवारे।
फूल माल सब साज सँवारे।।
राम हेतु प्रतिदिन आहारा।
लाती फल चुन चखती सारा।।५
एहि विधि जीवन चलते शबरी।
कब आए प्रभु राम देहरी।।
प्रतिदिन जपती प्रीत सुपावन।
बाट जोहती प्रभु की आवन।।६
जब रावण हर ली वैदेही।
रामलखन फिर खोजे तेंही।।
तापस वेष खोजते फिरते।
वन मृग पक्षी आश्रम मिलते।।७
आए राम लखन दोऊ भाई।
शबरी सुन्दर कुटी छवाई।।
शबरी देख चकित भई भारी।।
राम सनेह बात विस्तारी।।८
छबरी भार बेर ले आती।
चखे मीठ फिर राम खवाती।।
अति सनेह भक्ति शबरी के।
खाए बेर राम बहु नीके।।9
शबरी प्रेम भक्ति आदर्शी।
राम सदा भक्तन समदर्शी।।
भाव प्रेम मय शुद्ध अचारे।
जाति वर्ग कुल दोष निवारे।।१०
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बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ