Author: कविता बहार

  • सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    kavita

    सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

    उजड़े – उजड़े से क्यों ये चमन हो गए

    पीर अब दिल की मिटाता नहीं कोई

    हमारे ही हमारी जान के दुश्मन हो गए

    रिश्तों की कोंपल अब, फूल बन खिलती नहीं

    जो हुआ करते थे अपने , वो आज दुश्मन हो गए

    जी पर किया भरोसा , वो भरोसे के लायक न रहे

    होठों पर मुस्कान , बगल में छुरी लिए खड़े हो गए

    कोरोना ने उड़ा रखी है , सभी की नींद

    इस त्रासदी में सभी रिश्ते , बेमानी हो गए

    संवेदनाएं स्वयं को शून्य में खोजतीं

    गली – चौराहे खून से सराबोर हो गए

    नेताओं पर नहीं पड़ती कोरोना की मार

    गरीब सभी अल्लाह को प्यारे हो गए

    नवजात बच्चियां भी आज नहीं हैं सलामत

    घर – घर चीरहरण के किस्से हो गए

    सस्ते क्यों इतने कफ़न हो गए

    उजड़े – उजड़े से क्यों ये चमन हो गए

    पीर अब दिल की मिटाता नहीं कोई

    हमारे ही हमारी जान के दुश्मन हो गए

  • प्रेरणा दायक कविता – हिम्मत कभी न हारो

    प्रेरणा दायक कविता
    प्रेरणादायक कविता

    प्रेरणा दायक कविता – हिम्मत कभी न हारो


    तुम मनुष्य हो, शक्ति तुम्हारे जीवन का संबल है।
    और तुम्हारा अतुलित साहस गिरि की भाँति अचल है।
    तो साथी केवल पल भर को माया मोह बिसारो। हिम्मत…


    मत देखो कितनी दूरी है, कितना लम्बा मग है।
    और न सोचो साथ तुम्हारे, आज कहाँ तक जग है।
    लक्ष्य-प्राप्ति की बलिदेवी पर, अपना तन-मन वारो । हिम्मत…


    आज तुम्हारे साहस पर ही मुक्ति सुधा निर्भर है।
    आज तुम्हारे स्वर के साथी कोटि कण्ठ के स्वर हैं।
    तो साथी बढ़े चलो मार्ग पर आगे सदा निहारो। हिम्मत…

  • कभी सोचा न था- कविता – महदीप जंघेल

    कभी सोचा न था (कविता)

    kavita

    जिंदगी कभी ऐसी होगी,
    कभी सोचा न था।
    ऐसी वीरान,उदासी और
    जद्दोजहत होगी जिंदगी,
    कभी सोचा न था।

    अपनो को अपने आंखों
    के समक्ष खोते देखा,
    और कुछ कर भी न पाया,
    ऐसी लानत भरी होगी जिंदगी,
    कभी सोचा न था।

    दोस्त, पड़ोसी,रिश्तेदार,
    परिवार को तड़पते देखा,
    यूं ही बिस्तर पर मरते देखा,
    कितनो के सांस उखड़ते देखा,
    कभी पड़ोसी की एक छींक से ,
    कभी चैन से सोता न था,
    ऐसी भयानक होगी जिंदगी,
    कभी सोचा न था।

    घुटन भरी हो गई है ये जिंदगी,
    तपन भरी हो गई है ये जिंदगी।
    कभी हंसते मुस्कुराते,
    अपनो से मिला करते थे,
    सुख-दुःख की मीठी बातें
    मजे से किया करते थे।
    जिंदगी में मोड़ भी कभी ऐसे आयेंगे,
    अपने , अपनो से दूर हो जाएंगे।
    कभी सोचा न था।
    बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी,
    कभी रोता न था।
    जिंदगी ऐसी वीरान और
    जद्दोजहत भरी होगी,
    कभी सोचा न था।

    कैद सा होगा जीवन
    कभी सोचा न था।
    किसी की तबाह होगी जिंदगी ,
    कभी सोचा न था।
    अपनो को अभी खोना पड़ेगा,
    कभी सोचा न था।
    हंसी खुशी जिंदगी में,
    अभी रोना पड़ेगा ,
    कभी सोचा न था।

    📝महदीप जंघेल,
    खमतराई, खैरागढ़

  • प्रेरणा दायक कविता – बढ़े चलो

    प्रेरणा दायक कविता
    प्रेरणादायक कविता

    प्रेरणा दायक कविता – बढ़े चलो


    न हाथ एक शस्त्र हो, न साथ एक अस्त्र हो,
    न अन्न, नीर, वस्त्र हो, हटो नहीं डटो वहीं बढ़े चलो….


    रहे समक्ष हिम-शिखर, तुम्हारा प्रण उठे निखर,
    भले ही जाए तन बिखर, रुको नहीं, झुको नहीं बढ़े चलो..


    घटा गिरी अटूट हो, अधर में कालकूट हो,
    वही अमृत का घूट हो, जियो चलो, मरे चलो, बढ़े चलो…


    गगन उगलता आग हो, छिड़ा मरण का राग हो,
    लहू का अपने फाग हो, अड़ो वहीं, गड़ो वहीं। बढ़े चलो…


    चलो नई मिसाल हो, चलो नई मशाल हो,
    बढ़ो नया कमाल हो, रुको नहीं, झुको नहीं। बढ़े चलो

    प्रेरणा दायक कविता

  • शीर्षक – मेरा प्यार( हिंदी कविता) रचयिता सुशील कुमार राजहंस

    शीर्षक – मेरा प्यार ( हिंदी कविता)

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बात हमारी सुना रहा हूं , इस नये जमाने को ।
    किन हालातों से हूं गुजरा , पल भर तुझे पाने को ।
    अपने तजुर्बे की पन्नों में लिखी , दास्तां सुनाता हूं ।
    सीने में थमती सांस की , व्यथा का हाल बताता हूं ।
    एक लड़की सुशील भोली सी ,
    जिसकी प्रीत बिना रह नहीं पाता हूं ।
    जिसके एहसास का हर लम्हा ,
    मस्ती में झूम झूम कर बिताता हूं ।
    फिल्मी दुनियां से जरा हट कर ,
    उनसे हमारी पहली मुलाकात थी ।
    अदाकारी और करामात से पिरोयी ,
    वाकई सबसे अनोखी उनमें बात थी ।
    मंत्र मुग्ध कर दे हर शक्स को वो ,
    सादगी की ऐसी सौगात थी ।
    जानती थी प्यार से जीतना लोगों को ,
    हमारी तो एक वही कायनात थी ।
    कमबख्त वो वक़्त , उन पर नजर जो मेरी पड़ी ।
    इजहार ए मोहब्बत की थी , ये शुरुआती कड़ी ।
    परिणाम की चिंता और भय थी , उलझन की घड़ी ।
    जब उसने भी कहा हां , तब मिली मुझे सुकून बड़ी ।
    तब होने लगी जान पहचान , बढ़ने लगी बात आगे ।
    कल्पनाओं में लिप्त मन , बुनने लगा प्रेमरस के धागे
    न देखकर हमें वो मुस्कान देते ,
    नहीं अपनी मधुर वाणी की तान देते ।
    घमंडी और मगरूर होती वो ,
    तब उनसे हम अनजान होते ।
    किन्तु वो तो थीं अमृत की मधु प्याला ,
    जिसे पाने को हम अपनी जान दे देते ।
    हमें न कोई तकलीफ , न हुई कोई गम ।
    मनमौजी थे , खुशी से उछल पड़े हम ।
    थी चंचल सी जिन्दगी में , सुखद भरी हमारी राहें ।
    उम्मीदों की किरण खड़ी थी , आस में फैलाए बाहें ।
    और शायद !
    इसी आवारगी में ही तो , ईश्क की शुरुआत होती है
    मन में उठती भावनाओं की , दिन रात बात होती है ।
    कभी इनकार तो कभी तकरार होती है ।
    त्याग और जिम्मेदारी से भी प्यार होती है ।
    जैसे जैसे समय गुजरा ,
    बचपना खत्म जवानी आ गयी ।
    यौवन का उभरता आकर्षण ,
    कयामत सी ला गयी ।
    हां चाहूँ की वो मुझे देखती रहे , मैं उसे देखता रहूं ।
    थम जाये पल यूं ही , न वो कुछ कहे न मैं कुछ कहूं ।
    मैं रोज उसकी यादों की गहराई में ,लीन हो जाता हूं ।

    अपनों के मेले में अकेला मैं, उससा मीत न पाता हूं ।

    अक्सर स्वप्न तब छलते हैं , मोह के धागे बदलते हैं ।

    घबराती, कांपती,शरमाती रूह , बेचैन हो मचलते हैं
    तब कातिल निगाहें , स्नेह सागर में डूब जाती है ।
    खुलकर उनकी बाहों में , कसकर सिमट जाती है ।
    जुल्फें जब उसकी, मेरे अधरों पर आती है ।
    सारी इंद्रियां लूट के, मदहोश कर जाती है ।
    तभी मन भ्रमर का हंगामा , खता से पहले रूक जाता है ।
    अनमोल जज्बात , फरेब के जाल से ऊब जाता है ।
    मुझे प्रेम में , घिनौने खेल खेलना नहीं आता है ।
    लालसा और वासना का , तालमेल नहीं खाता है ।
    मुझे खुद को , तूझपर अर्पण करना आता है ।
    ऐसा ही तेरे मेरे प्रीत का , जन्मों तक नाता है ।
    लैला मजनूं की इतिहास , प्यार का सच बताती है ।
    गर समझ सको रिश्ता , विश्वास का मोल जताती है ।
    लोगों को करने दो , जग के रस्मों रिवाजों की बाते ।
    प्यार तो दोनों ओर से पलता है , देकर पवित्र नाते ।
    मेरा प्यार न कभी पुराना था , और न अब पुराना है ।
    मुझे तो इस अथाह प्रेमकोश की , दवा चुराना है ।
    मत पूछ मेरा ये दिल , तेरा कितना बड़ा दिवाना है ।
    मन का दर्पण देख कभी , जिसमें तेरा ही ठिकाना है
    कब तक यूं ही चलेगा , जिन्दगी का रूठना मानना ।
    घुटन और प्यास की आदत का , ये घाव छिपाना ।
    नहीं आता मुझे ,प्यार की सीमा को व्यक्त कर पाना ।

    नामुमकिन सी उलझी जिन्दगी की ,पहेली सुलझाना
    जरूरी है हकीकत की बुनियाद से , अस्तित्व पाना ।

    भौतिक चैन और अश्लील नजरिए का ,ढोंग हटाना
    खत्म हो जाये यह जिस्म ,तब सब खत्म हो जायेगा
    पागल प्रेम आखिर , आजाद हो राहत से सो पायेगा
    ये कैसी दुर्दशा है मेरी , पीड़ा में भी दुआ दे जाता हूं ।
    मैं भी रोते ,टूटते हुए , आस का दीपक जलाता हूं ।
    उसे भुलाने की कोशिश में , ज्यादा करीब पाता हूं ।
    उसकी चाहत के रंग में , सदा के लिए रंग जाता हूं ।
    चिंता और जिद के आगे , जोर किसका चला है ।
    इसी उत्तेजना के कारण ही तो , रुसवा पला है ।
    भले बेशर्म हूं , पर जमीर मेरी अभी मरी नहीं ।
    कायम हूं अपने वादे पर , ये कोई मसखरी नहीं ।
    काश !
    तुम भी मुझे इस हद तक , प्यार करती होगी ।
    मेरे जैसा हाल , ख्याल ,तुम भी महसूस करती होगी।

    रचयिता सुशील कुमार राजहंस