जिंदगी कभी ऐसी होगी, कभी सोचा न था। ऐसी वीरान,उदासी और जद्दोजहत होगी जिंदगी, कभी सोचा न था।
अपनो को अपने आंखों के समक्ष खोते देखा, और कुछ कर भी न पाया, ऐसी लानत भरी होगी जिंदगी, कभी सोचा न था।
दोस्त, पड़ोसी,रिश्तेदार, परिवार को तड़पते देखा, यूं ही बिस्तर पर मरते देखा, कितनो के सांस उखड़ते देखा, कभी पड़ोसी की एक छींक से , कभी चैन से सोता न था, ऐसी भयानक होगी जिंदगी, कभी सोचा न था।
घुटन भरी हो गई है ये जिंदगी, तपन भरी हो गई है ये जिंदगी। कभी हंसते मुस्कुराते, अपनो से मिला करते थे, सुख-दुःख की मीठी बातें मजे से किया करते थे। जिंदगी में मोड़ भी कभी ऐसे आयेंगे, अपने , अपनो से दूर हो जाएंगे। कभी सोचा न था। बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी, कभी रोता न था। जिंदगी ऐसी वीरान और जद्दोजहत भरी होगी, कभी सोचा न था।
कैद सा होगा जीवन कभी सोचा न था। किसी की तबाह होगी जिंदगी , कभी सोचा न था। अपनो को अभी खोना पड़ेगा, कभी सोचा न था। हंसी खुशी जिंदगी में, अभी रोना पड़ेगा , कभी सोचा न था।
बात हमारी सुना रहा हूं , इस नये जमाने को । किन हालातों से हूं गुजरा , पल भर तुझे पाने को । अपने तजुर्बे की पन्नों में लिखी , दास्तां सुनाता हूं । सीने में थमती सांस की , व्यथा का हाल बताता हूं । एक लड़की सुशील भोली सी , जिसकी प्रीत बिना रह नहीं पाता हूं । जिसके एहसास का हर लम्हा , मस्ती में झूम झूम कर बिताता हूं । फिल्मी दुनियां से जरा हट कर , उनसे हमारी पहली मुलाकात थी । अदाकारी और करामात से पिरोयी , वाकई सबसे अनोखी उनमें बात थी । मंत्र मुग्ध कर दे हर शक्स को वो , सादगी की ऐसी सौगात थी । जानती थी प्यार से जीतना लोगों को , हमारी तो एक वही कायनात थी । कमबख्त वो वक़्त , उन पर नजर जो मेरी पड़ी । इजहार ए मोहब्बत की थी , ये शुरुआती कड़ी । परिणाम की चिंता और भय थी , उलझन की घड़ी । जब उसने भी कहा हां , तब मिली मुझे सुकून बड़ी । तब होने लगी जान पहचान , बढ़ने लगी बात आगे । कल्पनाओं में लिप्त मन , बुनने लगा प्रेमरस के धागे न देखकर हमें वो मुस्कान देते , नहीं अपनी मधुर वाणी की तान देते । घमंडी और मगरूर होती वो , तब उनसे हम अनजान होते । किन्तु वो तो थीं अमृत की मधु प्याला , जिसे पाने को हम अपनी जान दे देते । हमें न कोई तकलीफ , न हुई कोई गम । मनमौजी थे , खुशी से उछल पड़े हम । थी चंचल सी जिन्दगी में , सुखद भरी हमारी राहें । उम्मीदों की किरण खड़ी थी , आस में फैलाए बाहें । और शायद ! इसी आवारगी में ही तो , ईश्क की शुरुआत होती है मन में उठती भावनाओं की , दिन रात बात होती है । कभी इनकार तो कभी तकरार होती है । त्याग और जिम्मेदारी से भी प्यार होती है । जैसे जैसे समय गुजरा , बचपना खत्म जवानी आ गयी । यौवन का उभरता आकर्षण , कयामत सी ला गयी । हां चाहूँ की वो मुझे देखती रहे , मैं उसे देखता रहूं । थम जाये पल यूं ही , न वो कुछ कहे न मैं कुछ कहूं । मैं रोज उसकी यादों की गहराई में ,लीन हो जाता हूं ।
अपनों के मेले में अकेला मैं, उससा मीत न पाता हूं ।
अक्सर स्वप्न तब छलते हैं , मोह के धागे बदलते हैं ।
घबराती, कांपती,शरमाती रूह , बेचैन हो मचलते हैं तब कातिल निगाहें , स्नेह सागर में डूब जाती है । खुलकर उनकी बाहों में , कसकर सिमट जाती है । जुल्फें जब उसकी, मेरे अधरों पर आती है । सारी इंद्रियां लूट के, मदहोश कर जाती है । तभी मन भ्रमर का हंगामा , खता से पहले रूक जाता है । अनमोल जज्बात , फरेब के जाल से ऊब जाता है । मुझे प्रेम में , घिनौने खेल खेलना नहीं आता है । लालसा और वासना का , तालमेल नहीं खाता है । मुझे खुद को , तूझपर अर्पण करना आता है । ऐसा ही तेरे मेरे प्रीत का , जन्मों तक नाता है । लैला मजनूं की इतिहास , प्यार का सच बताती है । गर समझ सको रिश्ता , विश्वास का मोल जताती है । लोगों को करने दो , जग के रस्मों रिवाजों की बाते । प्यार तो दोनों ओर से पलता है , देकर पवित्र नाते । मेरा प्यार न कभी पुराना था , और न अब पुराना है । मुझे तो इस अथाह प्रेमकोश की , दवा चुराना है । मत पूछ मेरा ये दिल , तेरा कितना बड़ा दिवाना है । मन का दर्पण देख कभी , जिसमें तेरा ही ठिकाना है कब तक यूं ही चलेगा , जिन्दगी का रूठना मानना । घुटन और प्यास की आदत का , ये घाव छिपाना । नहीं आता मुझे ,प्यार की सीमा को व्यक्त कर पाना ।
नामुमकिन सी उलझी जिन्दगी की ,पहेली सुलझाना जरूरी है हकीकत की बुनियाद से , अस्तित्व पाना ।
भौतिक चैन और अश्लील नजरिए का ,ढोंग हटाना खत्म हो जाये यह जिस्म ,तब सब खत्म हो जायेगा पागल प्रेम आखिर , आजाद हो राहत से सो पायेगा ये कैसी दुर्दशा है मेरी , पीड़ा में भी दुआ दे जाता हूं । मैं भी रोते ,टूटते हुए , आस का दीपक जलाता हूं । उसे भुलाने की कोशिश में , ज्यादा करीब पाता हूं । उसकी चाहत के रंग में , सदा के लिए रंग जाता हूं । चिंता और जिद के आगे , जोर किसका चला है । इसी उत्तेजना के कारण ही तो , रुसवा पला है । भले बेशर्म हूं , पर जमीर मेरी अभी मरी नहीं । कायम हूं अपने वादे पर , ये कोई मसखरी नहीं । काश ! तुम भी मुझे इस हद तक , प्यार करती होगी । मेरे जैसा हाल , ख्याल ,तुम भी महसूस करती होगी।