कितना मुश्किल होगा ना तुम्हें भूल जाना यादों में तुम्हें लेके किसी और का हो जाना एक पल के लिए भी तुझे न भूल पाऊंगी जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी
छोटी छोटी बातों पर मेरा हमेशा रूठ जाना याद आएगा मुझे तुम्हारे साथ यूं घूमने जाना तू जो पुकारे एक बार मुझे मैं दौड़ी आऊंगी जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी
प्यार में तुम्हारी मुझे वो कसमें वादे दे जाना फिर भुला के सारे वादों को दूर हो जाना किसी और के साथ कैसे फिर वही कसमें खाऊंगी जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी
जानती हूं तेरी मजबूरी है मेरे पास न आना मुश्किल होगा तेरे लिए भी मुझको भूल जाना जानती हूं दर्द तेरा मैं कैसे रह पाऊंगी जाने मैं कैसे ससुराल को चली जाऊंगी
यूं सारी समझदारी हम पर आ जाना साथ रहने का न बचता कोई बहाना एक पल भी मैं तेरी यादों से न जाऊंगी जाने कैसे मैं ससुराल को चली जाऊंगी
जहां एक पल की दूरी भी था मुश्किल सह पाना क्या मुमकिन होगा तेरे बिना रह पाना अब कभी न मैं तुमसे मिलने आऊंगी जाने कैसे मैं सुसराल को चली जाऊंगी
ना गलती तेरी है न मुझसे हुआ तेरा हो पाना हो सके तो जाते जाते मुझको माफी दे जाना अब बाबुल की में रीत निभाऊंगी जाने कैसे मैं ससुराल को चली जाऊंगी
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है खुद ही हल हो गयी समस्या आँसू गर नीलाम हुए तो समझो पूरी हुई तपस्या रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर केवल जिल्द बदलती पोथी जैसे रात उतार चांदनी पहने सुबह धूप की धोती वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों! चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिकन न आई पनघट पर, लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर, तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों! लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गन्ध फूल की, तूफानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बन्द न हुई धूल की, नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों! कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
प्रस्तुत कविता शिव की सात शक्ति भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।
शिव की सात शक्ति
शिव की सातों शक्तियों, की साधना पुनीत। जब ये अनुकूलित रहे, साधक रिपु लें जीत।। सात मातृका हैं शिवा, इनका तीव्र प्रभाव। साधक पर पड़ता सदा, जाता बदल स्वभाव।। श्रीब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी तीन। इंद्राणी -कुमारीका च, वाराहीश्च पुनीत।। चामुण्डा है अति प्रबल, शिव की शक्ति अखण्ड। खुश हो तो सुख दें सदा, नाखुश हो तो दण्ड ।। पृथक -पृथक है साधना, तथा पृथक आयाम। जब जैसी हो परिस्थिति, करती वैसे काम।। मार्कण्डेय पुराण में, वाराही के नाम।। रक्तबीज संहार का , लिखा हुआ है काम।। वाराही की साधना , दक्षिण के तत्काल। विपदायें है रोकती, रुक जाता है काल।। संकट -शत्रु निवारती, हरि अंशी यह शक्ति । श्रद्धा से हो साधना, मिलती हरि की भक्ति ।।