माघ शुक्ल बसंत पंचमी पर कविता
माघ शुक्ल की पंचमी,
भी है पर्व पुनीत।
सरस्वती आराधना,
की है जग में रीति।।
यह बसंत की पंचमी,
दिखलाती है राह।
विद्या, गुण कुछ भी नया,
सीखें यदि हो चाह।।
रचना, इस संसार की,
ब्रह्मा जी बिन राग।
किये और माँ शक्ति ने,
हुई स्वयं पचभाग।।
राधा, पद्मा, सरसुती,
दुर्गा बनकर मात।
सरस्वती वागेश्वरी,
हुईं जगत विख्यात।।
सभी शक्ति निज अंग से,
प्रकट किये यदुनाथ।
सरस्वती जी कंठ से,
पार्टी वीणा साथ।।
सत्व गुणी माँ धीश्वरी,
वाग्देवि के नाम ।
वाणी, गिरा, शारदा,
भाषा, बाच ललाम।।
विद्या की देवी बनी,
दें विद्या उपहार।
भक्तों को हैं बाँटती,
निज कर स्वयं सँवार।।
लक्ष्मी जी भी साथ ही,
पूजें, कर निज शुद्धि।
धन को सत्गति ही मिले,
विमल रहेगी बुद्धि।।
एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर