Author: कविता बहार

  • पृथ्वी दिवस: धरती हमारी माँ

    पृथ्वी दिवस: धरती हमारी माँ

    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।
    आँचल पसारती है
    धरती हमारी माँ।

    बचपन मे मिट्टी खायी
    फिर हम बड़े हुए।
    जब पाँव इसने थामा
    तब हम खड़े हुए।
    ममता ही वारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।

    तितली के पीछे भागे
    कलियाँ चुने भी हम।
    गोदी में इसकी खेले,
    दौड़े,गिरे भी हम।
    भूलें सुधारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।

    अन्न धन इसी से पाकर
    जीते हैं हम सभी।
    पावन हैं इसकी नदियाँ
    पीते हैं जल सभी।
    जीवन संवारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।

    धरती का ऋण है हम पर
    आओ चुकाएं हम।
    फैलायें ना प्रदूषण
    पौधे लगायें हम।
    सुनलो पुकारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।


    सुश्री गीता उपाध्याय
    पता:—रायगढ़ (छ.ग.)

  • युवा वर्ग आगे बढ़ें

    युवा वर्ग आगे बढ़ें

    युवा वर्ग आगे बढ़ें

    स्वामी विवेकानंद
    स्वामी विवेकानंद

    छन्द – मनहरण घनाक्षरी

    युवा वर्ग आगे बढ़ें,
    उन्नति की सीढ़ी चढ़ें,
    नूतन समाज गढ़ें,
    एकता बनाइये।

    नूतन विचार लिए,
    कर्तव्यों का भार लिए,
    श्रम अंगीकार किए,
    कदम बढ़ाइए।

    आँधियाँ हैं सीमा पार,
    काँधे पे है देश भार,
    राष्ट्र का करें उद्धार,
    वक्त पहचानिए।

    बहकावे में न आयें,
    शिक्षा श्रम अपनायें,
    राष्ट्र संपत्ति बचायें,
    आग न लगाइए।

    सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

  • छतीसगढ़ दाई

    छतीसगढ़ दाई


    चंदन समान माटी
    नदिया पहाड़ घाटी
    छतीसगढ़ दाई।

    लहर- लहर खेती
    हरियर हीरा मोती
    जिहाँ बाजे रांपा-गैंती
    गावै गीत भौजाई।

    भोजली सुआ के गीत
    पांयरी चूरी संगीत
    सरस हे मनमीत
    सबो ल हे सुहाई।

    नांगमोरी,कंठा, ढार
    करधन, कलदार
    पैंरी,बहुँटा श्रृंगार
    पहिरे बूढ़ीदाई ।

    हरेली हे, तीजा ,पोरा
    ठेठरी खुरमी बरा
    नांगपुरी रे लुगरा
    पहिरें दाई-माई।

    नांगर के होवै बेरा
    खाये अंगाकर मुर्रा
    खेते माँ डारि के डेरा
    अर तत कहाई।

    सुंदर सरल मन
    छतीसगढ़ के जन
    चरित्र जिहाँ के धन
    जीवन सुखदाई।

    पावन रीति रिवाज
    अँचरा मां रहे लाज
    सबो ले सुंदर राज
    छत्तीसगढ़ भाई।




    रचना:—सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़

  • हिन्दी कुण्डलियाँ: ऊर्जा संरक्षण

    हिन्दी कुण्डलियाँ: ऊर्जा संरक्षण

    (1)
    ऊर्जा सदा बचाइये,
    सीमित यह भंडार।
    धरती का वरदान है,
    जग विकासआधार।

    जग विकास आधार ,
    समझ कर इसे खरचना।
    बढ़े नहीं यह और ,
    सोचकर सभी बरतना।

    गीता सुन यह बात,
    चले सब दिन कल-पुर्जा।
    होगा संभव तभी,
    रहे जब रक्षित ऊर्जा।।


    (2)
    सूरज ऊर्जा पुंज है,
    इसका हो उपभोग।
    ऊर्जा संरक्षण करें,
    ले इसका सहयोग।।

    ले इसका सहयोग,
    चलायें सब कल पुर्जे।
    बचें गैस पेट्रोल,
    कोयले के कम खर्चे।

    गीता कह तकनीक,
    नये अपनाएँ यूँ कुछ।
    रहें प्रदूषण मुक्त,
    मशीनें ऊर्जा सूरज।

    ✍सुश्री गीता उपाध्याय, रायगढ़(छ.ग.)

  • कोई आता जाता नहीं – रामनाथ साहू ननकी

    कोई आता जाता नहीं – रामनाथ साहू ननकी

    रिक्त हुआ मन का मदिरालय ,
    कोई आता जाता नहीं ।
    सभी शराबी बने पुजारी ,
    प्याला दिल बहलाता नहीं ।।

    आज मौन मन होकर बैठा ,
    उसी नदी के किनारे पर ।
    जिसे देख होती थी बातें ,
    इतराते थे सहारे पर ।।
    शब्द भाव सब हैं मुरझाए ,
    क्यों कोई सहलाता नहीं ।
    रिक्त हुआ मन का मदिरालय ,
    कोई आता जाता नहीं ।।

    ये मेरा दुर्भाग्य समझता ,
    मेरी ही नादानी रही ।
    पूर्ण हुआ करता मन लेकिन ,
    वक्त अधूरी गाथा कही ।।
    जो कल तक वादे करता था ,
    उसको मैं क्यों भाता नहीं ।
    रिक्त हुआ मन का मदिरालय ,
    कोई आता जाता नहीं ।।

    संकल्पों की सीढ़ी टूटी ,
    स्वप्निल महालय चूर हुआ ।
    शीश विलग होते काँधे से ,
    कितना कौन मजबूर हुआ ।।
    प्रेम – गीत होठों से रूठे ,
    मंच मंत्र कुछ भाता नहीं ।
    रिक्त हुआ मन का मदिरालय ,
    कोई आता जाता नहीं ।।

    -रामनाथ साहू " ननकी "