Author: कविता बहार

  • सावन पर दोहे

    सावन पर दोहे


    ★★★★★★★★
    सावन में पड़ने लगी,रिमझिम सरस फुहार।
    हरित चुनर ओढ़ी धरा,सुरभित है संसार।।

    कोयल कूके बाग में , दादुर करते शोर।
    सौंधी माटी की महक,फैल रही चहुँ ओर।।

    कल कल कर बहने लगी,धरती में जल धार।
    पावस का वरदान पा,आलोकित संसार।।

    तरु लता सब झूमकर , देते है संदेश।
    प्रेम रहे सब जीव में,छोड़ो कपट कलेश।।

    पावस में धरती बनी,अब खुशियों का केन्द्र।
    देखा जब मोहक छटा,झूमे आज डिजेन्द्र।।
    ★★★★★★★★★★★★★★★★


    रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
    मो. 8120587822

  • चरित्र विषय पर दोहे : राधा तिवारी

    चरित्र विषय पर दोहे : राधा तिवारी


    चिंतन और चरित्र से ,हो जाता उद्धार।
    नीच कर्म करके मनुज ,कैसे हो व्यापार।।

    राधे नेक विचार से ,उत्तम बने चरित्र
    सदा सत्य को ही रखो ,साथ बनाकर मित्र।।

    कर चरित्र निर्माण भी ,और काम के साथ।
    मात-पिता का हो सदा , सबके सिर पर हाथ।।

    सतयुग के तो बाद में ,आया कलयुग काल।
    सद्चरित्र से ही मनुज ,रखना इसे संभाल।।

    दूध दही की ही तरह ,मन को रखें पवित्र।
    अंतर्मन में ही दिखे, खुद का सदा चरित्र।।

    राधा तिवारी
    “राधेगोपाल”
    एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
    खटीमा,उधम सिंह नगर
    उत्तराखंड

  • बेटी कली है फूल है बहार है

    बेटी कली है फूल है बहार है

    बेटी, बेटी कली है, फूल है, बहार है,
    बेटी, बेटी गीत है, संगीत है, सुरों की तार है,
    बेटी, बेटी धन है, ताकत है, साहस का भंडार है,
    बेटी, बेटी घर की जन्नत, स्वर्ग का द्वार है।

    बेटी, बेटी पिता की लाडली, माँ की ममता अपार है,
    बेटी, बेटी प्यारी – प्यारी बहना, भाई का प्यार है,
    बेटी, बेटी आँगन की शोभा, रिश्तों की आधार है,
    बेटी, बेटी है तो धरती है, आकाश है, संसार है।

    बेटी, बेटी सीता है, सावित्री है, अहिल्याबाई है,
    बेटी, बेटी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई है,
    बेटी, बेटी राधा है, रुक्मणि है, मीरा बाई है,
    बेटी, बेटी उर्मिला है,सबरी है,चांडाल भी कहलाई है।

    बेटी, बेटी दुर्गा है, पार्वती है, काली का रूप है,
    बेटी, बेटी अबला नहीं सबला है, प्रचंडा स्वरूप है,
    बेटी, बेटी दीपक है, रोशनी है, उजाला है,
    बेटी, बेटी खुशबू है, सौभाग्य है, चन्दन का प्याला है।

    बेटी, बेटी सुरों की मल्लिका लता है, अनुराधा है,
    बेटी, बेटी अंतरिक्ष यात्री कल्पना है, सुनीता है,
    बेटी, बेटी इंदिरा है, सरोजनी है, देश की शान है,
    बेटी, बेटी गौरव है, गाथा है, अभिमान है।

    बेटी, बेटी प्यार है, करुणा है, त्याग की मूरत है,
    बेटी , बेटी पूजा है, आरती है, गीता की सूरत है,
    बेटी, बेटी ज्वाला है, लक्ष्मी है, सरस्वती आकार है,
    बेटी, बेटी बेटी ही नहीं, ईश्वरीय शक्ति का अवतार है।

    बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
    सिरसा (हरियाणा)

  • तुम लेखक नहीं नर पिचास हो

    तुम लेखक नहीं नर पिचास हो

    सिर्फ तुम ही नहीं
    तुम से पूर्व भी थी
    पूरी जमात भांडों की।
    जो करते रहे ताथाथैया
    दरबारों की धुन पर।
    चाटते रहे पत्तल
    सियासी दस्तरखान पर।
    हिलाते रहे दुम
    सियासी इशारों पर।
    चंद रियायतों के लिए
    चंद सम्मान-पत्रों के लिए।
    करते रहे कत्ल
    जनभावनाओं का।
    करते रहे अनसुना
    करुण चीखों को।
    करते रहे नजर अंदाज
    अंतिम पायदान के
    व्यक्ति की पीड़ा।
    तुम लेखक नहीं
    नर पिचास हो।

    -विनोद सिल्ला©

  • भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    Republic day

    भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    धरा हरित नभ श्वेत, सूर्य केसरिया बाना।
    सज्जित शुभ परिवेश,लगे है सुभग सुहाना।।
    धरे तिरंगा वेश, प्रकृति सुख स्वर्ग लजाती।
    पावन भारत देश, सुखद संस्कृति जन भाती।।

    भारत गर्वित आज,पर्व गणतंत्र हमारा।
    फहरा ध्वज आकाश,तिरंगा सबसे प्यारा।।
    केसरिया है उच्च,त्याग की याद दिलाता।
    आजादी का मूल्य,सदा सबको समझाता।।

    सिर केसरिया पाग,वीर की शोभा होती।
    सब कुछ कर बलिदान,देश की आन सँजोती।।
    शोभित पाग समान,शीश केसरिया बाना।
    देशभक्त की शान,इसलिए ऊपर ताना।।

    श्वेत शांति का मार्ग, सदा हमको दिखलाता।
    रहो एकता धार, यही सबको समझाता।।
    रहे शांत परिवेश , उन्नति चक्र चलेगा।
    बनो नेक फिर एक,तभी तो देश फलेगा।।

    समय चक्र निर्बाध,सदा देखो चलता है।
    मध्य विराजित चक्र, हमें यह सब कहता है।।
    भाँति भाँति ले बीज,फसल तुम नित्य लगाओ।।
    शस्य श्यामला देश, सभी श्रमपूर्वक पाओ।।

    धरतीपुत्र किसान, तुम इनका मान बढ़ाओ।
    करो इन्हें खुशहाल,समस्या मूल मिटाओ।।
    रक्षक देश जवान, शान है वीर हमारा।
    माटी पुत्र किसान,बनालो राज दुलारा।।

    अपना एक विधान , देश के लिए बनाया।
    संशोधन के योग्य, लचीला उसे सजाया।।
    देश काल परिवेश ,देखकर उसे सुधारें।
    कठिनाई को देख, समस्या सभी निवारें।।

    अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा।
    शुभ संस्कृति परिवेश,तिरंगा सबसे न्यारा।।
    बँधे एकता सूत्र, पर्व गणतंत्र मनाएँ।
    विश्व शांति बन दूत,गान भारत की गाएँ।।

    --गीता उपाध्याय'मंजरी' रायगढ़ छत्तीसगढ़