Author: कविता बहार

  • विवाह-एक पवित्र बंधन

    विवाह-एक पवित्र बंधन

    विवाह एक संस्कृति व संस्कार है।
    विवाह बंधनों का मधुर व्यवहार है।
    दो पवित्र आत्माओं का होता मिलन।
    लुटाएँ एक दूजे पर असीम प्यार है।1।
    सात जन्मों का है ये प्यारा बंधन।
    वंश बेला बढ़ाने का नाम है जीवन।
    केवल बंधन नहीं विवाह स्त्री पुरुष का।
    दो पवित्र आत्माओं का है मधुर मिलन।2।
    सुख दुख बाँटने का रास्ता है विवाह।
    जीवन भर साथ निभाने का वास्ता है विवाह।
    प्यार मोहब्बत से दो दिलों का होता मेल।
    एक मंजिल तक पहुँचने का रास्ता है विवाह।3।
    विवाह के लिए दिल में सपना संजोना पड़ता है।
    गीले शिकवे को मिटा मधुर अहसास बढ़ाना पड़ता है।
    विवाह कोई बंधन नहीं है मधुर,सात जन्मों का।
    जीवन भर एक दूजे पर जान लुटाना पड़ता है।4।


    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    साहित्य साधना सभा छत्तीसगढ़
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
    तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ. ग.) पिन- 493558
    मोब.- 8103535652
    9644035652
    ईमेल- [email protected]

  • घर का संस्कार है बेटी

    घर का संस्कार है बेटी


    घर आँगन की शान,अभिमान है होती।
    माँ बाप की जान पहचान होती है बेटी।
    अक्सर शादी के बाद पराए हो जाते हैं बेटे।
    दो कुलों की मान-सम्मान होती है बेटी।1।
    माँ के रूप में ममता की मूरत है बेटी।
    पत्नी के रूप में फर्ज की सूरत है बेटी।
    पीहर व ससुराल के बीच सामंजस्य बिठाये।
    दया,त्याग,प्रेम की सच्ची मूरत है बेटी।2।
    भाई के कलाई में रेशम का प्यार है बेटी।
    बहन के लिए दुलार,घर का व्यवहार है बेटी।
    घर घर में पूजी जाए,तीज त्यौहार है बेटी।
    बेटा एक विचार है तो घर का संस्कार है बेटी।3।

    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
    तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ. ग.) पिन- 493558
    मोब.- 8103535652
              9644035652
    ईमेल- [email protected]

  • मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ / गोपालदास “नीरज”

    मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ / गोपालदास “नीरज”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
    हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?

    मीलों जहाँ न पता खुशी का
    मैं उस आँगन का इकलौता,
    तुम उस घर की कली जहाँ नित
    होंठ करें गीतों का न्योता,
    मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
    मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

    मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
    बदनामी ने काज निकाले
    तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
    नभ ने सब तारे जड़ डाले
    मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
    मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

    मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
    उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
    तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
    रोज़ नए कंगन जड़वाए,
    तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
    जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

    इतना दानी नहीं समय जो
    हर गमले में फूल खिला दे,
    इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
    हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
    मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
    जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
    मैं पीड़ा का…

  • हार न अपनी मानूँगा मैं ! / गोपालदास “नीरज”

    हार न अपनी मानूँगा मैं ! / गोपालदास “नीरज”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हार न अपनी मानूँगा मैं !

    चाहे पथ में शूल बिछाओ
    चाहे ज्वालामुखी बसाओ,
    किन्तु मुझे जब जाना ही है —
    तलवारों की धारों पर भी, हँस कर पैर बढ़ा लूँगा मैं !

    मन में मरू-सी प्यास जगाओ,
    रस की बूँद नहीं बरसाओ,
    किन्तु मुझे जब जीना ही है —
    मसल-मसल कर उर के छाले, अपनी प्यास बुझा लूँगा मैं !

    हार न अपनी मानूंगा मैं !

    चाहे चिर गायन सो जाए,
    और ह्रदय मुरदा हो जाए,
    किन्तु मुझे अब जीना ही है —
    बैठ चिता की छाती पर भी, मादक गीत सुना लूँगा मैं !

    हार न अपनी मानूंगा मैं !

  • खिलते हैं गुल यहाँ / गोपालदास “नीरज”

    खिलते हैं गुल यहाँ / गोपालदास “नीरज”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    खिलते हैं गुल यहाँ, खिलके बिखरने को
    मिलते हैं दिल यहाँ, मिलके बिछड़ने को
    खिलते हैं गुल यहाँ…

    कल रहे ना रहे, मौसम ये प्यार का
    कल रुके न रुके, डोला बहार का
    चार पल मिले जो आज, प्यार में गुज़ार दे
    खिलते हैं गुल यहाँ…

    झीलों के होंठों पर, मेघों का राग है
    फूलों के सीने में, ठंडी ठंडी आग है
    दिल के आइने में तू, ये समा उतार दे
    खिलते हैं गुल यहाँ…

    प्यासा है दिल सनम, प्यासी ये रात है
    होंठों मे दबी दबी, कोई मीठी बात है
    इन लम्हों पे आज तू, हर खुशी निसार दे
    खिलते हैं गुल यहाँ …