Author: कविता बहार

  • शरद पूर्णिमा / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’

    शरद पूर्णिमा / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’

    शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे भारत के विभिन्न भागों में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा अश्विन महीने  की पूर्णिमा को मनाई जाती है और इसे विशेष रूप से चंद्रमा से जुड़े धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है।


                  शरद पूर्णिमा

    शरद पूर्णिमा खास, चलो हम पर्व मनाएँ।
    करके पूजन ध्यान, विष्णु श्री वंदन गाएँ।।
    मिले कृपा जग सार, संग में यश को पाएँ।
    पूरे हों सब काज, भक्ति में जन रम जाएँ।।

    चंद्र दरस शुभ रात, अमृत की वर्षा करते।
    सुख समृद्धि सौगात, तृप्ति दे दामन भरते।।
    शीतलता की छाँव, सुखद अति उत्तम प्यारा।
    नभ में शोभित चंद्र, कांति दे जग को सारा।।

    दान करें सब आज, मिले फल अनुपम भारी।
    जीवन हो खुशहाल, मोक्ष के बन अधिकारी।।
    पुण्य कर्म को धार, दिवस का मान बढ़ाएँ।
    काम क्रोध को त्याग, हृदय को शुद्ध बनाएँ।।

    करें दीप का दान, नदी के तट पर जाएँ।
    करके पावन स्नान, पुण्य शुभ फल को पाएँ।।
    शरद पूर्णिमा पर्व, खीर का भोग लगाएँ।
    मिले कृपा भगवंत, धर्म का पथ अपनाएँ।।

                      डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’
                                *रायपुर (छ.ग.)*

  • रावन मारे बर बड़ हुसियार / राजकुमार ‘मसखरे’

    रावन मारे बर बड़ हुसियार / राजकुमार ‘मसखरे’

    इस कविता में समाज के उन लोगों या नेताओं की आलोचना करता है जो जनता के अधिकारों और संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं। “बहुरूपिया” का मतलब ऐसे लोग जो अपनी असली पहचान छिपाकर छल करते हैं। इसे समाज में जागरूकता फैलाने या भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के खिलाफ आवाज उठाने  में अपना रंग दिखाते हैं ।

    रावन मारे बर बड़ हुसियार !

    रावन मारे बर बनगे बड़ हुसियार
    सजधज के मटमट ले होगे तियार,
    काली जेन हरियर बेशरम रिहिन
    आज बनगे बड़ पड़री खुसियार !

    नकली रावन ल नकली ह मारत हे
    बता तो येला मारे के का अधिकार,
    मारना हे त बने मार न रे अइबी
    तोर अंतस म घुसरे रावन ल मार !

    ले बता राम के, के ठन गुन हवय
    रावन के गुन घलो नइ हे दू- चार,
    रावन के मुड़ी तो दसे रिहिस होही
    तुँहर तो चारो मुड़ा ये हवय हज़ार !

    इँहा कइ नकली बाबा,नेता,महंत
    येला सोझिया के ठाढ़ो भुर्री बार ,
    अब अइसन रावन ल खोज मारव
    तभे ये देश,समाज म होही सुधार !

    ये कागज़,पैरा भूसा के ल रहन दे
    जेन छेल्ला घुमत हे तेला जोहार ,
    जनता के बाँटा ल जेन डकारत हे
    अइसन बहुरूपिया ल धर कचार !

    राजकुमार 'मसखरे'

    भदेरा (गंडई),जि.-KCG

  • बड़ अच्छा लगथे / राजकुमार ‘मसखरे

    बड़ अच्छा लगथे / राजकुमार ‘मसखरे

    बड़ अच्छा लगथे

    “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया”
    ये नारा बड़ अच्छा लगथे !
    ये नारा बनइया के मन भर
    पयलगी करे के मन करथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    गुजराती लॉज/राजस्थानी लॉज म रुकथे
    हरियाणा जलेबी/बंगाली चाय के बड़ई करथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    अपन घर म कोनों काम-कारज ल धरथे
    बीकानेर/जलाराम ले मन भर खरीदी करथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    बाहिर वाले के कृषि फारम म काम करथे
    साउथ वाले के नर्सिंगहोम के चाकरी म जरथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    ये परदेशिया नेता मन के गुलामी करथे
    इंखर जय,गुनगान करत,झण्डा धर निकलथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

           — *राजकुमार ‘मसखरे’*

  • बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी / राकेश राज़ भाटिया

    बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी / राकेश राज़ भाटिया

    “बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी” – राकेश राज़ भाटिया द्वारा लिखी गई यह खूबसूरत कविता बेटियों के अनमोल होने का एहसास कराती है। बेटियाँ वो उपहार हैं, जो जीवन में खुशियों और दुआओं की सौगात लाती हैं।

    बेटियाँ हमारी जिंदगी में खुशियाँ लाती हैं, जो हमें आशीर्वादित करती हैं और हमारे जीवन को आनंद और प्रेम से भर देती हैं। उनकी मासूमियत और चुलबुली मुस्कान हर दिन को एक नया उत्सव बना देती है।

    अन्तर्राष्ट्रीय बेटी दिवस पर कविता

    बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी


    गर्म मौसम में भी हैं शीत हवाओं जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

    महक उठें तो ये  गुलों का काम करती हैं,
    चहकती हैं तो चिड़ियों का काम करती हैं,
    एक परिवार तक नहीं रहती है ये सीमित,
    घरों को जोड़ने में पुलों का काम करतीं हैं।
    शहर की भीड़ को बना देती हैं गाँवों जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी,

    लाडली होती जाती है जैसे-२ बड़ी होतीं हैं,
    कड़े इन्तिहानों में तो  ये और कड़ी होती हैं,
    बन जाती हैं सहारा अक्सर  दो घरों का ये,
    सुख दुःख में साथ आपनों के खड़ी होतीं है,
    असर करतीं हैं बातें इनकी दवाओं जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।

    वो लोग जो यहाँ यूँ दोहरी निगाह रखते हैं,
    जैसे दिल में छिपा कर  वो गुनाह रखते हैं,
    दुआएँ माँगने जाते है दर पर देवी के मगर,
    अपने मन में  सिर्फ बेटे की  चाह रखते हैं,
    अपने मन वो जैसे यूँ कोई गुनाह रखते है,
    इबादतें उनकी तो है राज़ गुनाहों जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

    राकेश राज़ भाटिया
    थुरल-काँगड़ा हिमाचल प्रदेश
    सम्पर्क- 9805145231,  7018848363

  • बिटिया का सुख प्यारा / शिवराज सिंह चौहान

    बिटिया का सुख प्यारा / शिवराज सिंह चौहान

    बिटिया का सुख प्यारा


    जग में सुंदर और सलोना,
                        रिश्ता है यह न्यारा।
    प्यार जहां सरोबार बरसता,
                    बिटिया का सुख प्यारा।।


    बेटी ::
    मात पिता पर कभी भी कोई,
                           संकट है आ जाए।
    दूर बैठ भी दुख को “बांटे,”
                       वह “बेटी” कहलाए।।


    पुत्री ::
    नहीं भरोसा आज किसी का,
                            बेटा हो या भाई।
    “पूरी उतरे” बात पे अपनी,
                        “पुत्री” वही कहाई।।


    तनया ::
    मात-पिता से दूरी करना,
                         नहीं जिसे है आता।
    “तन या मन” से जुड़ी रहे,
                   है ये “तनया” का नाता।।


    सुता ::
    कच्चे “सूत सा” ताना-बाना,
                       रहता हरदम घिसता।
    ता-उम्र रहे जो सुंदरतम,
                  है वही “सुता” का रिश्ता।।


    नंदिनी ::
    नो दिन के नवरात्रि सी वो,
                          हर पल रहती पास।
    ना रात को देखे,”ना ही दिन,”
                       “नंदिनी” नाता खास।।


    आत्मजा ::
    जहां आत्मिक आकर्षण और,
                          प्रीत है पाई जाती।
    मात पिता से “जुड़े आत्मा,”
                वही “आत्मजा” कहलाती।।



                    ~~ शिवराज सिंह चौहान
                                नान्धा, रेवाड़ी
                               (हरियाणा)