गृहलक्ष्मी पर कविता/ डॉ नीतू दाधीच व्यास

तुम आओगी क्या? मैं तुम्हें अपनी गृहलक्ष्मी बनाऊंगा,तुम आओगी क्या?बस तुम संग एक छोटा सा संसार बसाऊंगा,तुम आओगी क्या? नहीं लाऊंगा तोड़कर कोई चाँद – तारें,न ही जुगनू से रोशनी कराऊंगा।मैं तो तुम्हारे हाथों से ही, घर के मंदिर में दीप जलवाऊँगा।तुम आओगी क्या? नहीं करूंगा जन्म जन्म के साथ के वादे,ना ही कयामत में … Read more

खूबसूरत है मग़र बेजान है / रेखराम साहू

खूबसूरत है मग़र बेजान है खूबसूरत है मग़र बेजान है,ज़िंदगी से बुत रहा अनजान हैं। बेचता ताबीज़ है बहुरूपिया,है वही बाबा, वही शैतान है। माँगता है,शर्त रखता है कभी,‘प्यार का दावा’, अभी नादान है । रूह की कीमत बहुत नीचे गिरी,खूब मँहगा हो गया सामान है। है किशन का भक्त,इस पर शक उसे,कह रहा है,” … Read more

शेष शव शिव पर कविता / रेखराम साहू

शेष शव शिव पर कविता / रेखराम साहू शेष शव,शिव से जहाँ श्रद्धा गयी सभ्यता किस मोड़ पर तू आ गयी,कालिमा तुम पर भयंकर छा गयी। लालिमा नव भोर की है लीलकर,पूर्णिमा की चाँदनी, तू खा गयी। चाट दी चौपाल तुमने ऐ चपल !एकता का तीर्थ तू ठुकरा गयी। उड़ रही आकाश में अभिमान से … Read more

कइसे के लगही जाड़ !/ राजकुमार ‘मसखरे

कइसे के लगही जाड़ ! दुंग-दुंग ले उघरा बड़े बिहनियाझिल्ली,कागज़ बिनैया ल देख,कचरा म खोजत हे दाना-पानीतन  म लपटाय फरिया ल देख ! होत मूंदराहा ये नाली, सड़क मखरेरा,रापा के तैं धरइया ल देख,धुर्रा, चिखला म जेन सनाय हवैअइसन बुता के करइया ल देख ! मुड़ म उठाये बोझा,पेलत ठेलादुरिहा ले आये हे,दुवारी म देख,हाँका … Read more

जुल्मी अगहन पर कविता / शकुन शेंडे
बचेली

    जुल्मीअगहन जुलुम ढाये री सखी, अलबेला अगहन!शीत लहर की कर के सवारी, इतराये चौदहों भुवन!! धुंध की ओढ़नी ओढ़ के धरती, कुसुमन सेज सजाती।ओस बूंद नहा किरणें उषा की, दिवस मिलन सकुचाती।विश्मय सखी शरमाये रवि- वर, बहियां गहे न धरा दुल्हन!!जुलूम….. सूझे न मारग क्षितिज व्योम- पथ,लथपथ पड़े कुहासा।प्रकृति के लब कांपे-न बूझे,वाणी की … Read more