Author: कविता बहार

  • चित्र मित्र इत्र विचित्र पर कविता

    चित्र मित्र इत्र विचित्र पर कविता

    चित्र रचित कपि देखकर,डरती सिय सुकुमारि।
    अगम पंथ वनवास में, रहती जनक दुलारि।।

    मित्र मिले यदि कर्ण सा, सखा कृष्ण सा साथ।
    विजित सकल संसार भव, बने त्रलोकी नाथ।।

    गन्धी चतुर सुजान नर, बेच रहे नित इत्र।
    सूँघ परख कर ले रहे, ग्राहक बड़े विचित्र।।

    मित्र इत्र सम मानिये, यश सुगंध प्रतिमान।
    भव सागर के चित्र को, करते सुगम सुजान।।

    शर्मा बाबू लाल ने, दोहे लिख कर पाँच।
    इत्र मित्र के चित्र को, शब्द दिए मन साँच।।
    . _____
    © बाबू लाल शर्मा,विज्ञ

  • शिखण्डी पर कविता

    शिखण्डी पर कविता


    पार्थ जैसा हो कठिन,
    व्रत अखण्डी चाहिए।
    *आज जीने के लिए,*
    *इक शिखण्डी चाहिए।।*

    देश अपना हो विजित,
    धारणा ऐसी रखें।
    शत्रु नानी याद कर,
    स्वाद फिर ऐसा चखे।

    सैन्य हो अक्षुण्य बस,
    व्यूह् त्रिखण्डी चाहिए।।
    आज जीने के…….

    घर के भेदी को अब,
    निश्चित सबक सिखाना।
    आतंकी अपराधी,
    को आँखे दिखलाना।

    सुता बने लक्ष्मी सम,
    भाव चण्डी चाहिए।।
    आज जीने के…….।

    सैन्य सीमा मीत अब,
    हो सुरक्षित शान भी।
    अकलंकित न्याय रखें,
    सत्ता व ईमान भी।

    सिर कटा ध्वज को रखे,
    तन घमण्डी चाहिए।।
    आज जीने………..।
    . °°°°°°°°°
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
    ?????????

  • सूरज पर कविता

    सूरज पर कविता

    सुबह सबेरे दृश्य
    सुबह सबेरे दृश्य

    मीत यामिनी ढलना तय है,
    कब लग पाया ताला है।
    *चीर तिमिर की छाती को अब,*
    *सूरज उगने वाला है।।*

    आशाओं के दीप जले नित,
    विश्वासों की छाँया मे।
    हिम्मत पौरुष भरे हुए है,
    सुप्त जगे हर काया में।

    जन मन में संगीत सजे है,
    दिल में मान शिवाला है।
    चीर तिमिर…………. ।

    हर मानव है मस्तक धारी,
    जिसमें ज्ञान भरा होता।
    जागृत करना है बस मस्तक,
    सागर तल जैसे गोता।

    ढूँढ खोज कर रत्न जुटाने,
    बने शुभ्र मणि माला है।
    चीर ………………….।

    सत्ता शासन सरकारों मे,
    जनहित बोध जगाना है।
    रीत बुराई भ्रष्टाचारी,
    सबको दूर भगाना है।

    मिले सभी अधिकार प्रजा को,
    दोनो समय निवाला है।
    चीर तिमिर……………..।

    हम भी निज कर्तव्य निभाएँ,
    बालक शिक्षित व्यवहारी।
    देश धरा मर्यादा पालें,
    सत्य आचरण हितकारी।

    शोध परिश्रम करना होगा,
    लाना हमे उजाला है।
    चीर तिमिर …………..।
    . ???
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा बौहरा
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
    ?????????

  • शिक्षा पर कविता

    शिक्षा पर कविता

    शिक्षा पर कविता

    शिक्षा का अधिकार सभी को
    सभी शिक्षित कीजिये।
    कहते है महादान इसको
    दान सबको दीजिए।।1।।


    शिक्षा का ये क्षेत्र असीमित
    अनुसंधान कीजिये।
    अधुनातन नवतकनीकों से
    जनकल्याण कीजिये।।2।।


    शिक्षा से कोई भी वंचित
    रहे ना संसार मे।
    शिक्षा की सब अलख जगाएं
    हर एक परिवार में।।3।।
    ???
    शिक्षा जीवन का मूल मंत्र
    सबको सुलभ कराएं।
    मेहनतकश और शोषित भी
    सब जन शिक्षा पाएं।।4।।


    बुनियादी शिक्षा को घर घर
    सब मिलकर पहुँचाओ।
    धर्म जाति मजहब इन सबको
    शिक्षा में ना लाओ।।5।।


    शिक्षा से ही इस समाज को
    सुसंस्कृत बनाईये।
    समृद्धि भी मिलती है इससे
    सर्वजन अपनाइए।।6।।


    शिक्षा ही सम्मान दिलाती
    शिक्षा अवश्य पाएं।
    मिलकर ज्ञान का प्रसार करें
    अज्ञानतम हटाएं।।7।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • सार छंद विधान – बाबूलालशर्मा

    सार छंद विधान

    ऋतु बसंत लाई पछुआई, बीत रही शीतलता।
    पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता।

    नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।
    तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण।

    बिना देह के कामदेव जग, रति को ढूँढ रहा है।
    रति खोजे निर्मलमनपति को,मन व्यापार बहा है।

    वृक्ष बौर से लदे चाहते, लिपट लता तरुणाई।
    चाह लता की लिपटे तरु के, भाए प्रीत मिताई।

    कामातुर खग मृग जग मानव, रीत प्रीत दर्शाए।
    कहीं विरह नर कोयल गाए, कहीं गीत हरषाए।

    मन कुरंग चातक सारस वन, मोर पपीहा बोले।
    विरह बावरी विरहा तन मे, मानो विष मन घोले।

    विरहा मन गो गौ रम्भाएँ, नेह नीर मन चाहत।
    तीर लगे हैं काम देव तन, नयन हुए मन आहत।

    काग कबूतर बया कमेड़ी, तोते चोंच लड़ाते।
    प्रेमदिवस कह युगल सनेही, विरहा मनुज चिढ़ाते।

    मेघ गरज नभ चपला चमके, भू से नेह जताते।
    नीर नेह या हिम वर्षा कर, मन का चैन चुराते।

    शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर, बन जाते अभिसारी।
    भालू चीते बाघ तेंदुए, करे प्रणय हित यारी।

    पथ भूले आए पुरवाई, पात कली तरु काँपे।
    मेघ श्याम भंग रस बरसा, यौवन जगे बुढ़ापे।

    रंग भंग सज कर होली पर,अल्हड़ मानस मचले।
    रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,खड़ी फसल भी पक ले।

    नभ में तारे नयन लड़ा कर, बनते प्रीत प्रचारी।
    छन्न पकैया छन्न पकैया, घूम रही भू सारी।


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान