Author: कविता बहार

  • मातर तिहार पर कविता-गोकुल राम साहू

                मातर तिहार पर कविता

    चलना दीदी चलना भईया,
    मातर तिहार ला मनाबोन।
    बड़े फजर ले सुत उठ के,
    देवी देवता ला जगाबोन।।

    हुँगूर धूप अगर जलाके,
    देवी देवता ला मनाबोन।
    रिक्छिन दाई कंदइल मड़ई संग,
    मातर भाँठा मा जुरियाबोन।।

    मोहरी बाजा अउ रऊत संग,
    नाचत गावत सब जाबोन।
    मखना कोचई अउ दार चउँर,
    घरो-घर मा जोहारबोन।।

    कारी लक्ष्मी भइँस मन ला,
    मयूर पाँखी सोहइ पहिराबोन।
    मखना ढ़ुलोके अखाड़ा जमाके,
    खो-खो कबड्डी खेलाबोन।।

    भाई चारा अउ एकता के,
    सुग्घर संदेश ला बगराबोन।
    चलना दीदी चलना भईया,
    मातर तिहार ला मनाबोन।।

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                 ✍रचना कार✍
                   गोकुल राम साहू
                धुरसा-राजिम(घटारानी)
            जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
                 मों.9009047156
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  • कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली किसकी दीवाली
    जेब भी खाली बैंक भी खाली

    हर तरफ हुआ है धूंआ-धूंआ
    पर्यावरण भी दूषित है हुआ

    जीव-जन्तु और पशु-पखेर
    आतिशी दहशत में हुए ढेर

    कितनों के ही घर बार जले
    निकला दीवाला हाथ मले

    अस्थमा रोगी तड़प रहे हैं
    उन्मादी अमन हड़प रहे हैं

    नकली मावा, नकली पनीर
    खाई मिठाई हो कर अधीर

    लूट-खसोट को सजा बाजार
    जहाँ लूटते हैं बिना हथियार

    हर चौक पर हैं टूने-टपूने
    अंधविश्वास. पाखंड हुए दूने

    सिल्ला कैसा बढ़ा उन्माद
    लड़ी पटाखे घातक उत्पाद

    कैसी दीवाली किसकी दीवाली
    जेब भी खाली बैंक भी खाली

    -विनोद सिल्ला

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  • मिल कर दिवाली को मनाएँ हम- प्रवीण त्रिपाठी

    मिल कर दिवाली को मनाएँ हम

    चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।*

    *हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*

    *मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।*

    *करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।*

    *भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।*

    *जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।*

    *चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।*

    *करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।*

    *लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।*

    *लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।*

    *जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।*

    *उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।*

    *गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।*

    *चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।*

    *उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।*

    *लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।*

    *बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।*

    *दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।*

    *उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।*

    *हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*

    *प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019*

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    चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।
    हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।

    मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।
    करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।
    भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।
    जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।
    चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।
    करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।
    लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।
    लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।
    जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।
    उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।
    गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।
    चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।
    उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।
    लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।
    बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।
    दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।
    उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।
    हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।

    प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019
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  • कवयित्री वर्षा जैन “प्रखर” आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    दीपावली की पावन बेला
    महकी जूही, खिल गई बेला
    धनवंतरि की रहे छाया
    निरोगी रहे हमारी काया
    रूप चतुर्दशी में निखरे ऐसे
    तन हो सुंदर मन भी सुधरे

    महालक्ष्मी की कृपा परस्पर
    हम सब पर हरदम ही बरसे
    माँ लक्ष्मी के वरद हस्त ने
    इतना सक्षम हमें किया है
    दिल में सबके प्यार जगाएं
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें

    चहुँ ओर है आज दीवाली
    दीपोत्सव की सजी है थाली
    किसी के आँगन में है खुशियाँ 
    किसी का आँगन हो गया खाली
    आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं
    सबका आँगन भी चमकाएं

    नौनिहालों को बाँटे खुशियाँ
    उनके घर भी मने दीवाली
    दिये तले क्यूँ रहे अंधेरा
    उसको क्यों तम ने है घेरा
    आस का एक दीपक जलाएँ
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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  • मन पर कविता -शशिकला कठोलिया

    मन पर कविता

    रे मेरे मन ,
    ये तू क्या कर रहा है ,
    जो तेरा नहीं 
    उसके लिए तू 
    क्यों रो रहा है? 
    दफन कर दे अपने सीने में, 
    अरमानों को ,
    जो सागर की लहरों की तरह, 
    हिलोरे ले रहा है ,
    यादों को आंखों में 
    संजोकर रख, 
    जो नदी की धारा की तरह ,
    बहे जा रहा है ,
    रे मेरे मन,
    मत पाल अरमान दिल में इतना,
    जो तू आंसू को 
    एक एक मोती की तरह, 

    पिरोए जा रहा है।

    श्रीमती शशिकला कठोलिया
    उच्च वर्ग शिक्षिका
    अमलीडीह, डोंगरगांव
    जिला-राजनांदगांव (छ ग)
    मो न 9340883488
            9424111041
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