Author: कविता बहार

  • कोठी तो बढ़हर के छलकत ले भरगे

    कोठी तो बढ़हर के छलकत ले भरगे

    कोठी तो बढ़हर के* छलकत ले भरगे।
    बइमानी के पेंड़ धरे पुरखा हा तरगे॥
    अंतस हा रोथे संशो मा रात दिन।
    गरीब के आँसू हा टप-टप ले* ढरगे॥
    सुख के सपुना अउ आस ओखर मन के।
    बिपत के आगी मा सब्बो* हा  जरगे॥
    सुरता के रुखवा हा चढ़े अगास मा।
    वाह रे वा किस्मत! पाना अस झरगे*
    माछी नहीं गुड़ बिना हवे उही हाल।
    देख के गरीबी ला मया मन टरगे॥
    जिनगी अउ मन मा हे कुल्लुप अँधियार।
    रग-बग अंजोर भले बाहिर बगरगे॥
    वाह रे विकास सलाम हावय तोला।
    धान, कोदो, तिवरा, मण्डी मा सरगे॥
    नाली मा काबर भोजन फेंकाथे।
    गरीबी मा कतको, लाँघन तो  मरगे॥ 
    लोगन के कथनी अउ करनी ला देख।
    “निर्मोही” बिचारा, अचरज मा परगे॥
         बालक “निर्मोही”
               बिलासपुर
            30/05/2019
                 20:02
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  • कहें सच अभी वो जमाना नहीं है

    कहें सच अभी वो जमाना नहीं है

    कहें सच अभी वो जमाना नहीं है।
    यहाँ सच किसी को पचाना नहीं है॥
    मिले जो अगर यूँ किसी को अँगाकर। 
    खिला दो उसे तो पकाना नहीं है॥
    लगे लूटने सब निठल्ले यहाँ पर।
    उन्हें तो कमाना धमाना नहीं है॥
    मुसीबत अगर आ गई तो फँसोगे। 
    यहाँ बच सको वो बहाना नहीं है॥
    पसीना बहाया यहाँ पर कमाने। 
    मिले मुफ्त में वो खजाना नहीं है॥
    समझना अगर है तभी तो बताओ।
    अकारण मुझे सर खपाना नहीं है॥
    रहूँ सिर्फ बालक अगर हो सके तो।
    बड़ा नाम कोई कमाना नहीं है॥
    बालक “निर्मोही”
          बिलासपुर
      26/05/2019
            23:30
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  • बाते सोलह आने सच है

    बाते सोलह आने सच है

    पानी के लिए कुँएँ बावली नल में होता है खूब जमाव
    महाराष्ट्र में लगा था धारा 144 देख कर भीड़ में टकराव

    पानी के स्रोतों के पास समूह नहीं हो सकते थे खड़े
    जल संकट से जूझ रहे हैं धीरे धीरे राज्य छोटे बड़े

    आगे चल कर के पानी के लिए छिड़ सकता है विश्व युद्ध
    वैसे भी पानी पीने को नहीं मिल रहा है सभी को शुद्ध

    प्राकृतिक आपदा यह है नहीं खा कर खाना क्या पिएंगे
    पृथ्वी का जल स्तर तेजी से घट रहा है कैसे हम जिएंगे

    रोकेंगे नदिया पानी के लिए हर कोई बहुत लड़ेंगे
    बाँध तालाब डबरे टंकी में घेरे डालकर ताला जड़ेंगे

    भयावह हो सकती है स्थिति अगर हम पेड़ को काटते रहे
    हो सकता है हकीकत पानी पीने के जगह चाटते रहे

    पेड़ो की जड़े जो पानी समेटती है उसे छांट रहे हैं
    फर्नीचर दहन मकान जरूरतों के लिए पेड़ काट रहे हैं

    कृष्णा कावेरी गोदावरी का दर्द हम सब देख रहे हैं
    गंगा कब तक बहे रोज अस्थियां आस्था में फ़ेंक रहे हैं

    डिब्बा बंद पानी खरीद पीना ख्वाब में नहीं सोचा होगा।
    शायद स्वार्थ के पंजो ने पानी के अस्तित्व को नोचा होगा

    पानी के लिए देख त्राहि त्राहि उठा पटक है और रार है
    1989 में 22 नदिया थी प्रदूषित अब यह तो बढ कर के 302 से हो चुकी पार है

    आजादी के समय प्रत्येक व्यक्ति के लिए 100 लीटर था उपलब्ध
    वर्तमान में यह घटकर के बीस लीटर जिससे सभी हैं स्तब्ध

    पानी की समस्या के कारण अब आयात में फरक आ गया
    लगता है जीते जी धरा में हमारे लिए नरक आ गया

    2040 तक साठ करोड़ बच्चो को लग सकती है पानी समस्या चोट
    बाते सोलह आने सच है पढ़ लो यूनिसेफ की रिपोर्ट

    राजकिशोर धिरही

    तिलई,जांजगीर छत्तीसगढ़

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  • कविता मेरी ऐसी हो

    कविता मेरी ऐसी हो

    कविता मेरी  ऐसी हो
    जिसमें हो कोई संदेश ।
    संतों की वाणी हो जिसमें
    गीता का उपदेश ।
    गौतम हो गुरू नानक हो
    हो उनकी गुरु वाणी
    गंगा जल की पवित्रता हो
    महानदी का पानी ।
    गंगा से सिंचित कविता को
    मिले नया  परिवेश ।
    संतों की वाणी हो जिसमें
    गीता का उपदेश ।
    लक्ष्मी बाई हो कविता में
    भगत सिंग  बलिदानी ।
    विस्मिल और सुभाष भी हो
    इतिहास की अमर कहानी
    मेरी कविता में  छुपा हो
    गाँधी जी का वेश ।
    संतों की वाणी हो जिसमें
    गीता का उपदेश ।
    मेहनत हो जिसमें कृषकों की
    खेतों की हरियाली ।
    धान का कटोरा  हो
    होली और दिवाली ।
    रंग गुलाल सने कविता को
    चकित हो दुनिया देख ।
    संतों की वाणी हो जिसमें
    गीता का उपदेश ।
    सिया राम हो भाई भरत हो
    और हो अवध नगरिया ।
    भातृ प्रेम से भरा हुआ हो
    और कौशल्या मैंया ।
    कल बहती सरयू हो
    जिससे मिल जाये वेग ।
    संतों की वाणी हो जिसमें
    गीता का हो संदेश ।
    राधा कृष्ण का अमर प्रीत हो
    ग्वालों का अपना पन ।
    “मीरा ” हो गिरधर दिवानी
    कान्हा का बृन्दाबन ।
    विरहन गोपियों को मिले
    उधो का संदेश ।
    संतों की वाणी हो जिसमें
    गीता का उपदेश ।।
    हो चाहे वह हिन्दू मुस्लिम
    हो वह सिख ईसाई ।
    राम रहीम  अल्लाह एक है
    हम सब भाई भाई ।
    गीता बाईबल संग संग गूँजे
    न हो मन में कोई द्वेष ।
    संतों की वाणी हो जिसमें
    गीता का उपदेश
    कविता मेरी ऐसी हो जिसमें
    हो कोई संदेश ।
    संतों की—
    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
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  • जीवन की है परिभाषा

    जीवन की है परिभाषा

    अक्षर अक्षर भावों से  गुंजित
    कल्पना की मिठास है कविता
    कवि मन की मर्म अभिव्यंजना
    मृदु निर्झरित एहसास है कविता l
    सुख दुख से परिपूर्ण जीवन की
    शब्द शक्ति की आशा है कविता
    रवि किरणों से भी सशक्त है ये
    जीवन की है परिभाषा कविता l
    मन  हृदयभाव उद्गारों की  निधि
    कपोल कल्पित स्मित है कविता
    मरु को  भी  मधुमय  कर दे जो
    कवि मेधा से सृजित है  कविता l
    हंसी, रुदन, मिलन, बिछोह की
    विविध अभिव्यंजना है कविता
    जीवन के हर  क्षेत्र, विषय  की
    जीवंत जागृत कल्पना है कविता l
    समय के एकाकीपन लम्हों में
    सबसे निकट परम साथी कविता
    ख़ुशी, उमंग, उत्सव  के  पलों  में
    जीवन को सरस बनाती कविता l
    अज्ञानता, जड़ता  के  जगत  में
    रोशनी का दीप जलाती  कविता
    कवि  के छंद बंद अलंकारों को
    सुंदर शब्दों में सजाती कविता l
    कल्पना के अलौकिक संसार से
    कागज़ पर उतरती  है कविता
    मुरझाये निराश द्रवित मन में भी
    ऊर्जा का संचार करती है कविता l
    ईश्वर  प्रदत्त यह  कवित्व शक्ति 
    कवि की पहचान कराती कविता
    कोमल एहसासों की थाती यह
    तम में नव विहान लाती कविता l
    माँ वीणावादिनी का वरदान  ये
    पंक में खिलता कमल है कविता
    भावों की अभिव्यक्ति ये कवि की
    शायर की मधुर गज़ल है कविता l

    कुसुम लता पुन्डोरा 
    आर के पुरम
    नई दिल्ली
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