Author: कविता बहार

  • कैसे गीत लिखूं

    कैसे गीत लिखूं

    अब मैं कैसे गीत लिखूं
    कैसे प्रीत की रीत लिखूं

    ना कोई संगी ना कोई साथी
    जैसे तेल बिन जले है बाती

    कैसे प्रीत की रीत लिखूं..

    ना कोई मेल ना है मिलाप
    फिर क्यों बिछोह का है आलाप

    अब कैसे मैं गीत लिखूं..

    इक बस तेरा ही सहारा था बस
    हर पल संग तेरे ,गंवारा था बस…

    तूनें ही मुंख मोड़ लिया
    बरबस नाता तोड़ लिया

    कैसे प्रीत की रीत लिखूं..

    मेरे गीत के बोल थे तुम
    मेरी नज़र में अनमोल थे तुम

    मैं ही निकली सूखी पाती
    जो बिन हवा के उड़ती जाती

    अब मैं कैसे …

    तुमको न पाकर मैं थी रोई
    यादों में सिमटी सी खोई खोई

    तुम क्यों मुझसे दूर हुये
    न मिलनें को मजबूर हुये

    अब मैं कैसे गीत लिखूं
    कैसे प्रीत की रीत लिखूं…

    कुमुद श्रीवास्तव वर्मा..

  • हिन्दी का शृंगार

    हिन्दी का शृंगार


    आ सजनी संग बैठ
    आज तुझे शृंगार दूँ
    मेरी प्रिय सखी हिंदी
    मैं तुझको संवार दूँ ।

    कुंतिल अलकों के बीच
    ऊषा की सजा कर लालिमा,
    मुकलित कलियों की वेणी
    जूड़े के ऊपर टांग दूँ।
    आ सजनी..।

    ईश वंदन बेंदी शीशफूल
    पावन स्तुतियों के कर्ण फूल,
    अरुण बिंदु सजा भाल
    गहन तम का अंजन सार दूँ।
    आ सजनी..।
    नथनी पे सजा दूँ तेरे
    सद्भावों के सुन्दर मोती,
    अधरों की सुन्दर लाली
    को
    स्वर की मधुर झनकार दूँ।
    आ सजनी…।
    सुन्दर कण्ठहार सजा
    मातृभूमि यशगान,
    बाहों का भूषण बन जाये
    वीरों के शौर्य का बखान।
    छापे तेरे शुभ्र वस्त्र पर
    अरिरक्त के छाप दूँ।
    आ सजनी …।
    अनुपम सजीला हार
    बन जाये शृंगार  रस,
    संयोग वियोग के भावों
    से सज जाये  आभूषण
    प्रेम की अनोखी राह
    के  राज सारे खोल दूँ।
    आ सजनी..।

    कोमल भावों के कंगन
    किंकणी की शोभा संवार,
    पद नूपुर से बज जाये
    प्यार की मधुर झंकार।
    मैं न्यौछावर तेरा यश गूँजे
    तन मन तुझ पर वार दूँ।

    पुष्पा शर्मा”कुसुम”

  • हिन्दी हमारी जान है

    हिन्दी हमारी जान है

    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हमारी जान है,
    हम सबकी जुबान है !!

    रग-रग में बहता लहू ही है,
    ये हर हृदय की तान है!!

    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हमारी जान है!!

    अपने में समाहित कर लेगी..
    हो शब्द किसी..भाषा का कोई..
    समरस भाव से स्वीकारे…
    अपनी संतान को ज्यों माता कोई!

    यही हमारी मान है …
    ये भारत की शान है !
    रग-रग में बहता लहू ही है..
    ये हर हृदय की तान है !!

    खेतों में टपकते श्रम-जल सी
    ये बहता वायु संदल की …
    भारत की धानी चुनर है ये..
    ये कहता हर किसान है !!

    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हैं हम..
    हिन्दी हमारी जान है!
    रग-रग में बहता लहू ही है ..
    ये हर हृदय की तान है!!

    ऐ हिन्दी! इतना उपकार कर दे ..
    अहिन्दियों का भी उद्धार कर दे !!
    अपने आँचल से इन पर भी …
    ममता की बौछार कर दे ..!!

    हे देववाणी की तनया !….
    तू तो..वत्सलता की खान है
    रग-रग में बहता लहू ही है..
    तू हर हृदय की तान है ..!!

    *-@निमाई प्रधान’क्षितिज’*
         रायगढ़, छत्तीसगढ़
    मोबाइल नं.7804048925

  • हिन्दी हमारी शान

    हिन्दी हमारी शान

    हिन्दी न केवल बोली भाषा, 
                           ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी,  
                            ये बड़ी महान है।।……..
    चमकते तारे आसमां के , 
                             हैं भारत के वासी हम।
    कोई चंद्र है कोई रवि, 
                            कोई यहां भी है न कम।।
    आसमां बनकर सदा, 
                              हिन्दी मेरी पहचान है।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा ,
                              ये हमारी शान है।।
    मातृभाषा  है  हमारी,  
                              ये बड़ी महान है।…
    पूरब है कोई पश्चिम, 
                              कोई उत्तर है दक्षिण।
    अलग अलग है बोलियां, 
                              पर एक सबका है ये मन।।
    अंग भारत के हैं सभी, 
                              पर हिन्दी दिल की है धड़कन।
    एकता में बांधे हमको,
                              इस पर हमें अभिमान है।।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा, 
                               ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी, 
                             ये बड़ी महान है।।…
    बनी राष्ट्र भाषा राजभाषा,
                             मातृभाषा भी बनी,
    आओ इसको हम संवारें, 
                             हिन्दी के हम हैं धनी।
    गर्व हिन्दी पर है हमको, 
                            एकता में जोड़े सबको।
    आंकते कम हैं इसे जो, 
                             वे बड़े नादान हैं।।
    हिन्दी न केवल बोली भाषा,
                              ये हमारी शान है।
    मातृभाषा  है  हमारी, 
                               ये बड़ी महान है।।………

                                         …..भुवन बिष्ट
                                  रानीखेत (उत्तराखण्ड)

  • इंसान हो तो सदा सदकर्म करो

    इंसान हो तो सदा सदकर्म करो

    इंसान हो तो सदा सदकर्म करो
    या चुल्लू भर पानी में डूब मरो

    चार दिन की चटक चाँदनी
    फिर तो अंधेरी रात है
    ये जीवन अभिनय मंच है
    कुछ नहीं  संग में जात है

    साँसे मिली है गिनती में
    कभी इसे ना ब्यर्थ करो 

    मुठ्ठी बाँध आए जग में
    बस हाथ पसारे जाना है
    रंगमंच रे दुनिया सारी
    सपनों का ताना बाना है

    पलक खोलकर देख मुसाफिर
    हवाओं  में ना रंग भरो

    कामनाओं की तप्त मरू पर
    मन मृगा भटका जाए
    जाने कब तृष्णा मिटेगी
    मृत्यु बैठी है घात लगाए

    तोड़ दो बंदिशे ब्यर्थ की
    मन पावन निर्मल करो

    मन चंगा तो कठौती में गंगा
    कहते सब मुनि ज्ञानी हैं
    मन को ही साध ले प्यारे
    जिंदगी  आनी जानी है

    काम क्रोध औ मद लोभ से
    मन को सदा विजयी करो

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़