मोहब्बत पर गीत
मोहब्बत जन्म से कुदरत के कण कण में समाई है।
मोहब्बत पीर पैगम्बर सूफियों की बनाई है।।
कोई शक्ति मिटा पायी नहीं जड़ से मोहब्बत को,
मोहब्बत देवताओं से अमर वरदान पाई है।।
मोहब्बत बहनों की राखी भाइयों की कलाई है।
मोहब्बत बाप के आँगन से बेटी की विदाई है।।
मोहब्बत आमिना मरियम यशोदा की दुहाई है।
मोहब्बत बाइबिल कुरान गीता ने पढाई है।।
मोहब्बत दो दिलों की दूरियों में भी समाई है।
मोहब्बत नफरतों के रोगियों की भी दवाई है।।
मोहब्बत टूटे सम्बंधों से जुड़ने की इकाई है।
मोहब्बत भावनाओं का मिलन वर्ना जुदाई है।।
मोहब्बत झीलों सी गहरी पर्वतों की उँचाई है।
मोहब्बत प्रीति की दरिया को सागर से मिलाई है।
मोहब्बत आसमाँ में अनगिनत तारों से छाई है।
मोहब्बत ढूँढ़कर हर स्वर्ग को धरती पर लाई है।।
मोहब्बत अपनों से रूठी और गैरों से पराई है।
मोहब्बत आँसुओं की चन्द बूँदों से नहाई है।।
मोहब्बत बिन गुनाहों के शरम से मुँह छिपाई है।
कि जैसे प्यार करना प्यार से सचमुच बुराई है।।
मोहब्बत आधुनिक आवारा अँधी आशनाई है।
मोहब्बत मनचली मनहूस मैली बेवफाई है।।
मोहब्बत की ये परिभाषा जो लन्दन से मँगाई है।
बेचारी बेशरम बचकानी बुजदिल बेहयाई है।।
क्योंकि
जहाँ भी ढूँढ़ो प्यार मोहब्बत का विकृत आकार मिले।
फैशन का बाजार मिले और चेहरों का व्यापार मिले।
प्यार के बिगड़े इस नक्शे में कुत्सित कुविचार मिले।
दरिंदगी वहशी हैवानी कामुकता व्यभिचार मिले।।
अली इलियास”–
प्रयागराज(उत्तर प्रदेश)