Author: कविता बहार

  • मोहब्बत पर गीत

    मोहब्बत पर गीत


    मोहब्बत जन्म से कुदरत के कण कण में समाई है।
    मोहब्बत  पीर  पैगम्बर  सूफियों  की  बनाई  है।।
    कोई  शक्ति  मिटा  पायी  नहीं जड़ से मोहब्बत को,
    मोहब्बत  देवताओं  से  अमर  वरदान  पाई  है।।

           मोहब्बत बहनों की राखी भाइयों की कलाई है।
           मोहब्बत बाप के आँगन से बेटी की विदाई है।।
           मोहब्बत आमिना मरियम यशोदा की दुहाई है।
           मोहब्बत  बाइबिल  कुरान  गीता  ने पढाई है।।

    मोहब्बत दो दिलों की दूरियों में भी समाई है।
    मोहब्बत नफरतों के रोगियों की भी दवाई है।।
    मोहब्बत  टूटे  सम्बंधों से जुड़ने की इकाई है।
    मोहब्बत भावनाओं का मिलन वर्ना जुदाई है।।


            मोहब्बत  झीलों  सी  गहरी  पर्वतों  की  उँचाई है।
            मोहब्बत प्रीति की दरिया को सागर से मिलाई है।
            मोहब्बत  आसमाँ  में  अनगिनत  तारों से छाई है।
            मोहब्बत  ढूँढ़कर हर स्वर्ग को धरती पर लाई है।।

    मोहब्बत  अपनों  से रूठी और गैरों से पराई है।
    मोहब्बत  आँसुओं  की  चन्द  बूँदों  से नहाई है।।
    मोहब्बत बिन गुनाहों के शरम से मुँह छिपाई है।
    कि जैसे प्यार करना प्यार से सचमुच बुराई है।।


             मोहब्बत  आधुनिक  आवारा  अँधी  आशनाई है।
             मोहब्बत  मनचली  मनहूस  मैली  बेवफाई  है।।
             मोहब्बत की ये परिभाषा जो लन्दन से मँगाई है।
             बेचारी  बेशरम  बचकानी  बुजदिल  बेहयाई है।।

    क्योंकि
      

    जहाँ भी ढूँढ़ो प्यार मोहब्बत का विकृत आकार मिले।
       फैशन  का बाजार  मिले और चेहरों का व्यापार मिले।
       प्यार  के बिगड़े  इस नक्शे में कुत्सित कुविचार मिले।
       दरिंदगी  वहशी  हैवानी  कामुकता  व्यभिचार मिले।।

    अली इलियास”–
                     प्रयागराज(उत्तर प्रदेश)

  • हम कहाँ गुम हो गये

    हम कहाँ गुम हो गये

    हम कहाँ गुम हो गये
    मोह पाश में हम बंधे,
    नयनों मे ऐसे खो गये।
    रही नहीं हमको खबर,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    इंद्र धनुष था आँखों में,
    रंगीन सपनों में खो गये।
    प्रेम की मूक भाषा में,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    कशिश उनमें थी ऐसी,
    बेबस हम तो हो  गये।
    कुछ रहा ना भान हमें,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    डूबे प्यार के सागर में,
    हम गहराई में खो गये।
    इस प्यारे अहसास में,
    हम कहाँ गुम हो गये।।
    दिनांक-31 जनवरी,2019
    मधु सिंघी,नागपुर(महाराष्ट्र)
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • नज़र की नज़र से

    नज़र की नज़र से

    नज़र की नज़र से मुलाक़ात होगी
    हज़ारों सवालों की बरसात होगी
    बयाँ हर सबब हिज़्र का वो करेंगे
    कि हर बेगुनाही की इस्बात होगी
    सर-ए-राह हमसे जताना न उल्फ़त
    गिरेंगे जो आँसू तो आफात होगी
    नज़र फ़ेर ली तुमसे हमने कहीं जो
    अदब पर ख़ताओं की शह-मात होगी
    अगर दिल की राहें जुदा हो गईं तो
    ख़लिश सी कहीं दिल में दिन रात होगी
    इस्बात=साबित करना
    आफात=मुसीबत
    कुसुम शर्मा अंतरा
    जम्मू कश्मीर
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • वीर जवान पर कविता

    23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में याद किया जाता है और भारत में मनाया जाता है। इस दिन 1931 को तीन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।

    महात्मा गांधी की स्मृति में। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। महात्मा गांधी के सम्मान में 30 जनवरी को राष्ट्रीय स्तर पर शहीद दिवस मनाया जाता है।

    वीर जवान पर कविता

    थल,नभ के बने प्रहरी,
    हम भारत माँ की  शान।
    ऐसा ही भारत माँ का
    मैं हुँ वीर जवान।
    देश की हर शरहद है,
    मेरे घर की आन
    कर्म भूमि है ,
    लिया है मैंने मान
    बूरी नजर जो मेरी माँ पर डाली
    ले लूगाँ दुश्मन की जान।
    भारत माँ का मैं वीर जवान…
    ऋणी रहुँगा उस प्यारी माँ का जन्म दिया,
    बना दिया जाँबाज।
    गौरव हूँ मैं मातृभूमि का,
    खडा़ हूँ सीना तान
    भारत माँ का मैं वीर जवान…..
    गर मौत सामने आती है,
    सौभाग्य जन्म का मिलता हैं
    बलिदान देश पर होकर ही,
    मानूं सच्चा सम्मान
    भारत माँ का मैं वीर जवान….
    सौ-सौ जन्म हो जाऊँ कुर्बान,
    अमर शहीद कहलाऊँ ।
    लिपटा तिरंगें मे आऊँ,जब..माँ!
    बलिहारी मेरी लेना….
    भारत माँ की देना नज़र उतार ।
    संकल्प लेना बेटे मेरे….
    भारत माँ की आन-बान में
    दे देना तु भी बलिदान।
    अब तुम बन जाओ
    भारत माँ के वीर जवान।
    ऐसा ही था,
    मैं भारत माँ का मैं वीर जवान….                         

    अनिता पुरोहित
    मौल्यासी सीकर राजस्थान
    7736575207

  • गीत नवगीत लिखें

    गीत नवगीत लिखें

    ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।

    मन के भाव पिरोते जायें, जैसा करें प्रतीत लिखें।

    देख बदलते अंबर के रँग, काव्य तूलिका सदा चले।
    छाया से सागर रँग बदले, लहरें तट से मिलें गले।
    लाल गुलाबी श्वेत श्याम या, नीला धानी पीत लिखें।
    ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।


    सरगम को कलरव में खोजें, अमराई की गंध मिले।
    गेंदा बेला चंपा जूही, कमल गुलाबी नीर खिले।
    प्रकृति रंग को हृदय बसा कर, वसुधा  के सँग प्रीत लिखें।
    ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।


    प्रियतम के भावों को पढ़कर, प्यारे कोमल शब्द चुनें।
    जीवन मधुमय रहे हमेशा, श्रृंगारिक से स्वप्न बुनें।
    उम्मीदों से दिल बहलाकर, पीड़ाओं के गीत लिखें।
    ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।


    मूँगफली लोहड़ी में खाएं, धूम मचायें नृत्य करें।
    खिचड़ी खा संक्रांति मनायें, सूर्य देव को नमन करें।
    सावन भादों सर्दी गर्मी, मौसम की ही जीत लिखें।
    ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।


    खुल कर जी लें आज ज़िन्दगी, कठिनाई से नहीं डरें।
    कठिन समय का सदा सामना, हिम्मत के सँग वहीं करें।
    काल खंड की सच्चाई को, बिना हुए भयभीत लिखें।
    ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।


    बिंब उभरते जिनमें नूतन, ऐसे गीत अगीत लिखें।
    ग़ज़ल रुबाई या फिर कविता, भले गीत नवगीत लिखें।


    प्रवीण त्रिपाठी, नई दिल्ली, 29 जनवरी 2019