Author: कविता बहार

  • बोझ पर कविता

    बोझ पर कविता

    कभी कभी
    कलम भी बोझ लगने लगती है
    जब शब्द नहीं देते साथ
    अंतरभावों का
    उमड़ती पीड़ायें दफन हो जाती
    भीतर कहीं
    उबलता है कुछ
    धधकता है
    ज्वालामुखी सी
    विचारों के बवंडर
    भूकंप सा कंपाते है
    मन मस्तिष्क को
    और सारे तत्वों के बावजूद
    मन अकेला हो जाता है
    उस माँ की तरह
    जो नौ महीने सहर्ष
    भार ढोती ।
    उस पिता की तरह
    जो कंधे और झुकती कमर तक
    जिम्मेदारी उठाता
    पर
    वक्त के दौर में उपेक्षित हो
    अपनी ही संतति को बोझ लगते  हैं ।
    तब शब्द कफन ओढ़ लेते है
    और टूट जाती है नोक कलम की
    संवेदनाओं के सूखते
    स्याही
    कलम को बोझिल कर देते हैं ।


    सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़

  • जीवनामृत मेरे श्याम

    जीवनामृत  मेरे   श्याम :   —

    अमृत  कहाँ  ले  पाबे रे  मंथन  करे बगैर ।
    सद्ज्ञान नई मिले तोला साधन करे बगैर ।।

    मन  मंदराचल  बना ले  हिरदे  समुंद  कर ,
    मन  नई बँधावे  देख ले  बंधन करे बगैर ।।

    गुन  दोष  के सुतरी  ल बने  बांध  खिंच के ,
    मथ  रात दिन आठो पहर खंडन करे बगैर ।।

    आही घड़ी लगन  अमरित हो  जाही परगट ,
    झन पीबे  ननकी  सद्गुरु  बंदन करे बगैर ।।                  

    ~  रामनाथ साहू  ”  ननकी  “
                                 मुरलीडीह

  • त्रिपदिक

    त्रिपदिक


         .   
    अतीत   धरोहर   है ।
    सुधार  ले  चल  आज  को
    तुझे  आता  जौहर   है ।
                *
    जीवन रण हारा अगर ।
    मत हो निराश बाँकुरे
    देगी विजय मंत्र समर ।
               *
    कविता नहीं बोल रहा ।
    आप बीती है मेरी
    भेद ये क्यों खोल रहा ।
                    *
    कर्म में प्रेम धर्म कर ।
    समृद्धि घर आती है
    बंदे सदा सुकर्म कर ।
         .              *
    क्यों  परेशान हो रहा ।
    बढ़ तू अपनी मौज में
    गम न कर किसी ने कहा ।
                *
    ये प्रवंचना छोड़ दे ।
    सद्भावना कर केवल
    कटीले  पंथ मोड़  दे ।
                 ~  रामनाथ साहू  ” ननकी “
                              मुरलीडीह

  • हिन्दी की बिंदी में शान

    हिन्दी की बिंदी में शान

    हिन्दी भाषा की बिंदी  में शान।
    तिरंगे के गौरव गाथा की आन।।
    राजभाषा का ये पाती सम्मान।
    राष्ट्रभाषा से मेरा भारत महान ।।


    संस्कृत के मस्तक पर चमके।
    सिंधी,पंजाबी चुनरी में दमके।।
    बांग्ला,कोंकणी संग में थिरके।
    राजस्थानी चूड़ियों में खनके ।।


    लिपि देवनागरी रखती ध्यान।
    स्वर व्यंजन में है इसकी शान।।
    मात्राओं का हमें कराती ज्ञान।
    शब्द भंडार है अनमोल खान।।

    हिन्दी से राष्ट्र का नव निर्माण।
    जन- जन का करती कल्याण।।
    दुनिया में भारत की  पहचान।
    हिंदी से होगा जग का उत्थान।।


    कबीर, मीरा, तुलसी, रसखान।
    सबने गाया हिन्दी का गुणगान।।
    ‘रिखब’ करता शारदे का ध्यान ।
    पाता निशदिन अनुपम वरदान ।।


    ©रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’
    ‘जयपुर

  • आज का भारत -आर्द्रा छंद

            आज का भारत 

    हवा  चली  है  अब  देश  में  जो
             विकास  गंगा  बहती  मिली  है ।
    आनंद   वर्षा   चहुँ  ओर   होती
            तरंग  से  आज  कली खिली है ।। गरीब   कोई   मिलता   नहीं   है
            बेरोजगारी    अब     दूर   भागे ।
    संसाधनों  की  कमियाँ  नहीं  है
             रिकार्ड  उत्पादन  और  आगे ।। बना   रहा   भारत   आशियाना
             है  चाँद की भूमि निहाल होती ।
    देखो  महाशक्ति  नई  सजी तो
            उदारता  विश्व   मिसाल  होती ।। पड़ोस   संबंध  सुधार    आये
            मैत्री   बने  आदर्श  हैं   निराले ।
    दे मौन हो स्वीकृति विश्व सारा
             महान  नेता  पद  को सँंभाले ।।                 

    ~   रामनाथ साहू  ”  ननकी  “
                                    मुरलीडीह