बच्चे होते मन के अच्छे

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बच्चे होते मन के अच्छे

बच्चे होते मन के अच्छे

खेल कूद वो दिन भर करते,रखते हैं तन मन उत्साह।
पेड़ लगा बच्चे खुश होते,चलते हैं मन मर्जी राह।।
मम्मी पापा को समझाते,बन कर ज्ञानी खूब महान।
बात बडों का सुनते हैं वे,रखते मोबाइल का ज्ञान।।


रोज लगा जंगल बुक देखें,पाते ही कुछ दिन अवकाश।
बेन टेन मल्टी राजू को,मोटू पतलू होते ख़ास।।
गिल्ली डंडा कंचा खेलें,शोर मचाते मुँह को खोल।
तोड़ फोड़ में माहिर रहते,क्या जाने कितना है मोल।।


पर्यावरण बने तब बढ़िया,दे बच्चो को इसका ज्ञान।
वादा कर के वो रख लेंगे,आस पास का बढ़िया मान।।
बेमतलब के चलते हैं जो,उनको कर दे बच्चे मंद।
टीवी पंखा कूलर बिजली,कर सकते चाहे तो बंद।।


विकल्प ऊर्जा का वो जाने,पढ़ पढ़ कर के सारे खोज।
स्कूल चले वो पैदल जा के,बचत करे ईंधन को रोज।।
डिस्पोजल पन्नी को फेंके, जाने ये तो कचरा होय।
खूब बढ़े ये जो धरती में,आगे चल के हम सब रोय।।


खूब बहाते बच्चे पानी,बंद करे जा के नल कोय।
होत समझ जो बर्बादी की,फिर काहे को ऐसे होय।।
बच्चे होते मन के अच्छे,होत भले ही वो नादान।
पर्यावरण बता दे उनको,मिल जाए फिर सारा ज्ञान।।


राजकिशोर धिरही
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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