फरियादी हो (बेटी पर कविता)
आज कोख की बेटी ही,
अब पूछे बन फरियादी हो।
बिना दोष क्यों बना दिया है,
मुझको ही अपराधी हो।
ईश विधान जन्म मेरा फिर,
तुम क्यों पाप कमाते हो।
सुख दुःख का अनुमान लगा,
हत्यारे बन जाते हो।
आज कोख……।
घर बगिया की कोमल कलिका ,
मुझसे ही घर शोभित हो।
अँगना में किलकारी मेरी,
रिमझिम ध्वनि पग नूपुर हो।
आज कोख……।
भ्रम पाला है मात- पिता ने,
पुत्र जन्म सुखदायी हो ।
भूल गये कर्तव्य इसी में,
कन्या मान परायी हो।
आज कोख…….।
कन्या- पुत्र आज के ही हैं,
भावी नर अरु नारी हो।
भुवन संतुलन बिगड़ रहा है,
बढी समस्या भारी हो।
आज कोख की बेटी ही अब,
पूछे बन फरियादी हो।
पुष्पा शर्मा”कुसुम”