बेटियों के नसीब में कविता
बेटियों के नसीब में, जलना ही है क्या
काँटे बिछे पथ पर चलना ही है क्या
विषम परिस्थितियों में ढलना ही है क्या
सबके लिए खुद को बदलना ही है क्या
धोखा छल-प्रपंच में छलना ही है क्या
पत्थर दिल के वास्ते पिघलना ही है क्या
अधूरी मर्जियाँ हाथ मलना ही है क्या
हर क्षण चिंताओं में गलना ही है क्या
बेटियों के नसीब में जलना ही है क्या
काँटे बिछे पथ पर चलना ही है क्या
—
डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’