भगवान पर कविता

भगवान पर कविता: किसी भी धर्म में खास कर के हिन्दू धर्म में भगवानो पर बढ़ी आस्था रखी जाती है और इन भगवानो पर वे बहुत ज्यदा विस्वास रखते है और इस आस्था को बनाये रखे कविता बहार आप के लिए कुछ कविताएँ बताती है जो इस प्रकार है.

भगवान पर कविता

शब्दों से परे है वह

भावों के सर्गों में स्पंदित
परमाणुओं का लय है !
शब्दों से परे है वह…
किंतु अर्थों का अवयव है !!

पंचभूतों के परम-मिलन से
पल्लवित होते नव कोंपल
पालन करती प्रकृति उन्हें
निज आँचल में प्रतिपल
पुष्पित होते फिर फल देते
तना तानकर गर्वित होते
फिर धीरे-धीरे उनके सारे
पीत-पर्ण झरते जाते हैं
पंचभूतों में मिलने का वे
रहस्य यही बतलाते हैं..
कि सृष्टि-चक्र की शाश्वतता में
यहीं सृजन है,यहीं विलय है !!

शब्दों से परे है वह…
किंतु अर्थों का अवयव है !!

रंग-रंग के रंगों से रंगी,
रंगरेज़ों की दुनिया में…
मन को हरते सतरंग हैं यहाँ
कुछ फीके और कुछ गहरे ,
पनघट-पनघट रूनझुन-रूनझुन
हैं लालिमा लिये क्षितिज पर ठहरे
वहीं कमलिनी-कमल जल में…
खिलने को हैं आतुर मानो
परंतु प्रतीक्षा में पनिहारन-से
ताकें अधडूबा-अधनिकला सूरज
जो क्षितिज-पट से झांकता कहता
मुझे भी प्रातः ओ’सांझ का संशय है !!

शब्दों से परे है वह…
किंतु अर्थों का अवयव है !!

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