भाई पर दोहे / विनोद सिल्ला

doha sangrah

विनोद सिल्ला के दोहे भाईचारे की अनमोल भावना को व्यक्त करते हैं। ये दोहे पाठकों को रिश्तों के महत्व को समझने और उन्हें सहेजने की प्रेरणा देते हैं। भाई के प्रति सच्चे प्रेम और सम्मान की भावना को व्यक्त करते हुए, ये दोहे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, जो भाईयों के बीच के अटूट बंधन को सम्मान देते हैं।

इस प्रकार, विनोद सिल्ला के “भाई पर दोहे” पारिवारिक संबंधों की गहराई और उनके महत्व को सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करते हैं।

भाई पर दोहे / विनोद सिल्ला

भाई पर दोहे / विनोद सिल्ला

भाई जैसा आसरा, भाई जैसा प्यार।
देख जगत सारा भले, भाई है संसार।।

भाई तज जोभी करे,सकल कार व्यवहार।
आधा वो कमजोर हैं, जग में हो तकरार।।

परामर्शदाता सही, भाई जैसा कौन।
भाई से मत रूठिए, नहीं साधिए मौन।।

रूठे बचपन में बड़े, जाते पल में मान।
भाई-भाई हो वही, बनी अलग पहचान।।

भाई से ही मान है, भाई से है लाड।
भीड़ पड़े भाई अड़े, भाई ऐसी आड।

भाई-भाई जब-जब लड़ें, दुश्मन हो मजबूत।
भाई-भाई संग हों, सभी लगें अभिभूत।।

भाई मेरा पवन है, रहता है करनाल।
बातें सांझी सब करे, रखता मेरा ख्याल।।

‘सिल्ला’ सबसे कह रहा, भाई ऐसी डोर।
रिश्तों को बांधे रहे, आए कैसा दौर।।

-विनोद सिल्ला

विनोद सिल्ला द्वारा रचित दोहे “भाई पर दोहे ” पारंपरिक भारतीय काव्य शैली का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जिसमें भाईचारे, पारिवारिक संबंधों और आपसी प्रेम की भावनाओं को व्यक्त किया गया है। दोहों के माध्यम से भाई-भाई के बीच के रिश्ते, उनकी आपसी समझ और समर्थन का महत्व स्पष्ट होता है।

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