बस कर भगवन / शिवराज सिंह चौहान
*लापरवाही इक बड़ी,*
*बनकर आई काल।*
*पल में प्रलय हो गई,*
*छीने बाल गोपाल।।*
लाड प्यार तैयार कर,
देकर बस्ता, भोज।
दादा दादी मात पिता,
करते टाटा रोज।।
किसको क्या ये था पता,
है आज कोई जंजाल …
ड्राइवर ने था किया नशा,
या थी गति बड़ी तेज।
या लापरवाही बनी,
बड़ी खून की सेज।।
बस दुर्घटना खा गई,
नन्हे नव निहाल…
क्षत विक्षत सब शव पड़े,
घायल लहू लुहान।
बदहवास बच्चे हुए,
भूल गए पहचान।।
कोहराम है मच गया,
देख रक्त के ताल …
आश किसी की थी कोई,
किसी का था विश्वास।
बरपा कहर कुटुंब पर,
बन गए जिंदा लाश।।
काश कोई इस होनी को,
भगवन देता टाल …
ढीलेपन में भी कोई,
छोड़ी कसर न कोर।
उंगली हर अब उठ रही,
इक दूजे की ओर।।
स्वयं बचाव में दूजे पर,
दोष रहे सब डाल …
नन्ही दिवंगत आत्माएं,
मांग रही इंसाफ।
माफी का खाना नहीं,
बात सुनो ये साफ।।
दोषी जो भी है यहां,
सजा मिले हर हाल …
होनी थी सो हो गई,
ए-परवर दीगार।
चरण शरण में लो इन्हें,
दो हिम्मत परिवार।।
किस्मत का ये खेल कहें,
या कहें वक्त की चाल …
पल में प्रलय हो गई,
छीने बाल गोपाल …
*:– शिवराज सिंह चौहान*
(प्राचार्य)
शहीद जीतराम रा.आदर्श संस्कृति व.मा.वि.
नाहड़़ रेवाड़ी
(हरियाणा)