मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय
मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर…
मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर…
उधार / अज्ञेय सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थीऔर एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी। मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधारचिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली…
नंदा देवी / अज्ञेय नंदा,बीस-तीस-पचास वर्षों मेंतुम्हारी वनराजियों की लुगदी बनाकरहम उस परअखबार छाप चुके होंगेतुम्हारे सन्नाटे को चीर रहे होंगेहमारे धुँधुआते शक्तिमान ट्रक,तुम्हारे झरने-सोते सूख चुके होंगेऔर तुम्हारी नदियाँला सकेंगी केवल शस्य-भक्षी बाढ़ेंया आँतों को उमेठने वाली बीमारियाँतुम्हारा आकाश…
धूल-भरा दिन / अज्ञेय पृथ्वी तो पीडि़त थी कब से आज न जाने नभ क्यों रूठा,पीलेपन में लुटा, पिटा-सा मधु-सपना लगता है झूठा!मारुत में उद्देश्य नहीं है धूल छानता वह आता है,हरियाली के प्यासे जग पर शिथिल पांडु-पट छा जाता…
कलगी बाजरे की / अज्ञेय हरी बिछली घास।दोलती कलगी छरहरे बाजरे की। अगर मैं तुम को ललाती सांझ के नभ की अकेली तारिकाअब नहीं कहता,या शरद के भोर की नीहार – न्हायी कुंई,टटकी कली चम्पे की, वगैरह, तोनहीं कारण कि मेरा…
यह दीप अकेला / अज्ञेय यह दीप अकेला स्नेह भराहै गर्व भरा मदमाता परइसको भी पंक्ति को दे दो यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगापनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा?यह समिधा : ऐसी आग हठीला…
ऊँचाई / अटल बिहारी वाजपेयी ऊँचे पहाड़ पर,पेड़ नहीं लगते,पौधे नहीं उगते,न घास ही जमती है। जमती है सिर्फ बर्फ,जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,मौत की तरह ठंडी होती है।खेलती, खिलखिलाती नदी,जिसका रूप धारण कर,अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।…
झुक नहीं सकते / अटल बिहारी वाजपेयी टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते सत्य का संघर्ष सत्ता सेन्याय लड़ता निरंकुशता सेअंधेरे ने दी चुनौती हैकिरण अंतिम अस्त होती है दीप निष्ठा का लिये निष्कंपवज्र टूटे या उठे भूकंपयह…
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं / अटल बिहारी वाजपेयी भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके…
आओ फिर से दिया जलाएँ / अटल बिहारी वाजपेयी आओ फिर से दिया जलाएँभरी दुपहरी में अँधियारासूरज परछाई से हाराअंतरतम का नेह निचोड़ें-बुझी हुई बाती सुलगाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ हम पड़ाव को समझे मंज़िललक्ष्य हुआ आँखों से ओझलवर्त्तमान के…