चल मुसाफिर चल-केवरा यदु “मीरा “
जिन्दगी काँटों भरी है चल मुसाफिर चल ।
गिर गिर कर उठ संभल मुसाफ़िर चल ।
लाख तूफाँ आये तुम रूकना नहीं।
मंजिलों की चाह है झुकना नहीं ।
मंजिल तुझे मिल जायेगी आज नहीं तो कल।
याद रख जो आँधियों से है टकराते ।
मंजिल कदम चूमने उनके ही आते।
गुनगुनाना कर मुस्कुरा कर ऐ मुसाफ़िर चल ।
लक्ष्य अपना ले बना भटक मत
ये माया की नगरी में अटक मत
सुकून मिलता जाएगा चल मुसाफिर चल
जिन्दगी काँटों भरी है चल मुसाफिर चल ।
गिर गिर कर उठ संभल मुसाफ़िर चल ।
केवरा यदु “मीरा “