धरती तुझे प्रणाम
माथ नवाकर नित करूँ , धरती तुझे प्रणाम ।
जीव जंतु का भूमि ही , होता पावन धाम ।।
खेले कूदे गोद में , सबकी माँ हो आप ।
दुष्ट मनुज को भी सदा , देती ममता थाप ।।
धरती माँ जैसी नहीं , कोई पालन हार ।
सबका सहती भार ये , महिमा अपरंपार ।।
वसुंधरा के गर्भ में , रत्नों का भंडार ।
हीरा सोना कोयला , अमृत कुंड जलधार ।।
जब – जब असुरों ने किया , भू पर अत्याचार ।
कष्ट मिटाने भूमि पर , विष्णु लिए अवतार ।।
खेती करके भूमि पर , सेवा करे किसान ।
भूख शांत सबका करे , धरती का भगवान ।।
वन औषधि के रूप में , करती रोग निदान ।
धरती माँ पीड़ा हरे , और बचाये जान ।।
धरती के उपकार को , गिन न सकेंगे लोग ।
दाता बनकर सिर्फ दे , मानव करता भोग ।
सरहद पर तैनात हैं , सैनिक वीर सुजान ।
धरती की रक्षा करे , चौकस रहे जवान ।।
सुकमोती चौहान "रुचि" बिछिया,महासमुन्द
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