दोहा पंचक

दोहा पंचक

-रामनाथ साहू ननकी

किन्नर  खूब  मचा  रहे ,  रेलयान  में   लूट ।
कैसी है  ये  मान्यता , दी  है किसने  छूट ।।


जल थल नीले गगन पर ,, मानव का आतंक ।
दोहन जो  करता  मिले , सागर को ही पंक ।।


हिंसा  हुई  बढ़ोतरी , होत   अहिंसा    छोट ।
सबके  मन  को भा  गई , लाल हरे ये नोट ।।


भूल  रहा  ईमान  को , रोज  बढ़े  अपराध ।
जीव दया को छोड़कर ,बना हुआ है ब्याध ।।  


उल्टी  सीधी   बात   पर , बैठे   तंबू    तान ।
स्वारथ डफली को बजा ,करते  गौरव गान ।।


                 ~   रामनाथ साहू  ” ननकी “
                                मुरलीडीह

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