मुझको गीत सिखा देना
कोयल जैसी बोली वाले,
मुझको गीत सिखा देना।
शब्द शब्द को कैसे ढूँढू,
कैसे भाव सँजोने हैं।
कैसे बोल अंतरा रखना,
मुखड़े सभी सलोने हैं।
शब्द मात्रिका भाव तान लय,
आशय मीत सिखा देना।
कोयल जैसी बोली वाले,
मुझको गीत सिखा देना।
मन के भाव मलीन रहे तब,
किसे छंद में रस आए।
राग बिगड़ते देश धर्म पथ,
कहाँ गीत में लय भाए।
रीत प्रीत के सरवर रीते,
शेष प्रतीत सिखा देना।
कोयल जैसी बोली वाले,
मुझको गीत सिखा देना।
व्याकरणी पैमाने उलझे,
ज्ञानी अधजल गगरी के।
रिश्तों के रखवाले बिकते,
माया में इस नगरी के।
रोक सके जो इन सौदौं को,
ऐसी प्रीत सिखा देना।
कोयल जैसी बोली वाले,
मुझको गीत सिखा देना।
गीत गजल के श्रोता अब तो,
शीशपटल के कायल हैं।
दोहा छंद गजल चौपाई,
कवि कलमों से घायल हैं।
मिले चाहने वाले जिसको,
ऐसी रीत सिखा देना।
कोयल जैसी बोली वाले,
मुझको गीत सिखा देना।।
”©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479