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गजल का अर्थ क्या है व इसके नियम / ग़ज़ल कैसे लिखें ( How to write GAZAL)

यहाँ हम आपको ” ग़ज़ल कैसे लिखें/गजल का अर्थ क्या है व इसके नियम क्या हैं ” के बारे में बताने वाले हैं जिसे विभिन्न माध्यम से हमने संग्रहित किया है .

ग़ज़ल कैसे लिखें ( How to write GAZAL)

ग़ज़ल सीखने के लिए जरूरी बातें

ग़ज़ल सीखने के लिए जरूरी है कि आपको
१-मात्रा ज्ञान हो।
२-रुक्न (अरकान) की जानकारी हो।
३-बहरों का ज्ञान हो।
४-काफ़िया का ज्ञान हो।
५-रदीफ का ज्ञान हो।
और फिर शेर और उसका मफ़हूम (कथन)।
एवं ग़ज़ल की जबान की समझ हो।

१- मात्राज्ञान-

क) जिस अक्षर पर कोई मात्रा नहीं लगी है या जिस पर छोटी मात्रा लगी हो या अनुस्वार (ँ) लगा हो सभी की एक (१) मात्रा गिनी जाती है.

ख) जिस अक्षर पर कोई बड़ी मात्रा  लगी हो या जिस पर   अनुस्वार (ं) लगा हो  या जिसके बाद क़ोई आधा  अक्षर   हो सभी की दो (२) मात्रा
गिनी जाती है।

ग) आधाअक्षर की एक मात्रा उसके पूर्व के अक्षर की एकमात्रा  में जुड़कर उसे दो मात्रा का बना देती है।

घ) कभी-कभी आधा अक्षर के पूर्व का अक्षर अगर दो मात्रा वाला पहले ही है तो फिर आधा अक्षर की भी एक मात्रा अलग से गिनते हैं. जैसे-रास्ता २ १ २ वास्ता २ १ २ उच्चारण के अनुसार।

च) ज्यादातर आधा अक्षर के पूर्व  अगर द्विमात्रिक है तो अर्द्धाक्षर को छोड़ देते हैं उसकी मात्रा नहीं गिनते. किन्तु  अगर पूर्व का अक्षर एक मात्रिक है तो उसे दो मात्रा गिनते हैं. विशेष शब्दों के अलावा जैसे इन्हें,उन्हें,तुम्हारा । इनमें इ उ तु की मात्रा एक ही गिनते हैं। आधा अक्षर की कोई मात्रा नहीं गिनते।

छ) यदि पहला अक्षर ही आधा अक्षर हो तो उसे छोड़ देते हैं कोई मात्रा नहीं गिनते। जैसे-प्यार,ज्यादा,ख्वाब में प् ज् ख् की कोई मात्रा नहीं गिनते।

कुछ अभ्यास यहाँ दिए जा रहे हैं।

शब्द उच्चारणमात्रा (वजन)
कमल.     क मल.           12
रामनयन. रा म न यन.   2112
बरहमन.     बर ह मन     212
चेह्रा             चेह रा         22
शम्अ.        शमा         21
शह्र.             शहर.         21
जिन्दगी       जिन्दगी       212
कह्र.             कहर21
तुम्हारा        तुमारा         122
दोस्त.           दोस्त.         21
दोस्ती           दो स् ती     212
नज़ारा         नज़्जारा            222
नज़ारा       
                       
122
नज़ारः     121

२- रुक्न /अरकान की जानकारी 

  •  रुक्न को गण ,टुकड़ा या खण्ड कह सकते हैं।
  • इसमें लघु (१) और दीर्घ (२) मात्राओं का एक निर्धारित क्रम होता है। 
  • कई रुक्न (अरकान) के मेल से मिसरा/शेर/गज़ल बनती है।।
  • इन्हीं से बहर का निर्माण होता है।
  • मुख्यतः अरकान कुल आठ (८) हैं।
नाम        वज़न   शब्द
१-मफ़ाईलुन. १२२२.   सिखाऊँगा
२-फ़ाइलुन.     २१२.    बानगी
३-फ़ऊलुन.     १२२.   हमारा
४-फ़ाइलातुन. २१२२.कामकाजी
५-मुतफ़ाइलुन११२१२बदकिसमती
६-मुस्तफ़इलुन २२१२आवारगी
७-मफ़ाइलतुन१२११२जगत जननी
८-मफ़ऊलात ११२२१यमुनादास

ऐसे शब्दों को आप खुद चुन सकते हैं।
इन्हीं अरकान से बहरों का निर्माण होता है।

३-बहर

  • रुक्न/अरकान /मात्राओं के एक निश्चित क्रम को बहर कहते हैं।
  • इनके तीन प्रकार हैं-

१-मुफ़रद(मूल) बहरें।
२-मुरक्क़ब (मिश्रित) बहरें।
३-मुजाहिफ़ (मूल रुक्न में जोड़-तोड़ से बनी)बहरें।
बहरों की कुल संख्या अनिश्चित है।

गजल सीखने के लिए बहरों के नाम की भी कोई जरूरत नहीं। केवल मात्रा क्रम जानना आवश्यक है,इसलिए यहाँ प्रचलित ३२ बहरों का मात्राक्रम दिया जा रहा है। जिसपर आप ग़ज़ल कह सकते हैं, समझ सकते हैं।

  • 1)-11212-11212-11212-11212
  • 2)-2122-1212-22
  • 3)-221-2122-221-2122
  • 4)-1212-1122-1212-22
  • 5)-221-2121-1221-212
  • 6)-122-122-122
  • 7)-122-122-122-122
  • 8)-122-122-122-12
  • 9)-212-212-212
  • 10)-212-212-212-2
  • 11)-212-212-212-212
  • 12)-1212-212-122-1212-212-122
  • 13)-12122-12122-12122-12122
  • 14)-2212-2212
  • 15)-2212-1212
  • 16)-2212-2212-2212
  • 17)-2122-2122
  • 18)-2122-1122-22
  • 19)-2122-2122-212
  • 20)-2122-2122-2122
  • 21)-2122-2122-2122-212
  • 22)-2122-1122-1122-22
  • 23)-1121-2122-1121-2122
  • 24)-2122-2122-2122-2122
  • 25)-1222-1222-122
  • 26)-1222-1222-1222
  • 27)-221-1221-1221-122
  • 28)-221-1222-221-1222
  • 29)-212-1222-212-1222
  • 30)-212-1212-1212-1212
  • 31)-1212-1212-1212-1212
  • 32)-1222-1222-1222-1222

विशेष-

  • जिन बहरों का अन्तिम रुक्न 22 हो उनमें 22 को 112 करने की छूट हासिल है।
  • सभी बहरों के अन्तिम रुक्न में एक 1(लघु) की इज़ाफ़त (बढ़ोत्तरी)  करने की छूट है। किन्तु यदि सानी मिसरे में इज़ाफ़त की गयी है तो गज़ल के हर सानी मिसरे में इज़ाफ़त करनी होगी.जबकि उला मिसरे के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है. जिसमें चाहे करें और जिसमें चाहें न करें।
  • दो बहरें १)२१२२-११२२-२२ और२) २१२२-१२१२-२२ के पहले रुक्न २१२२ को ११२२ किसी भी मिसरे मे करने की छूट हासिल है।
  • मात्रिक बहरों २२ २२ २२ २२ इत्यादि  जिसमें सभी गुरु हैं ,में -(क- ). किसी भी (२)गुरु को दो लघु (११) करने की छूट इस शर्त के साथ हासिल  है कि यदि सम के गुरु (२) को ११ किया गया है तो सिर्फ सम को ही करें और यदि विषम को तो सिर्फ विषम को। मतलब यह कि या तो विषम- पहले,तीसरे,पाचवें,सातवें,नौवे आदि में सभी को या जितने को मर्जी हो २ को ११ कर सकते हैं। या फिर सिर्फ सम दूसरे, चौथे, छठवें, आठवें आदि के २ को ११ कर सकते हैं।
  • २२२ को १२१२,२१२१ ,२११२ भी कर सकते हैं।
hindi gajal
hindi gazal || हिंदी ग़ज़ल

कुछ अभ्यास तक्तीअ (गिनती/विश्लेषण) के साथ-

A-
2122 1212 22
दोस्त मिलता /नसीब से /ऐसा,
2122.          /1212.     /22

जो ख़िजा को /बहार कर/ता है।।
2122.          /1212.     /22

B-
1222 1222 1222 1222
दिया है छो/ड़ उसने भो/र में अब भै/रवी गाना,
1222 /1222 /1222 /1222

मुहब्बत की /वो मारी बस/ विरह के गी/त गाती है।।
1222 /1222/1222 /1222

C-
2122 2122 2122 212
हुश्न औ ई/मान तक है  /
2122.     /2122          /
बिक रहा बा/जार में,
2122.       /212

शर्म आती /है तिजारत /
2122.     /2122.       /
से तिजारत/ क्या करूँ।।
2122.      /212

D-
1212 1122 1212 112
किसी का हुश्/न नहीं को/
1212.          /1122.      /
ई भी शबा/ब नहीं।
1212.    /112

मेरे नसी/ब में शायद /कोई गुला/
1212. /1122.        /1212.     /
ब नहीं।।
112

E-
221 2121 1221 212
गुलदस्ता /ए ग़ज़ल हो/
221.       /2121.       /
 कि तुम कोई/ ख्वाब हो।
1221         /212

बाद ए त/हूर ए हुस्न ओ /
221.     /2121.             /
अदा लाज/वाब हो।।
1221.      /212

F-
2222 2222 2222 222
पाकिस्तानी /बोल बोलते,
2222         /21212
कुछ अपने ही /साथी हैं,
2222.          /222

जन-गण-मन की /हार लिखें या,/
2222.               /21122.         /
 फिर उनको गद्/दार लिखें।।
2222.           /2112

ऐसे ही आप अपनी व अन्य की गजलों की तक्तीअ कर के अपना अभ्यास बढ़ा सकते हैं।

4- क़ाफ़िया (समान्त)

क़ाफ़िया समझने के लिए पहले एक गज़ल लेते हैं जिससे समझने में आसानी हो।

बहर-१२२२-१२२२-१२२२-२२
क़ाफ़िया-आने
रदीफ़-वाले हैं।

गज़ल का उदहारण

सुना है वो कोई चर्चा चलाने वाले हैं।
सदन में फिर नया  मुद्दा उठाने वाले हैं।।(मतला).?

अदब से दूर तक रिश्ता नहीं कोई जिनका,
सलीका अब वही हमको सिखाने वाले हैं।।

लगा के ज़ाल कोई अब वहाँ  बैठे  होंगे,
सुना है फिर से वो हमको मनाने वाले हैं।।

बड़ी मुश्किल से हम  निकले हैं जिनकी चंगुल से,
सुना है फिर कोई फ़न्दा लगाने वाले हैं।।

भरोसा अब नहीं हमको है जिनकी बातों पर,
नया वो दाव कोई आजमाने वाले हैं।

हैं फिर नज़दीकियाँ हमसे बढ़ाने आये जो,
कोई इल्जाम क्या वो फिर लगाने वाले हैं।।

पता जिनको नहीं है खुद के ही हालातों का,
मिलन तकदीर वो मेरी बताने वाले हैं।।(मक्ता).?
     ——–मिलन.

इस गजल में काफिया के शब्द हैं-
चलाने,उठाने,सिखाने,मनाने,लगाने,आजमाने,लगाने, बताने।
आप देख रहे हैं कि काफिया के शब्द सचल हैं। बदलते रहते हैं। हर शब्द में एक अक्षर अचल है -ने,और एक स्वर अचल है आ। दोनों को मिलाकर काफिया बना है-आने, इस प्रकार हम देखते हैं कि क़ाफिया भी अचल है किन्तु काफिया के शब्द सचल।
अगर हम काफ़िया के शब्दों से आने निकाल दें तो बचेगा-चल,उठ,सिख,मन आदि. सभी समान मात्रा या समान वजन के हैं।

काफ़िया की मुख्य बातें-

१-काफ़िया के शब्द से काफिया निकाल देने पर जो बचे वो समान स्वर और समान वजन के हों।
२-काफ़िया के रूप में (हमारे) के साथ (बहारें) ,हवा के साथ धुआँ  नहीं ले सकते । अनुस्वार (ं) का फर्क है।
३-मतले के शेर से ही क़ाफ़िया तय होता है और एक बार क़ाफ़िया तय हो जाने के बाद उसका अक्षरशः पालन पूरी गजल में अनिवार्य होता है।

 5- रदीफ़(पदान्त)

१-क़ाफ़िया के बाद आने वाले  अक्षर,शब्द, या वाक्य को रदीफ़ कहा जाता है।
२-यह मतले के शेर के दोनो मिसरों में और बाकी के शेर के सानी मिसरे में काफिया के साथ जुड़ा रहता है।
३-यह अचल और अपरिवर्तित होता है। इसमें बदलाव नहीं होता।
४-यह एक अक्षर का भी हो सकता है और एक वाक्य का भी। किन्तु छोटा रदीफ़ अच्छा माना जाता है।
५- शेर से रदीफ़ को निकाल देने पर यदि शेर अर्थहीन हो जाए तो रदीफ़ अच्छा माना जाता है।
 

गजल की विशेष बातें

१-पहले शेर को मतले का शेर कहा जाता या गजल का मतला (मुखड़ा)।
जिसके दोनो मिसरों(पंक्तियों): मिसरा उला (पहली या पूर्व पंक्ति) और मिसरा सानी (दूसरी पंक्ति या पूरक पंक्ति) दोनों में रदीफ़ (पदान्त) होता है।
२-गजल में कम से कम पाँच शेर जरूर होने चाहिए।
३-गजल का आखिरी शेर जिसमें शायर का नाम होता है; को मक्ते का शेर या मक्ता कहा जाता है।
४-बिना रदीफ़ के भी गजल होती है जिसे ग़ैरमुरद्दफ़ (पदान्त मुक्त) गजल कहते हैं।
५-यदि गजल में एक से अधिक मतले के शेर हैं तो पहले के अलावा सभी को हुस्ने मतला (सह मुखड़ा)  कहते हैं।
६-बिना मतले की गजल को उजड़े चमन की गजल, बेसिर की गजल,सिरकटी गजल,सफाचट गजल,गंजी गजल आदि नाम मिले हैं।हमें ऐसी गजल कहने से बचना चाहिए।
७-बिना काफ़िया गजल नहीं होती।

 गजल के कुछ नियम-

१-अलिफ़ वस्ल का नियम –

एक साथ के दो शब्दों में जब अगला शब्द स्वर से शुरु हो तभी ये सन्धि होती है।

जैसे- हम उसको=हमुसको, आखिर इस= आखिरिश,अब आओ=अबाओ।
ध्यान यह देना है कि नया बना शब्द नया अर्थ न देने लगे।
जैसे- हमनवा जिसके=हम नवाजिस के

२-मात्रा गिराने का नियम-

१) संज्ञा शब्द और मूल शब्द के अतिरिक्त सभी शब्दों के आखिर के दीर्घ को  आवश्यकतनुसार गिराकर लघु किया जा सकता है।  इसका कोई विशेष नियम नहीं है,उच्चारण के अनुसार गिरा लेते हैं।
२) जिन अक्षरों पर ं लगा हो उसे नहीं गिरा सकते। पंप, बंधन आदि।
३) यदि अर्द्धाक्षरों से बना कोई शब्द की मात्रा दो है तो उसे नहीं गिरा सकते।जैसे क्यों ,ख्वाब,ज्यादा आदि।

३-मैं के साथ मेरा
तूँ के साथ तेरा
हम के साथ हमारा
तुम के साथ तुम्हारा
मैं के साथ तूँ
मेरा के साथ तेरा
हम के साथ तुम
हमारा के साथ तुम्हारा
का प्रयोग ही उचित है ।

 ४-एकबचन और बहुबचन एक ही मिसरे में न हो ,और अगर होता है तो शेर के कथन में फर्क न हो।

५-ना की जगह न या मत का प्रयोग उचित है।

६-अक्षरों का टकराव न हो जैसे- तुम-मत-तन्हा-हाजिर-रहना-नाखुश में म,त,हा,र का टकराव हो रहा है। इनसे बचना चाहिए।

७-मतले के अलावा किसी उला मिसरे के आखिर में रदीफ के आखिर का शब्द या अक्षर होना दोषपूर्ण है।

८-किसी मिसरे में वजन पूरा करने के लिए कोई शब्द डाला गया हो जिसके होने या न होने से कथन पर फर्क नहीं पड़ता ऐसे शब्दों को भर्ती के शब्द कहा जाता है। ऐसा करने से बचना चाहिए।

गज़ल की ख़ासियत-

अच्छी गजल वह है-
१) जो बहर से ख़ारिज़ न हो।
२) क़ाफ़िया रदीफ़ दुरुस्त हों।
३) शेर सरल हों।
४) शायर जो कहना चाहता है वही सबकी समझ में आसानी से आए।
५) नयापन हो।
६) बुलन्द खयाली हो।
७) अच्छी रवानी हो।
८) शालीन शब्दों का प्रयोग

ग़ज़ल के प्रकार

तुकांतता के आधार पर ग़ज़लें दो प्रकार की होती हैं-

  • मुअद्दस ग़जलें– जिन ग़ज़ल के अश’आरों में रदीफ़ और काफ़िया दोनों का ध्यान रखा जाता है।
  • मुकफ़्फ़ा ग़ज़लें- जिन ग़ज़ल के अश’आरों में केवल काफ़िया का ध्यान रखा जाता है।

भाव के आधार पर भी गज़लें दो प्रकार की होती हैं-

  • मुसल्सल गज़लें– जिनमें शेर का भावार्थ एक दूसरे से आद्यंत जुड़ा रहता है।
  • ग़ैर मुसल्सल गज़लें– जिनमें हरेक शेर का भाव स्वतंत्र होता है।

संक्षेप में,

शेर:- 2 लाइन(1 मिसरा) मिला के एक शेर बनता है।
ग़ज़ल:-5 या 5 से अधिक शेर से ग़ज़ल बनता है जो मुख्यतः तरन्नुम में होता है।
अशआर:-5 या उससे अधिक शेर जो अलग अलग मायने दे वो अशआर कहलाता है।
कता :-5 से कम शेर कता कहलाता है।

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