गुलमोहर है गुनगुुनाता – बाबू लाल शर्मा
गुलमोहर है गुनगुुनाता,
अमलतासी सी गज़ल।
रीती रीती सी घटाएँ,
पवन की अठखेलियाँ।
झूमें डोलें पेड़ सारे,
बालियाँ अलबेलियाँ।
गीत गाते स्वेद नहाये,
काटते हम भी फसल।
गुलमोहर है गुनगुनाता,
अमलतासी सी गज़ल।
बीज अरमानों का बोया,
खाद डाली प्रीति की।
फसलें सींची स्वेद श्रम से,
कर गुड़ाई रीति की।
भान रहे हमको मिलेंगी,
लागतें भी क्या असल।
गुलमोहर है गुनगुनाता,
अमलतासी सी गज़ल।
भूलकर रंग तितलियों के,
मधुप की गुंजार भी।
चटखती कलियाँ मटकती,
भूल तन गुलजार भी।
सोचते यही रह गये हम,
भाग्य के खिलते कमल।
गुलमोहर है गुनगुनाता,
अमलतासी सी गज़ल।
घिरती आई फिर घटाएँ,
बरसती अनचाह में।
डूबे हम तैरी फसल सब,
दामिनी थी आह में।
बहते मन सपने सुनहले,
बस बचा पाया गरल।
गुलमोहर है गुनगुनाता,
अमलतासी सी गज़ल।
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479