कवि बैरागी की कविता: आशीषों का आँचल
कवि बैरागी की कविता: आशीषों का आँचल
आशीषों का आँचल भरकर, प्यारे बच्चो लाई हूँ।
युग जननी मैं भारत माता, द्वार तुम्हारे आई हूँ।
तुम ही मेरे भावी रक्षक, तुम ही मेरी आशा हो।
तुम ही मेरे भाग्यविधाता, तुम ही प्राण पिपासा हो।
मर्यादा का, त्याग-शील का, पाठ मिला रघुराई से।
कर्म, भक्ति का पाठ मिला है, तुमको कृष्ण-कन्हाई से।
भीष्म पितामह ने सिखलाया, किसे प्रतिज्ञा कहते हैं।
धर्मराज की सीख धर्म हित, कैसे संकट सहते हैं।
चंद्रगुप्त की तड़प भरी, तलवार मिली है थाती में।
साँगा की साँसें चलती हैं, वीर! तुम्हारी छाती में।
चेतक वाले महाराणा ने, मरना तुमको सिखलाया।
वीर शिवा ने लोहा लेकर, जीवन का पथ दिखलाया।
पौरुष की प्रतिमा, कहलाती, रानी लक्ष्मीबाई है।
दयानंद ने स्वाभिमान की, गरिमा तुम्हें लुटाई है।
बापू ने आज़ादी लाकर, दी है नन्हे हाथों में।
नेहरू चाचा ने ढाला है, तुम सबको इस्पातों में।
लाल बहादुर ने सिखलाई, हथियारों की परिभाषा।
छिपी नहीं है बेटो! तुमसे, मेरे मन की अभिलाषा।
मुझे वचन दो, करो प्रतिज्ञा, मेरा मान बढ़ाओगे।
जनम-जनम तक मेरे बेटे, बनकर सुख पहुँचाओगे।
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