Category: हिंदी कविता

  • नारी की व्यथा पर कविता

    महिला (स्त्रीऔरत या नारीमानव के मादा स्वरूप को कहते हैं, जो स्त्रीलिंग है। महिला शब्द मुख्यत: वयस्क स्त्रियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। किन्तु कई संदर्भो में यह शब्द संपूर्ण स्त्री वर्ग को दर्शाने के लिए भी प्रयोग मे लाया जाता है, जैसे: नारी-अधिकार। 


    नारी की व्यथा पर कविता

    women impowerment
    स्त्री या महिला पर हिंदी कविता

    बरसों पहले आजाद हुआ देश
    पर अब भी बेटी आजाद नहीं
    हर बार शिकार हो रही बेटियां
    है यह एक बार की बात नहीं ।

    जिस बेटी से पाया जन्म मनुज
    उसी का तन छल्ली कर देता है
    मात्र हवस बुझाने की खातिर
    मासूम कलियों को नोच देता है

    इंसानियत मर चुकी है अब तो
    इंसानो में शैतान का वास होता है
    उस हवसी दरिंदे को क्या मालूम
    परिवार उसका कितना रोता है।

    तन मन की बढ़ती हुई भूख ने
    बच्चो को बना डाला निवाला है
    बेटियों को मनहूस कहने वालों
    तुमने ही हवसी कुत्तो को पाला है

    बेटियों पर लाखो बंदिशें लगाकर
    समाज ने उसेअबला बना डाला है
    खुला छोड़ लाडले बेटो को देखो
    इंसानियत पर तमाचा मारा है।

    आज तो बेटी किसी और की थी
    कल तुम्हारी भी तो हो सकती है
    कुचल डालो हवसी दरिंदों को
    बेटी और दुख नहीं सह सकती है

    क्रान्ति, सीतापुर , सरगुजा छग

  • दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया
    रिश्तों की तपिश से झुलसता चला गया
    अपनों और बेगानों में उलझता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    कुछ अपने भी ऐसे थे जो बेगाने हो गए थे
    सामने फूल और पीछे खंजर लिए खड़े थे
    मै उनमें खुद को ढूंढता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    बहुत सुखद अहसासों से
    भरी थी नाव रिश्तों की
    कुछ रिश्तों ने नाव में सुराख कर दिया
    मै उन सुराखों को भरने के लिए
    पिसता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    बहुत बेशकीमती और अमूल्य होते हैं रिश्ते
    पति पत्नी से जब माँ पिता में ढलते हैं रिश्ते
    एक नन्हा फरिश्ता उसे जोड़ता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    अनछुये और मनचले होते हैं कुछ रिश्ते
    दिल की गहराई में समाये
    और बेनाम होते हैं कुछ रिश्ते
    उस वक्त का रिश्ता भी गुजरता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया

    वक़्त और अपनेपन की
    गर्माहट दीजिये रिश्तों को
    स्वार्थ और चापलूसी से
    ना तौलिये रिश्तों को
    दिल से दिल का रिश्ता यूँ ही जुड़ता जायेगा
    यही बात मै लोगों को बताता चला गया
    दर्द कागज़ पर बिखरता चला गया
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    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
  • आधुनिक शिक्षा पर कविता

    आधुनिक शिक्षा पर कविता
                               

     सिसक-सिसक कर रोती है बचपन ! 
     आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन!! 
            

    पढ़ाई की इस अंधाधुंध दौर में ,
    बचपन ना खिलखिलाता अब भोर में 
    सुबह से लेकर शाम तक, 
     पढ़ते-पढ़ते जाते हैं थक , 
     खिलने से पहले मुरझा जाती है चमन ! 

    सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
    आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन!! 

     सब मिलकर करे बचपन सरकार , 
     मिले बचपन को मूलभूत-अधिकार, 
    ना वंचित हो कोई शिक्षा से, 
     कोई बचपन कटे ना भिक्षा से , 
    है हर घर का बस यही चमन ! 

     सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
    आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन! ! 

    बाल-श्रमिक ना बंधुआ मिले , 
    मीठी मुस्कान से बचपन खिले , 
      फुटपाथ पर ना शाम ढले , 
     नंगे पांव ना बचपन चले , 
    पेट की आग में ना भीगे नयन ! 

    सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
     आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन!! 

    बचपन को ना छीने हम,  
      अपनी चाहत की ऊंचाई में , 
    आधुनिकता के चक्कर में ही , 
    शिक्षा और संस्कार गई है खाई में , 
     बोझ कम कर दो बालपन की , 
    फिर चहकने लगेगी गुलशन ! 

      सिसक-सिसक कर रोती है बचपन , 
     आधुनिक शिक्षा की बोझ ढोती है बचपन ! ! 

                 दूजराम साहू
             निवास -भरदाकला
               तहसील -खैरागढ़
            जिला -राजनांदगांव (छ.ग.)
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • ताजमहल पर कविता -शशिकला कठोलिया

    ताजमहल पर कविता

    मौत भी मिटा नहीं सकी ,
    मन में रहे यादें हर पल ,
    भारत के आगरा में बना ,
    भव्य आकर्षक ताजमहल ।

    फैली है इसकी खूबसूरती ,
    देख सकते जहां तक ,
    सात आश्चर्य में से एक ,
    सुंदरता इसकी है आकर्षक,                           
    विस्तृत क्षेत्र में फैला ,
    भारत की सांस्कृतिक स्मारक,                          
    यादों को संजोए रखने ,
    शाहजहां की बनी सहायक,                         
    महारानी को याद रखने ,
    निकाला उसने सुंदर हल ,
    भारत के आगरा में बना ,
    भव्य आकर्षक ताजमहल ।

    चारो कोनों पर स्थित ,
    आकर्षक चार मीनारें, 
    वृहद है उसका क्षेत्र ,
    यमुना नदी के किनारे ,
    वहां की फिजाओं में ,
    गुंजित प्रेम की पुकारे ,
    प्रेम रस से पुण्य मिलता ,
    वहां की वादियां बहारें ,
    मुमताज को निहारने ,
    उसने की अद्भुत पहल ,
    भारत के आगरा में बना ,
    भव्य आकर्षक ताजमहल ।

    सबसे सुंदर है इमारत ,
    बनी सफेद संगमरमर ,
    सपनों का स्वर्ग सा लगता ,
    सौंदर्य पर सब न्योछावर, 
    बयाँ करती प्रेम कहानी ,
    चलती बयार वहां सर-सर, 
    कलात्मक आकर्षण का केंद्र, 
    लाखों कुर्बान सौंदर्य पर ,
    प्रेम में लुटा दिया जिसने ,
    अपना तन मन धन बल, 
    भारत के आगरा में बना ,
    भव्य आकर्षक ताजमहल ।

    गुंबद के नीचे कक्ष में ,
    कब्र बना राजा रानी ,
    शाहजहां और मुमताज ,
    रिश्ता था अति रूहानी ,
    राजा के प्रेम का प्रतीक ,
    दो दिलों की प्रेम कहानी ,
    संपूर्ण विश्व का यह ताज ,
    सुन लो सब के जुबानी ,
    भुला के ना भुलाया ,
    यादें सताई जिसकी पल-पल,                          
    भारत के आगरा में बना ,
    भव्य आकर्षक ताजमहल।

     ताजमहल मुमताज के लिए,                          
    शाहजहां के प्रेम का प्रतीक, 
    दर्शाती प्रेम गाथा को ,
    प्रेम था उसका आंतरिक ,
    दीवारों पर कांच के टुकड़े ,
    जगह है अति ऐतिहासिक,                     
    मुगलकालीन स्थापत्य कला, 
    भारतीय मुस्लिम इस्लामिक ,
    रहती है हमेशा वहां ,
    विदेशियों का चहल-पहल ,
    भारत के आगरा में बना ,
    भव्य आकर्षक ताजमहल ।

    रात की चांदनी में ,
    लगता बहुत सुंदर मनोरम,                          
    आकर्षक लान सजावटी पेड़, 
    देख मिट जाता सारा गम ,
    बाहर ऊंचा दरवाजा ,
    कारीगरों का कठिन परिश्रम ,
    राजा रानी की प्रणय गाथा ,
    सुन आंखे हो जाती  नम ,
    प्रेम की यादगार बनी ,
    अतीत के वो कल ,
    भारत के आगरा में बना ,
    भव्य आकर्षक ताजमहल ।

    श्रीमती शशिकला कठोलिया, अमलीडीह, डोंगरगांव, जिला- राजनांदगांव( छत्तीसगढ़ )

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • किसे कहूं दर्द मेरा

    किसे कहूं दर्द मेरा

    किसे कहूं दर्द मेरा
    ओ मेरे साजन
    लगे सब कुछ सुना सुना सा
    तुम बिन छाई मायूसी
    काटने को दौड़ते हैं ये लम्हे
    हर पल, पल पल भी
    वीरान खण्डहर की तरह
    छाया काली जुल्फों सा अंधेरा 
    बिन तेरे ए हमसफ़र ।
    सताता हैं अकेलापन
    हर वक़्त क्षण क्षण भी
    क्यो जुदा हुए तुम 
    तोड़कर दिल मेरा
    क्यो बना विरह वियोग
    टूटा वो अनुराग प्यारा
    क्यो बढ़ गया फासला 
    वादा था जन्म जन्मों तक का
    मुझसे मेरा सुख चैन क्यो छीना
    ए मेरे हमनवाब ।
    किस खता की दी सज़ा
    कैसे बताये तुम्हें
    तुम बिन हम हैं अधूरे
    हर पल हर क्षण भी
    राह तकती हैं ये निगाहें
    लौट आओ…. लौट आओ
    फिर से मेरी जिंदगी में
    ए मेरे हमनसी ।।

    ✍ एल आर सेजु थोब ‘प्रिंस’
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद