Category: हिंदी कविता

  • अनेकता में एकता कविता- डॉ एन के सेठी

    अनेकता में एकता कविता

                              (1)
    हमे वतन  से प्यार है ,भारत  देश  महान।
    अनेकता में एकता ,  इसकी है पहचान।।
    इसकी  है  पहचान ,  ये  है  रंग  रंगीला।
    मिल जाते सबरंग , गुलाबी नीला पीला।।
    कहे नवलनवनीत ,महिमा बड़ीअपार है।
    संस्कृतिहै प्राचीन ,हमको इससे प्यार है।।


                   
                             (2)
    नाना संस्कृतियां यहाँ,विविध धर्म के लोग।
    मिलजुलकर रहते सभी,नदी नाव संजोग।।
    नदी  नाव  संजोग , विविध है भाषा भाषी।
    जाति पाति हैं भिन्न,सभी है हिन्द निवासी।।
    कहे  नवल  कविराय , नही  कोई  बेगाना।
    संस्कृतियों के रंग , खिले  बिखरे  है नाना।


                   
                              (3)
    ईद दीवाली क्रिसमस,मिलकर सभी मनाय।
    वसुधा ही परिवार है , दिल मे सभी बसाय।।
    दिल मे  सभी  बसाय, ना  ही  कोई  पराया।
    मातृभूमि का प्यार,दिलों मे सबके समाया।।
    सभी  वर्ण  संयोग , भारती  मात  निराली।
    सभी  हिन्द  में  रोज , मनाते  ईद दिवाली।।


               
                         (4)
    कहींनिर्गुण कहींसगुण,आस्तिक नास्तिक भेद।
    सभी मानते एक को , मिट जाय सब द्वैध।।
    मिट  जाय  सब  द्वैध ,भेद  सारे  हट  जाए।
    दृष्टिगत अनेकत्त्व , अखंड भाव आ जाए।।
    कहत नवल कविराय , है  ऐसी भारत मही।
    अनेकत्त्व  में  एक , नही  ऐसा  ओर कहीं।।

                ©डॉ एन के सेठी
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  • मोर मया के माटी-राजेश पान्डेय वत्स

    मोर मया के माटी


    छत्तीसगढ़ के माटी
    अऊ ओकर धुर्रा।

    तीन करोड़ मनखे
    सब्बौ ओकर टुरी टुरा।। 

    धान के बटकी कहाय,
    छत्तीसगढ़ महतारी।

    अड़बड़ भाग हमर संगी
    जन्में येकरेच दुआरी।। 

    एकर तरपांव धोवय बर
    आइन पैरी अरपा।

    महानदी गंगा जईसन
    खेत म भरथे करपा।। 

    मया के बोली सुनबे सुघ्घर
    छत्तीसगढ़ म जब आबे।

    अही म जनमबे वत्स तैं, 
    मनखे तन जब पाबे।। 

    —-राजेश पान्डेय वत्स
    ०१/११/२०१९
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  • प्रेम का मर जाना

    प्रेम का मर जाना

    डॉ सुशील शर्मा

    प्रेम का मरना ही आदमी का मरना है
    जब प्रेम मरा था तो
    बलि प्रथा सती प्रथा उगी थीं
    प्रेम के मरने पर ही
    धरती की सीमायें सिमट जातीं है।
    महाद्वीप ,देश ,प्रदेश ,भाषाओं
    जाति समुदाय ,मनुष्य ,जानवर का भेद होता है।

    प्रेम मरता है तो
    हिटलर ,मुसोलिनी ,औरंगजेब
    बगदादी ,ओसामा पैदा होते हैं।
    प्रेम मरता है तो
    मंदिर ,मस्जिद ,चर्च में
    ईश्वर की जगह साँप बैठ जाते हैं।

    प्रेम मरता है तो
    आतंकवादी हमले, सेक्स
    गुलामी, नस्लवाद,
    दुनिया में भूख से मरते हुए लोग जिन्दा होते हैं।
    प्रेम के मरने पर
    स्नेह ,संकल्प , साधना ,
    आराधना , उपासना
    सब वासना बन जाते हैं।

    आइये हम सब कोशिश करें
    ताकि प्रेम जिन्दा रहे
    और हमारा अस्तित्व बना रहे
    हमारा शरीर भले ही मर जाए
    किन्तु हम जिन्दा रहें मानवता में
    अनंत युगों तक।

    डॉ सुशील शर्मा

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  • हरि का देश छत्तीसगढ़-बाँके बिहारी बरबीगहीया

    हरि का देश छत्तीसगढ़

    आर्यावर्त के हृदय स्थल पर
    छत्तीसगढ़ एक नगर महान।
    कर्मभूमि रही श्रीराम प्रभु की
    संत गाहीरा,घासीदास बड़े विद्वान।
    संस्कृति यहाँ की युगों पुरानी
    अदृतीय धरा यह पावन धाम ।
    यहाँ धर्म की गंगा अविरल बहती
    कहता है सब वेद पुराण ।
    नित दिन बरसे यहाँ हरि कृपा
    लोग प्रेम सुधा का करें रसपान।
    जीवन धन्य हो जाता उनका
    इस पावन प्रदेश में जो आते हैं
    अद्वितीय नगर इस छत्तीसगढ़ को
    लोग हरि का देश बुलाते हैं ।।

    प्राकृतिक छटा है अद्भुत मनोहारी
    सैलानी करते यहाँ वन विहार।
    कल-कल झरनें सुरम्य हैं दिखते
    नित दिन उर्वी इसे रही सँवार।
    कैलाश गुफा बमलेश्वरी मंदिर
    माँ दंतेश्वरी भी कर रहीं श्रृंगार।
    महानदी, नर्मदा, गोदावरी   
    गंगा की यहाँ बहती पावन धार।
    प्रभु के हाथों इस रचित प्रदेश में
    मिलता है हर प्राणी को प्यार ।
    सफल हो जाता जीवन उनका
    जो यहाँ विहार को आते हैं ।
    अद्वितीय नगर इस छत्तीसगढ़ को
    लोग हरि का देश बुलाते हैं ।।

    धर्म,कला,इतिहास यहाँ का
    लगता है कितना प्यारा ।
    फुगड़ी,लंगड़ी अटकन-बटकन का
    खेल जगत में है न्यारा ।
    लहगा,साया,लुगरी पहनावा
    लुरकी,तिरकी,झुमका,सूर्रा ।
    पपची,खुरमी,सोहरी,ठेहरी
    चिला,पकवान को खाये जगत जहान।
    मुरिया,बैगा,हल्बा जनजाति
    मंझवार,नगेशिया,और महार।
    साबूदाने की प्रसिद्ध खिचड़ी का
    स्वाद जो लोग चख जाते हैं।
    अद्वितीय नगर इस छत्तीसगढ़ को
    लोग हरि का देश बुलाते हैं ।।

    लोकगीतों का राजा ददरिया
    भाव विभोर कर देता है ।
    लोरिक-चंदा की प्रेम कथा
    मनमोह मनुज का लेता है।
    सन्यास श्रृंगार की लोककथा
    मन में अमृत रस घोल देता है ।
    प्रसिद्ध बाँस गीत जो अनुपम
    हर मनुष्य का मन हर लेता है।
    रहस रासलीला भी अद्भुत
    सभी को चकित कर देता है ।
    विश्व प्रसिद्ध बस्तर मेला जो 
    एक बार घूम आते है ।
    अद्वितीय नगर इस छत्तीसगढ़ को
    लोग हरि का देश बुलाते हैं ।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया
    बिहार

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  • छत्तीसगढ़ का वैभव -शशिकला कठोलिया

    छत्तीसगढ़ का वैभव 

    छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    कहलाता धान का कटोरा ,
    है प्रान्त वनाच्छादित ,
    महानदी ,इंद्रावती, हसदो,
     शिवनाथ करती सिंचित,
     छत्तीसगढ़ की गौरवशाली, 
    समृद्ध सांस्कृतिक विरासत,
     जनजीवन पर दिखता,
     सामाजिकता व इंसानियत,
    हुए हैं छत्तीसगढ़ में,
    बड़े बड़े साहित्यकार,
    लोचन ,मुकुटधर ,माधव ,
    गजानन नारायण ,परमार ,
    प्राचीन काल से है यहां ,
    धार्मिक गतिविधियों का केंद्र सिरपुर ,
    डोंगरगढ़ शिवरीनारायण ,
    है आस्था का केंद्र रतनपुर ,
    बस्तर में है दर्शनीय स्थल ,
    कुटुमसर तीरथगढ़ चित्रकूट,
    दिखता यहां के लोगों में ,
    धर्म में आस्था अटूट ,
    हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ,
    सभी धर्म है एक समान ,
    वैष्णव शैव शक्ति ,
    विविध पंथ है यहाँ विद्यमान ,
    लोक कला है यहां समृद्ध ,
    लोक जीवन संस्कृति में थिरकता,
     लोक नृत्यों का है महत्व ,
    धार्मिक गीतों की है बहूलता ,
    गीत नृत्य में गाए जाते ,
    कर्मा सुआ पंथी ददरिया ,
    प्रमुख लोक वाद्य यंत्र ,
    मांदर मोहरी चिकारा बसुरिया,
     छत्तीसगढ़ी है भाषा ,
    और है हिंदी उड़िया ,
    लरिया सादरी उरांव बोली ,
    गोड़ी हल्बी सरगुजिया,
     पर्वों की रंग रंगीली ,
    रची बसी है धारा ,
    तीजा हरेली अक्ति राखी ,
    बैलों की पूजा होती पोरा ,
    नवोदित राज्य है ये ,
    विकास की संभावनाएं अनंत,
    प्राकृतिक व सांस्कृतिक धरोहर,
    अक्षुण्ण बनाए रखें कालांत ।

    श्रीमती शशिकला कठोलिया,
    शिक्षिका,
    अमलीडीह, डोंगरगांव,
    जिला – राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
    मोबाइल नंबर
    9424111041/9340883488
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद