अभी मैं मरा नहीं हूँ।
हां देश की खातिर
मर जाने की,
मैंने कसम उठाई थी।
जिस्म के मेरे,
मर जाने पर.
आंख सभी भर आई थी।
जिस्म से हूं मर गया बेशक,
रूह से मरा नहीं हूँ।
अभी मैं मरा नहीं हूँ।
राजगुरु था
सुखदेव था,
फांसी पर वो साथ मेरे।
जोश में बोला
इंकलाब जब,
थे वो दोनों हाथ मेरे।
फांसी पर लटका हूं बेशक,
लेकिन मैं डरा नहीं हूँ।
अभी मैं मरा नहीं हूँ।
ऐ देश मेरे तु
जिंदाबाद है,
जिंदाबाद रहेगा।
हम हों ना हों
दूनिया में,
पर तु आबाद रहेगा।
जिंदा जहनो दिल में अब तक,
दूर जरा नहीं हूँ।
अभी मैं मरा नहीं हूँ।
नौजवां ये हिंदोस्तां के
दिलों में इनके,
जिंदा हूं मैं।
जिस्म से तेरे पास नहीं हूं
बस इतना,
शर्मिंदा हूं मैं।
समझा होगा तूने मुझको,
जुबान का खरा नहीं हूँ।
अभी मैं मरा नहीं हूँ।
अब भी मेरा
वादा है ये,
आ जाऊंगा लौटकर।
जूनून है अब तक
वही सीने में,
देश का मेरे नोट कर।
सिरफिरा कोई समझे बेशक,
मैं सिरफिरा नहीं हूँ।
अभी मैं मरा नहीं हूँ।।
✍नील सुनील
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद