तुम्हारे होने का अहसास
तुम आसपास नहीं होते
मगर
आसपास होते हैं
तम्हारे होने का अहसास
मन -मस्तिष्क में संचित
तुम्हारी आवाज
तुम्हारी छवि
अक़्सर
हूबहू
वैसी-ही
बाहर सुनाई देती है
दिखाई देती है
तत्क्षण
तुम्हारे होने के अहसास से भर जाता हूँ
धड़क जाता हूँ
कई बार खिड़की के पर्दे हटाकर
बाहर देखने लग जाता हूँ
यह सच है
कि तुम नहीं होते
पर
पलभर के लिए
तुम्हारे होने जैसा लग जाता है
लोगों ने बताया
यह अमूमन
सब के साथ होता है
किसी के न होने पर भी
उसके होने का अहसास…
— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद