है नमन देश की माटी को
विश्वजीत है स्वंत तिरंगा
तीन रंगों की अमृत गंगा
सरफ़रोश होता हर जन मन
मत लेना तुम इससे पंगा,
ऊर्ज समाहित सैन्य बलों में
जन, धन लेकर खड़े पलों में
ऊर्जा का संचार देश में
प्रश्न खड़े अनुत्तरित हलों में,
सबल करे नेतृत्व देश का
अभिमानी हो नहीं द्वेष का
वक़्त पड़े सर कलम कर सके
गद्दारी यूति परिवेश का,
है नमन देश की माटी को
वतनपरस्ती परिपाटी को
शूर वीर से देश लबालब
कर चंदन माथे माटी को.
राजेश पाण्डेय अब्र
अम्बिकापुर