मुफ्ती अब्दुला जैसे वाचालों के मुँह पे ठोका ताला है ।।
भारत में एक विधान रहेगा दुनिया को समझाया है ।
सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।
बादाम खुवानी अखरोटों के बाग पुनः मुस्काये है ।
काश्मीर की गलियों ने फिर गीत खुशी के गाये हैं ।।
कश्यप के आश्रम में अब फिर से यौवन आया है ।
सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।
गंगा यमुना सब खुश हैं अरु झेलम भी हरषायी है ।।
केसर के फूल सजे देखो हर क्यारी मुस्कायी है ।।
मेघदूत के छन्दों को अब सबने मिलकर गाया है ।
सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।
डाँ. आदेश कुमार पंकज
डाँ. आदेश कुमार पंकज
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नाम अटल था, काम अटल था,, जीवन भर विश्वास अटल था, साथ अटल सामर्थ्य अटल था,,, जीवन का सिद्धांत अटल था,, याद करे उस महामानव को,, आज हुई नम आँख हमारी,, नाम था जिनका अटल बिहारी ।। नाम था जिनका,,,,,,,,,,, समर अटल श्मशान अटल था ,, उनका हल अरमान अटल था,, भेष अटल था,द्वेष अटल था,, शांति का संदेश अटल था,, है आज उन्ही की पुण्य स्मृति,, याद कर रहीं दुनिया सारी ,, नाम था जिनका अटल बिहारी ।। नाम था जिनका,,,,,,,,,,,,,,,,,, प्यार अटल, परमार्थ अटल था,, देश का हर अधिकार अटल था,, लड़ के भी जो मेल कर सके, नफरत में भी प्यार अटल था,, इतिहासों के अमिट पटल पर,, दर्ज है उनकी रचना प्यारी,, नाम था जिनका अटल बिहारी ।। नाम था जिनका अटल ,,,,,,,, कालजयी महा मानव था वो जिसका स्वाभिमान अटल था,, सत्य थी उनकी गरिमा महिमा, भारत सुराज अरमान अटल था,, स्वच्छ दक्ष सियासत करते सच संग्राम अटल था,, अंत समय में चलना भी था, लेकिन फिर विश्राम अटल था,, मौत से कब तक लड़ते आखिर, लो आ ही गई जब उनकी बारी,, नाम था जिनका अटल बिहारी,, नाम था जिनका अटल ,,,???
कवि बाके बिहारी बरबीगहीया
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देखो जरा उन चेहरों को जो, दुश्मन की बोली बोल रहे हैं… अलगाव-वाद फैलाने वाले, *क्यूँ जहर फिजा में घोल रहे हैं..
जब देश समूचा झूम रहा है, फिर ये क्यूँ बौखलाए हुए हैं… भोली जनता को डसने वाले, *वे फन अपना फैलाए हुए हैं..
एक देश और एक ही झंडा, लहराएगें हर जगह तिरंगा… जो अमन चैन के दुश्मन हैं वे, *चाहेंगे फिर हो जाए दंगा…
आतंकवाद के साए में ही, दुकानदारी इनकी चलती है.. कितने जवान कुर्बान हो गए, *माँ-बहनें घुट-घुटकर मरती है…
जरा पूछो तो उन चेहरों से, क्या यही उनकी वफादारी है… बीज अलगाव के बोने वाले, यह तो वफा नहीं गद्दारी है…
भारत के ही वासिंदे होकर, भारत भू पर ही मत वार करो… अब बंद करो नफरत की खेती, तुम भी इस मिट्टी से प्यार करो…
केतन साहू “खेतिहर” बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.) इस पोस्ट को like करें (function(d,e,s){if(d.getElementById(“likebtn_wjs”))return;a=d.createElement(e);m=d.getElementsByTagName(e)[0];a.async=1;a.id=”likebtn_wjs”;a.src=s;m.parentNode.insertBefore(a, m)})(document,”script”,”//w.likebtn.com/js/w/widget.js”); कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद