Category: हिंदी कविता

  • चन्द्रयान 2 पर कविता -डी.राज सेठिया

    चन्द्रयान 2 पर कविता

    काबिलियत है,पर मार्ग कठिन बहुत है।
    हासिल कुछ नही ,पर पाया बहुत है।

    हाँ नींद भी बेची थी,पर सकून बहुत पाया था।
    हाँ चैन भी बेची थी,पर गर्व बहुत पाया था।।

    दुआएं थी सवा सौ करोड़ लोगों की,वह क्या कम था।

    इसरो मैं भी भावुक हुँ,क्योंकि मैंने भी दुआ मांगा था।।

    जीवन के पथपर अल्पविराम तो आते हैं,पर पूर्ण विराम नहीँ।
    अंतरिक्ष के पटल पर नाम जरूर होगा,यह कोई संसय नहीँ।।

    प्रयास जरूर रंग लाएगी,तू हिम्मत मत हार।
    विक्रम रुका है इसरो नहीं,तू हौसला मत हार।

    डी.राज सेठिया
    कोंडागांव(छ.ग.)
    8770278506
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  • मेहनत पर विश्वास कर- डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

    मेहनत पर विश्वास कर

                  (1)
    आंख मूंद कर विश्वास न कर ,
    जज्बात में आकर विश्वास न कर।
    कुछ ठोस सबूत तो जान ले,
    सच्चे इंसान को पहचान कर।

                  (2)
    कोई धोखा दे तो उसे माफ कर,
    फिर उस पर  विश्वास न कर।
    आए कठिनाइयों को संघर्ष कर,
    अपनी मेहनत पर विश्वास कर।

                   (3)
    स्वयं पर पहले विश्वास कर ,
    लोगों से प्रेम से बात कर।
    दुख सुख तो एक पहिया है,
    उस परमपिता पर विश्वास कर।

                  (4)
    जग में रहकर कुछ काम कर,
    जग में रहकर कुछ नाम कर ।
    सफलता की ऐसे सीढ़ी प्राप्त कर,
    दुनिया की हर कोनो में पहचान कर।

    ~~~~~~

    रचनाकार – डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    मिडिल स्कूल पुरुषोत्तमपुर,बसना
    जिला महासमुंद (छ.ग.)
    मो. 8120587822

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  • धारा तीन सौ सत्तर पैतींस ए -डाँ. आदेश कुमार पंकज

     धारा तीन सौ सत्तर पैतींस ए 

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।

    छप्पन इंची के सीने ने ही साहस दिखलाया है ।।

    बच्चों को बंदूकें देकर जहर घोलते फिरते थे ।

    केसर की क्यारी जो जन आग लगाते फिरते थे ।।

    ऐसे सब गद्दारों को उनके घर में दफनाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।

    धारा तीन सौ सत्तर को एक क्षण में है मठ डाला ।

    छप्पन भोगी लोगों का पूर्ण क्षरण है कर डाला ।।

    पड़ी अँधेरी घाटी में इक सूरज नया उगाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।

    सरकारी खर्चें पर जो सब दूध मलाई खाते थे ।

    ऐश कर रहे भारत में पर गीत पाक के गाते थे ।।

    ऐसे आस्तीनी साँपों को रस्ता नया दिखाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    पैतिंस ए को खत्म किया इतिहास नया रच डाला है ।

    मुफ्ती अब्दुला जैसे वाचालों के मुँह पे ठोका ताला है ।।

    भारत में एक विधान रहेगा  दुनिया को समझाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    बादाम खुवानी अखरोटों के बाग पुनः मुस्काये है ।

    काश्मीर की गलियों ने फिर गीत खुशी के गाये हैं ।।

    कश्यप के आश्रम में अब फिर से यौवन आया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    गंगा यमुना सब खुश हैं अरु झेलम भी हरषायी है ।।

    केसर के फूल सजे देखो हर क्यारी मुस्कायी है ।।

    मेघदूत के छन्दों को अब सबने मिलकर गाया है ।

    सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।


    डाँ. आदेश कुमार पंकज

    डाँ. आदेश कुमार पंकज

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  • अटल जी की स्मृति में कविता – बाके बिहारी बरबीगहीया

    अटल जी की स्मृति में कविता – बाके बिहारी बरबीगहीया

    अटल जी की स्मृति में कविता 

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    नाम अटल था, काम अटल था,,
    जीवन भर विश्वास अटल था, 
    साथ अटल सामर्थ्य अटल था,,,
    जीवन का सिद्धांत अटल था,,
    याद करे उस महामानव को,,
    आज हुई नम आँख हमारी,,
    नाम था जिनका अटल बिहारी ।।
    नाम था जिनका,,,,,,,,,,,
    समर अटल श्मशान अटल था ,,
    उनका हल अरमान अटल था,,
    भेष अटल था,द्वेष अटल था,,
    शांति का संदेश अटल था,,
    है आज उन्ही की पुण्य स्मृति,,
    याद कर रहीं दुनिया सारी ,,
    नाम था जिनका अटल बिहारी ।।
    नाम था जिनका,,,,,,,,,,,,,,,,,,
    प्यार अटल, परमार्थ अटल था,,
    देश का हर अधिकार अटल था,,
    लड़ के भी जो मेल कर सके,
    नफरत में भी प्यार अटल था,,
    इतिहासों के अमिट पटल पर,,
    दर्ज है उनकी रचना प्यारी,,
    नाम था जिनका अटल बिहारी ।।
    नाम था जिनका अटल ,,,,,,,,
    कालजयी महा मानव था वो 
    जिसका स्वाभिमान अटल था,,
    सत्य थी उनकी गरिमा महिमा, 
    भारत सुराज अरमान अटल था,,
    स्वच्छ दक्ष  सियासत करते
     सच संग्राम अटल था,,
     अंत समय में चलना भी था,
    लेकिन फिर विश्राम अटल था,,
    मौत से कब तक लड़ते आखिर,
    लो आ ही गई जब उनकी बारी,,
    नाम था जिनका अटल बिहारी,,
    नाम था जिनका अटल ,,,???

    कवि बाके बिहारी बरबीगहीया

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  • मिट्टी से प्यार करो अनुच्छेद370 – केतन साहू खेतिहर

    मिट्टी से प्यार करो अनुच्छेद370

    देखो जरा उन चेहरों को जो,
    दुश्मन की बोली बोल रहे हैं…
    अलगाव-वाद फैलाने वाले,
    *क्यूँ जहर फिजा में घोल रहे हैं..

    जब देश समूचा झूम रहा है,
    फिर ये क्यूँ बौखलाए हुए हैं…
    भोली जनता को डसने वाले,
    *वे फन अपना फैलाए हुए हैं..

    एक देश और एक ही झंडा,
    लहराएगें हर जगह तिरंगा…
    जो अमन चैन के दुश्मन हैं वे,
    *चाहेंगे फिर हो जाए दंगा…

    आतंकवाद के साए में ही,
    दुकानदारी इनकी चलती है..
    कितने जवान कुर्बान हो गए,
    *माँ-बहनें घुट-घुटकर मरती है…

    जरा पूछो तो उन चेहरों से,
    क्या यही उनकी वफादारी है…
    बीज अलगाव के बोने वाले,
    यह तो वफा नहीं गद्दारी है…

    भारत के ही वासिंदे होकर,
    भारत भू पर ही मत वार करो…
    अब बंद करो नफरत की खेती,
    तुम भी इस मिट्टी से प्यार करो…

          केतन साहू “खेतिहर”
      बागबाहरा, महासमुंद (छ.ग.)
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