Category: हिंदी कविता

  • अचरज मा परगे

    अचरज मा परगे

    कोठी तो बढ़हर के* छलकत ले भरगे।
    बइमानी के पेंड़ धरे पुरखा हा तरगे॥
    अंतस हा रोथे संशो मा रात दिन।
    गरीब के आँसू हा टप-टप ले* ढरगे॥
    सुख के सपुना अउ आस ओखर मन के।
    बिपत के आगी मा सब्बो* हा  जरगे॥
    सुरता के रुखवा हा चढ़े अगास मा।
    वाह रे वा किस्मत! पाना अस झरगे*
    माछी नहीं गुड़ बिना हवे उही हाल।
    देख के गरीबी ला मया मन टरगे॥
    जिनगी अउ मन मा हे कुल्लुप अँधियार।
    रग-बग अंजोर भले बाहिर बगरगे॥
    वाह रे विकास सलाम हावय तोला।
    धान, कोदो, तिवरा, मण्डी मा सरगे॥
    नाली मा काबर भोजन फेंकाथे।
    गरीबी मा कतको, लाँघन तो  मरगे॥ 
    लोगन के कथनी अउ करनी ला देख।
    “निर्मोही” बिचारा, अचरज मा परगे॥
         बालक “निर्मोही”
               बिलासपुर
            30/05/2019
                
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  • बच्चे होते मन के अच्छे

    बच्चे होते मन के अच्छे

    बच्चे होते मन के अच्छे

    बच्चे होते मन के अच्छे

    खेल कूद वो दिन भर करते,रखते हैं तन मन उत्साह।
    पेड़ लगा बच्चे खुश होते,चलते हैं मन मर्जी राह।।
    मम्मी पापा को समझाते,बन कर ज्ञानी खूब महान।
    बात बडों का सुनते हैं वे,रखते मोबाइल का ज्ञान।।


    रोज लगा जंगल बुक देखें,पाते ही कुछ दिन अवकाश।
    बेन टेन मल्टी राजू को,मोटू पतलू होते ख़ास।।
    गिल्ली डंडा कंचा खेलें,शोर मचाते मुँह को खोल।
    तोड़ फोड़ में माहिर रहते,क्या जाने कितना है मोल।।


    पर्यावरण बने तब बढ़िया,दे बच्चो को इसका ज्ञान।
    वादा कर के वो रख लेंगे,आस पास का बढ़िया मान।।
    बेमतलब के चलते हैं जो,उनको कर दे बच्चे मंद।
    टीवी पंखा कूलर बिजली,कर सकते चाहे तो बंद।।


    विकल्प ऊर्जा का वो जाने,पढ़ पढ़ कर के सारे खोज।
    स्कूल चले वो पैदल जा के,बचत करे ईंधन को रोज।।
    डिस्पोजल पन्नी को फेंके, जाने ये तो कचरा होय।
    खूब बढ़े ये जो धरती में,आगे चल के हम सब रोय।।


    खूब बहाते बच्चे पानी,बंद करे जा के नल कोय।
    होत समझ जो बर्बादी की,फिर काहे को ऐसे होय।।
    बच्चे होते मन के अच्छे,होत भले ही वो नादान।
    पर्यावरण बता दे उनको,मिल जाए फिर सारा ज्ञान।।


    राजकिशोर धिरही
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  • अभाव-गुरु

    अभाव-गुरु

    “उस वस्तु का नहीं होना” मैं,
    जरूरत सभी जन को जिसकी।
    प्रेरक वरदान विधाता का,
    सीढ़ी मैं सहज सफलता की।।1
    अभिशाप नहीं मैं सुन मानव,
    तेरी हत सोंच गिराती है।
    बस सोंच फ़तह करना हिमगिरि,
    यह सोंच सदैव जिताती है।।2
    वरदान और अभिशाप मुझे
    तेरे ही कर्म बनाते हैं।
    असफल हताश,औ’ कर्मविमुख
    मिथ्या आरोप लगाते हैं।।3
    तीनों लोकों में सभी जगह,
    मैंने ही पंख पसारे हैं।
    सब जूझ रहे हैं,सफल वही
    जो मुझसे जंग न हारे हैं।।4
    मैं महोत्थान जिनका चाहूँ
    अगनित परीक्षा उनकी लेता।
    गुरुश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हूँ मैं,
    नित ब्रह्मज्ञान सबको देता।।5
    पड़ते ही चारु चरण मेरे,
    नित ज्ञान-चक्षु सबके खुलते।
    बुधिबल,विवेक वर पाकर जड़
    सीढ़ी सर्वोच्च सदा चढ़ते।।6
    श्रद्धा,निष्काम मनः युत जन
    जो गुरु चरणों में आते हैं।
    इच्छित वर पा गुरु-सेवा से,
    सब ताप-शोक को खोते हैं।।7
    जो दृढ़प्रतिज्ञ,दृढ़ निश्चय कर,
    नित एक लक्ष्य ले चलते हैं।
    चित चाह बढ़ा,श्रम कर्ता को,
    जीवन-फल सुंदर मिलते हैं।।8
    अलसाये,कर्म विरत जन ही
    नित रोते हैं रोना मेरा।
    चढ़ भावों की उत्तुंग-शिखर,
    होगा न भाल कुअंक तेरा।।9
    निखार मांज कर सभी जन को,
    जीवन-रहस्य मैं समझाता।
    जो हार मान चुप बैठे हैं,
    ऊर्जा अपार उनमें भरता।।10
    जो जन मुझसे प्रेरित होकर,
    कर्माभिमुख सदा हो जाते।
    लिख एकलव्य सम निज किस्मत,
    उसकी हर काज सफल होते।।11
    शक्ति असीम निज मन में जगा,
    सन्तान महा ऋषिवर मनु के,
    निष्ठा रख गुरु पद,आरुणि-सा,
    ये दाता हैं सब सुफ़लों के।।12
    पदसेवा में अभाव-गुरु की,
    तन-मन-धन-जीवन वारोगे।
    कंचन-सा तपकर निखरोगे,
    जीवन का दाव न हारोगे।।13
    सिद्धांत,सांख्यदर्शन का है
    ‘कार्योत्पत्ति’ सभी, ‘कारण’ से।
    मैं ही कारण सब कार्यों का,
    सारे विकास ही हैं मुझसे।।14
    सृष्टि-विकास,इसी से सर्जन,
    जननी हर निर्मित चीजों की।
    कर्ता की प्रेरक शक्तिमहा,
    करते जब सेवा अभाव की।।15
    जब एक अभाव पूरित होता,
    तब जन्म दूसरा लेता है।
    सृष्टि-विकास सदा से इससे,
    नवीन वस्तु हमें देता है।।16
    युगल किशोर पटेल
    सहायक प्राध्यापक(हिंदी)
    शासकीय वीर सुरेंद्र साय महाविद्यालय, गरियाबंद
    जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
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  • सीमा पर है जो खड़ा

    सीमा पर है जो खड़ा
                             

    सीमा पर है जो खड़ा ,
                              अपना सीना तान ।
    उसके ही परित्याग से ,
                             रक्षित  हिंदुस्तान ।।
    रक्षित    हिंदुस्तान ,
                       याद कर सब कुरबानी ।
    करे शीश का दान ,
                        हिंद का अद्भुत दानी ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
                        कहें सब अर्जुन भीमा ।
    पराक्रमी शूर  शौर्य ,
                    नहीं जिसकी बल सीमा ।।
                     रामनाथ साहू ” ननकी “
                मुरलीडीह , जैजैपुर ( छ.ग. )
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  • शपथ उठाती हूं मैं भारत की बेटी

    शपथ उठाती हूं मैं भारत की बेटी

    शपथ उठाती हूं मैं भारत की बेटी
    मैं कभी भी  सर नहीं झुकाऊंगी
    लाख कर लो तुम भ्रूण की हत्या
    फिर भी जन्म मै लेती ही जाऊंगी।


    कब तक तुम मुझको मारते रहोगे
    कभी तो तुम्हें मुझपे तरस आएगी
    फिर भी अगर नहीं सुधरोगे अगर
    सोचो बेटों की बारात कहां जाएगी।


    कर लो तुम मुझपे लाखो  सितम
    मैं सदा दुख सहकर मुस्कुराऊंगी
    लडूंगी मैं अपनी ताकत के रहते
    हवसी झुंड देख नहीं घबराऊंगी।


    अबला कहने वाले लोगों सुन लो
    सोच अब खुद की सुधारनी होगी
    चली आ रही दहेज की प्रथा को
    अबकी बार तुमको मिटानी होंगी।


    अगर अबकी जली एक भी बेटी
    जहान में देखना भूचाल आएगा
    दुर्गा काली का रूप लेंगी बेटियां
    जग में चहुं ओर हाहाकार होगा।।


    क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग