Category: हिंदी कविता

  • हमारी भाग्य विधाता मां

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    हमारी भाग्य विधाता मां

    ना शब्द है ना कोई बात,
    जो मां के लिए लिख पाऊं,
    उसके चरणों में मैं,
    नित-नित शीश झुकाऊं,
    जग जननी है मां,
    हमारी भाग्य विधाता मां।
    गीली माटी की तरह ,
    वो हमको गढ़ती है,
    संस्कार की रौशनी ,
    वो हममें भर्ती है,
    कौन करेगा ये सब,
    मां ही तो करती है।
    कढ़ी धूप में शीतल छाया,
    हरदम रहता मां का साया,
    उसकी गोद में आकर ,
    जन्नत का सुख मैंने पाया,
    इतनी ममता लुटाती है,
    और कौन ,मां ही करती है।
    ममता की बरसात है वो,
    प्यार की वो प्यास  है वो,
    अपने बच्चों की खुशियों
    की मुस्कान है वो,
    मां तो मां है हमारे ,
    जीवन की आधार है वो
    कितनी रातें कितनी सपनों,
    का उसने त्याग किया,
    तब जाकर उसने हमारे ,
    सपनो को साकार किया,
    उसका मान और सम्मान करें,
    चाहे कितना बलिदान करें ,
    कभी भी ये कर्ज उतार,
    नहीं पायेंगे,
    उसकी श्रद्धा से शीश  हम ,
    झुकाएगे,
    मां तो सिर्फ मां है
    नित -नित शीश झुकाएंगे।
    पूनम दूबे अम्बिकापुर छत्तीसगढ़
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  • तू ही मेरा प्रारब्ध है माँ”

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    तू ही मेरा प्रारब्ध है माँ”

    वंदन अर्चन हे जन्मदायिनी
    सबसे  प्यारा  शब्द है   माँ
    पहचान मेरी तेरे आँचल से
    तू  ही  मेरा  प्रारब्ध  है माँ l
    तू ही  मेरी पहली धड़कन  है
    तू  ही मेरी अंतिम साँस है  माँ
    महिमा मंडन तेरा कर न पाऊँ
    जीवन का दिव्य प्रकाश है माँ l
    अस्तित्व दिलाने को धरती पर 
    माँ   सहस्रों  कष्ट उठाती है
    कुछ लिखने बैठूं तुझ पर तो
    ये लेखनी मेरी रुक जाती है l
    शब्दों में बांधना मुश्किल है माँ
    तेरी ममता, समर्पण प्यार को
    नतमस्तक नमन करता ईश्वर
    तेरे  करुणा के भण्डार को l
    त्याग,स्नेह, कष्टों में खिलना
    तेरा  आचरण  व्यवहार  है
    संतान ही तेरी आशा है माँ
    तुझसे  ही  घर  संसार  है l
    पीड़ा दुख  में जब होती माँ
    हमारे सुख साधन है जुटाती
    अश्क़ हमारे खुद पीकर माँ
    मीठे  सपनों में  है  सुलाती  l
    कर्तव्यपरायण, कर्मनिष्ठ हो
    धरती सा धैर्य है रखती माँ
    धूप में बरगद की छाया सी
    जीवन सुरभित है करती माँ l
    प्यार भरा  है हृदय में  तेरे
    असीम,अनंत,अथाह,अपार
    संस्कारों की खान है माँ तू
    दामन में  तेरे भरा  दुलार l
    त्याग तपस्या की  तू मूरत
    जीवन  का है तू दूजा नाम
    गीता,कुरान,बाइबल भी तू
    माँ  तू  ही  है  चारों धाम l
    ये  जीवन तेरी  देन है माँ
    जन्म  मिला तुझे  पाकर
    ममता का मीठा झरना है तू
    माँ तू सुख सरिता का सागर l
    कुसुम लता पुन्डोरा
    आर के पुरम
    नई दिल्ली
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  • माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं।
    भू से भारी वात्सल्य तेरा, जिसका कोई तोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    हो आँखों से ओझल लाल यदि, पड़े नहीं कल अंतर में।
    डोले आशंकाओं में चित, नौका जैसे तेज भँवर में।
    लाल की खातिर कुछ भी सहने मे, तेरे मन में गोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    खुद गीले में सो कर भी, सूखे में तू उसे सुलाए।
    देख उपेक्षा चुप से रो लेती, ना सपने में भी उसे रुलाए।
    सुनती लाख उलाहने उसके, फिर भी मन में झोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    लाल की खातिर सारे जग से, निशंकोच वैर तू ले लेती।
    दो पल का सुख उसे देने में, अपना सर्वस्व लुटा देती।
    तेरे रहते लाल के माथे, बल पड़ जाए ऐसी पोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    रूठे तेरा लाल कभी तो, मुँह में कलेजा आ जाता।
    एक आह उसकी सुन कर, तम आँखों आगे छा जाता।
    गिर पड़े कहीं वो पाँव फिसल, तो तेरे मुख में बोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    तेरा लाल हँसें तो हे माता, तेरा सारा जग हँसता।
    रोए लाल तो तुझको माता, सारा जग रोता दिखता।
    ‘नमन’ तेरे वात्सल्य को हे माँ, इससे कुछ अनमोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
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  • माँ पर कविता – अभिलाषा

    माँ पर कविता – अभिलाषा

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

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    माँ पर कविता

    माँ पर कविता – अभिलाषा

    माँ तुम…………………………..
    दया ममता करुणा की मूरत हो…
    ईश्वर की सूंदर प्रतिकृति हो….
    सघन वन की घनी छाया हो…
    रेगिस्तान की तपती रेत हो…


    विराट विशाल आकाश का आशीर्वाद हो…
    रक्षिका बनी सिंहनी हो…..
    समुन्दर में उठती सैलाब हो…
    पहाड़ो की सुन्दर श्रृंखला हो…


    निर्झर झरने की मीठी सोता हो….
    फलदार वृक्ष की घनी छाया हो…
    धूप की उजली मुस्कान हो..
    स्निग्ध चाँदनी की कनात हो….


    चमकते टूटे तारों की शगुन हो…
    हिमानी ठंडी शीतल वर्षा हो….
    गंगा की पवित्र धारा हो …..
    अग्नि की गर्म ज्वाला हो….


    जीवन की मधुर धुन हो….
    मेरे हर दुखों को महसूस करनेवाली,
    दिल की गहराइयों से,
    बहती अश्रुधारा हो….


    माँ तुम……………
    निःशब्द प्रेम की गाथा हो….
    कैसे तुम्हे शब्दों में बाँध सकूँ….
    तुम असीमित विस्तार की ,
    परिभाषा हो माँ,
    मेरे जीवन की अभिलाषा हो………
    माँ……………………….
                 तुम्हारी प्रतिकृति 
                                       अभिलाषा अभि

  • धरती माता रो रो कर करती यही पुकार

    धरती माता रो रो कर करती यही पुकार

    धरती माता रो रो कर करती  यही पुकार ।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे मनुज तुम  मुझे  संवारो ।।
    महल बना कर बड़े बड़े
    तुम बोझ न मुझ पर डालो ।
    पेड़ पौधों को काट काट
    कर न पर्यावरण  बिगाड़ो।
    मैं हूँ सबकी भाग्य विधाता
    सब जीवों से मुझे प्यार ।।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे
    मनुज तुम मुझे संवारो ।।
    मेरे गोद में जन्म लिया तू
    मुझसे जीवन पाया
    अन्न फल फूल  देकर
    तेरे जीवन को महकाया ।
    मानव तू अंतस में  झाँक कर
    मन में  तनिक  विचार ।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे
    मनुज तुम मुझे संवारो ।।
    चाँद निकलता मैं हँसती
    सूर्य ताप  सह जाती हूँ ।
    कलरव करती चिडिया
    आँगन मन ही मन मुस्काती हूँ ।
    कूडा करकट न डाल तू  मुझपे
    प्रदूषण को भी संभाल ।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे
    मनुज तुम मुझे संवारो ।
    धरती माता रो रो कर
    करती यही पुकार ।
    न मेरा रूप—

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद