Category: हिंदी कविता

  • गर्दिश में सितारे हों

    गर्दिश में सितारे हों

    गर्दिश में सितारे हों जिसके, दुनिया को भला कब भाता है,
    वो लाख पटक ले सर अपना, लोगों से सज़ा ही पाता है।

    मुफ़लिस का भी जीना क्या जीना, जो घूँट लहू के पी जीए,
    जितना वो झुके जग के आगे, उतनी ही वो ठोकर खाता है।

    ऐ दर्द चला जा और कहीं, इस दिल को भी थोड़ी राहत हो,
    क्यों उठ के गरीबों के दर से, मुझको ही सदा तड़पाता है।

    इतना भी न अच्छा बहशीपन, दौलत के नशे में पागल सुन,
    जो है न कभी टिकनेवाली, उस चीज़ पे क्यों इतराता है।

    भेजा था बना जिसको रहबर, पर पेश वो रहज़न सा आया,
    अब कैसे यकीं उस पर कर लें, जो रंग बदल फिर आता है।

    माना कि जहाँ नायाब खुदा, कारीगरी हर इसमें तेरी,
    पर दिल को मनाएँ कैसे हम, रह कर जो यहाँ घबराता है।

    ये शौक़ ‘नमन’ ने पाला है, दुख दर्द पिरौता ग़ज़लों में,
    बेदर्द जमाने पर हँसता, मज़लूम पे आँसू लाता है।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • नज़र आता है

    नज़र आता है

    हर अक्स यहाँ बेज़ार नज़र आता है,
    हर शख्स यहां लाचार नज़र आता है।

    जीने की आस लिए हर आदमी अब,
    मौत का करता इंतजार नज़र आता है।

    काम की तलाश में भटकता रोज यहाँ
    हर युवा ही बेरोजगार नज़र आता है।

    छाप अँगूठा जब कुर्सी पर बैठा तब,
    पढ़ना लिखना बेकार नज़र आता है।

    भूखे सोता गरीब, कर्ज़ में डूबा कृषक
    हर बड़ा आदमी सरकार नज़र आता है।

    गाँव शहर की हर गली में मासूमों संग,
    यहाँ रोज होता बलात्कर नज़र आता है।

    और क्या लिखोगे अब दास्ताँ ‘प्रियम’
    सबकुछ बिकता बाज़ार नज़र आता है।

    ©पंकज प्रियम

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  • कब कैसे क्या बोले ?

    कब कैसे क्या बोले ?


    वाणी एक दुधारू तलवार की तरह है।
    उचित प्रयोग करे तो अच्छा,नहीं तो बुरा।
    अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
    ज्ञान की बात को सहेजकर रखते है।
    कब कैसे क्या बोले पता नहीं।
    जुबान फिसली तो रुका नहीं।
    मन को शांति बनाकर रखिए।
    होठों से मुस्कान प्रेम से बोलिए।
    छोटी सी जीभ,बड़े बड़े कहर ढा दे।
    लड़ाई झगड़े छोड़के, अमन चैन दिला दे।
    संयम शीतल भाव से, सादगी झलका दे।
    मीठे वचन बोलके, प्रेम के रस पिला दे।
    वाणी का वरदान, मानव को मिला है।
    वाणी से ही मिठास उतपन्न होता है।
    वाणी से ही दूसरे को ठेस पहुंचता है।
    इसे कैसे इस्तेमाल करें,आपको पता है।


    रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभवना,बिलाईगढ़,बलौदाबाजार (छ.ग.)
    ‌मो . 812058782
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  • कर्मठता की जीत

    कर्मठता की जीत

    स्वाभिमान मजबूत है , पोषण का है काज ।
    बैठ निठल्ला सोचता ,  बना भिखारी आज ॥
    लाचार अकर्मण्यता , मंगवा रही भीख ।
    काज बिना कर के करे , कुछ तो उससे सीख ॥
    आलसी लाचार बने , करे गलत करतूत ।
    कर्मठता सबसे बड़ी , कर देती मजबूत ॥
    मिलता है मेहनत से , जब भर पेट अनाज ।
    खाली क्यों बैठा रहा , अन्न को मोहताज ॥
    दान करते रहें सदा , हो  पात्र संज्ञान ।
    कुपात्र-दान हो नहीं  , बढ़े भिखारी जान ॥
    सोच समझ के कीजिये , यह अमूल्य है दान ।
    वरना होगा ही नहीं , समस्या का निदान ॥
    बोना बीज सुकर्म के , पुण्य-फसल लहराय ।
    हर मौसम में फल मिले , मन पुलकित हो जाय ॥
    जीवन कविता रूप है , समन्वय अलंकार ।
    भावों की जब लय रहे , मनभावन आकार ॥
    कर्मठता की लेखनी , रचना है इतिहास ।
    कर्म स्वयं ही बोलता , यही सुखद अहसास ॥
    भावों की खेती करें , रखना बस ये ध्यान ।
    फसल उगाना लक्ष्य की , बाकी तजें सुजान ॥
    मधु सिंघी
    नागपुर ( महाराष्ट्र )
    9422101963
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  • आओ सब मिल कर संकल्प करें

    आओ सब मिल कर संकल्प करें

    आओ सब मिल कर संकल्प करें।
    चैत्र शुक्ल नवमी है कुछ तो, नूतन आज करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।
    हम इस में रहना सिखलाएं, तोड़े कोई इसको जब।
    मर्यादा के स्वामी की, धारण यह सीख करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    मात पिता गुरु और बड़ों की, सेवा का ही मन हो।
    भाई मित्र और सब के, लिए समर्पित ये तन हो।
    समदर्शी सा बन कर, सबसे व्यवहार करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    उत्तम आदर्शों को हम, जीवन में सभी उतारें।
    कर चरित्र निर्माण स्वयं को, जग में आज सुधारें।
    खुद उत्तम बन कर हम, पुरुषोत्तम को ‘नमन’ करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    आज रामनवमी के दिन हम, मिल कर व्रत यह लेवें।
    दीन दुखी आरत जन जन को, सकल सहारा देवें।
    राम-राज्य का धरती पर, सपना साकार करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
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