Category: हिंदी कविता

  • रामनाथ की कुण्डलिया

    रामनाथ की कुण्डलिया

    (1)  प्रातः  जागो भोर में ,
                        लेके  हरि  का   नाम ।
           मातृभूमि वंदन करो ,
                        फिर पीछे सब काम ।।
           फिर पीछे सब काम ,
                       करो तुम दुनियादारी ।
           अपनाओ    आहार ,
                       शुद्ध ताजे  तरकारी ।।
           कह ननकी कविराज ,
                     मांस ये मदिरा त्यागो ।
           देर  रात  मत जाग ,
                      हमेशा   प्रातः  जागो ।।


    (2)  दीपक चाहे स्वर्ण  का ,
                        या  फिर  मिट्टी  कोय ।
            उसकी कीमत जोत है ,
                        कितना उजाला होय ।।
            कितना  उजाला  होय ,
                        अँधेरा रहता  कितना ।
            गरीब   अमीर     मित्र ,
             .          भले हो चाहे जितना ।।
            कह ननकी  कविराज,
                        बनो  मत कोई दीमक ।
            गर्वित     हो     संबंध ,
                     जलो बन के तुम दीपक ।।
                   ~   रामनाथ साहू ” ननकी “
                            मुरलीडीह (छ. ग.)

  • होलिका दहन पर हिंदी कविता / पंकज प्रियम

    होलिका दहन पर हिंदी कविता / पंकज प्रियम

    होलिका दहन पर हिंदी कविता / पंकज प्रियम

    holika-dahan
    holika-dahan

    बुराई खत्म करने का प्रण करें
    आओ फिर होलिका दहन करें।
    औरत की इज्जत का प्रण करें,
    आओ फिर होलिका दहन करें।

    यहां तो हर रोज जलती है नारी
    दहेज कभी दुष्कर्म की है मारी
    रोज कोई रावण अपहरण करे
    पहले इनका मिलकर दमन करे
    आओ फिर…..

    हर घर प्रह्लाद सा कुंठित जीवन
    मां बाप के सपनों मरता बचपन
    होटलो में मासूम धो रहा बरतन
    पहले तो इन मुद्दों का शमन करें
    आओ फिर …

    सरहद पे रोज चलती है गोली
    पहियों तले कुचलती है बोली
    भूख कर्ज में रोती जनता भोली
    पहले इतने बोझ को वहन करें
    आओ फिर …

    आओ फिर होलिका दहन करे
    आओ फिर होलिका दहन करें।

    पंकज प्रियम

  • ऋतु बसंत आ गया

    ऋतु बसंत आ गया


              बिखरी है छटा फूलों की,
              शोभा इंद्रधनुषी रंगों की,
              कोयल की कूक कर रही पुकार,
              ऋतु बसंत आ गया,
              आओ मंगल-गान करें।
    महुए के फूलों की मदमाती बयार,
    आम्र मंजरी की बहकाती मनुहार,
    सुरमई हुए जीवन के तार,
    ऋतु बसंत आ गया,
    आओ मंगल-गान करें।
                 महकी सी लगती है हर गली,
                 कुसुमित हर्षित है हर कली,
                 आनन्दित है सब संसार,
                 ऋतु बसंत आ गया,
                 आओ मंगल-गान करें।।
    सरसों के पीले बासंती रंग से,
    टेसू-पलाश की लालिमा लिए,
    मौसम ने किया श्रृंगार ,
    ऋतु बसंत आ गया,
    आओ मंगल-गान करें।।
                       हर्ष में मग्न जनजीवन सारा,
                       पुलकित है घर आंगन प्यारा,
                       भँवरे करने लगे गुंजार,
                       ऋतु बसंत आ गया,
                       आओ मंगल-गान करें ।।     
    दुःख के बाद सुख का आना,
    पतझड़ के बाद बसंत का आना,
    कहता है जीवन का सार,
    ऋतु बसंत आ गया ,
    आओ मंगल-गान करें।
    —————-———
        पूर्णिमा सरोज
       (व्याख्याता रसायन)
          जगदलपुर(छ. ग.)
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • दिल की बात बताकर देखो

    दिल की बात बताकर देखो

    दिल की बात बताकर देखो
    मन में दीप जलाकर देखो।
    कौन किसी को रोक सका है
    नाता खास निभाकर देखो।
    आँखों की बतिया समझो तो
    लब पर मौन सजाकर देखो।
    इश्क़ सफ़ीना सबका यक सा
    थोड़ा पार लगाकर देखो।
    लोग जगत सब मैला यारों
    मन का वहम मिटाकर देखो।
    रब का एक नज़रिया सब पर
    ऐसा भाव जगाकर देखो।

    राजेश पाण्डेय अब्र
        अम्बिकापुर

  • मंज़िल पर कविता

    मंज़िल पर कविता

      सूर्य की मंज़िल अस्ताचल तक,
    तारों की मंज़िल सूर्योदय तक।
    नदियों की मंज़िल समुद्र तक,
    पक्षी की मंज़िल क्षितिज तक।

    मंजिल लक्ष्य

    अचल की मंज़िल शिखर तक,
    पादप की मंज़िल फुनगी तक।
    कोंपल की मंज़िल कुसुम तक,
    शलाका की मंज़िल लक्ष्य तक।

    तपस्वी की मंज़िल मोक्ष तक,
    नाविक की मंज़िल पुलिन तक।
    श्रम की मंज़िल सफलता तक,
    पथिक की मंज़िल गंतव्य तक।

    बेरोजगार की मंज़िल रोजी तक,
    जीवन की मंज़िल अवसान तक।
    वर्तमान की मंज़िल भविष्य तक,
    ‘रिखब’ की मंज़िल समर्पण तक।

    ®रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’
    जयपुर (राजस्थान)

    मनीभाई नवरत्न की १० कवितायेँ