सेना पर कविता
सेना भारत वर्ष की, उत्तम और महान।
इसके साहस की सदा, जग करता गुणगान।
जग करता गुणगान, लड़े पूरे दमखम से।
लेती रिपु की जान, खींच कर लाती बिल से।
*और बढ़ाती *शान* , जीत बिन साँस न लेना।
सर्व गुणों की खान, बनी बलशाली सेना।
ताकत अपनी दें दिखा, दुश्मन को दें मात।
ऐसी ठोकर दें उसे, नहीं करे फिर घात।
नहीं करे फिर घात, छुड़ा दें उसके छक्के।
आका उसके बाद, रहें बस हक्के-बक्के।
पड़े पृष्ठ पर लात, करे फिर नजिन हिमाकत।
दिखला दें औकात, प्रदर्शित कर के ताकत।।
घुटने पर है आ गया, बेढब पाकिस्तान।
चहुँमुख घातक चोट से, तोड़ दिया अभिमान।।
तोड़ दिया अभिमान, दिखा कर ताकत अपनी।
मेटें नाम-निशान, अकड़ चाहे हो जितनी।
अभिनंदन है “शान” , लगे आतंकी मरने।
सेना के अभियान, तोड़ते पाकी घुटने।।
प्रवीण त्रिपाठी, नई दिल्ली, 02 मार्च 2019
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद