Category: हिंदी कविता

  • सेना पर कविता

    सेना पर कविता

    नन्हे मुन्ने सैनिक

    सेना भारत वर्ष की, उत्तम और महान।
    इसके साहस की सदा, जग करता गुणगान।
    जग करता गुणगान, लड़े पूरे दमखम से।
    लेती रिपु की जान, खींच कर लाती बिल से।
    *और बढ़ाती *शान* , जीत बिन साँस न लेना।
    सर्व गुणों की खान, बनी बलशाली सेना।
    ताकत अपनी दें दिखा, दुश्मन को दें मात।
    ऐसी ठोकर दें उसे, नहीं करे फिर घात।
    नहीं करे फिर घात, छुड़ा दें उसके छक्के।
    आका उसके बाद, रहें बस हक्के-बक्के।
    पड़े पृष्ठ पर लात, करे फिर नजिन हिमाकत।
    दिखला दें औकात, प्रदर्शित कर के ताकत।।
    घुटने पर  है  आ  गया, बेढब   पाकिस्तान।
    चहुँमुख घातक चोट से, तोड़ दिया अभिमान।।
    तोड़ दिया अभिमान, दिखा कर ताकत अपनी।
    मेटें नाम-निशान, अकड़ चाहे हो जितनी।
    अभिनंदन है “शान” , लगे आतंकी मरने।
    सेना के अभियान, तोड़ते पाकी घुटने।।
    
    प्रवीण त्रिपाठी, नई दिल्ली, 02 मार्च 2019
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  • मेरी कविता मां काली है

    मेरी कविता मां काली है

    मेरी कविता में करुण नही,
    क्रंदन कर अश्क बहायेगी ।
    श्रृंगार नहीं है कविता में ,
    जो गीत प्रेम के गायेगी ।
    सैनिक के साथ चला करती,
    यह भारत की रखवाली है ।
    शत्रु का शोणित पान करे ,
    मेरी कविता मां काली है ।
    प्रलय कर दे शत्रु दल में,
    वैरी को त्रास भयंकर है।
    जनहित को जो विषपान करे ,
    मेरी कविता शिव शंकर है।
    धर से मुंडों  को काट काट ,
    यह हाहाकार मचाती है ।
    शम्भू बन तीजा नयन खोल ,
    यह तांडव करती जाती है ।
    वंशज दिनकर की  है कविता,
    गंगा जमुना यह सिंधु है ।
    सब धर्मों का सम्मान करे पर,
    अन्तरमन से हिन्दू है ।
    भारत पर संकट आये तो ,
    अब्दुल हमीद हो जाती है ।
    बन भगत सिंह मिट्टी में यह ,
    बंदूकें बोती जाती है ।
    सैनिक संग बैठ मिराजों में,
    जब पी ओ के में जाती है ।
    पैंतालिस के बदले में कविता,
    तीन सौ नर मुंड गिराती है।
    मेरी कविता का शब्द शब्द,
    ह्रदय में ठक कर जाता है ।
    कविता रघुवर का धनुष बाण,
    रत्नाकर भी थर्राता है ।
    जो नहीं मिटायें घोर तिमिर ,
    वह रबि नहीं हो सकता ।
    लेखन तो मेरा ज्वाला है ,
    रति छवि नहीं हो सकता है।
    बलिदानों में श्रृंगार लिखे,
    वह कवि नहीं हो सकता है ।
    इसीलिये कविता मेरी यह,
    आग लगाने वाली है ।
    शत्रु का शोणित पान करे ,
    मेरी कविता मां काली है ।

                   रचयिता
           किशनू झा “तूफान”
             8370036068
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  • वक्त ने सितम क्या ढाया है

    वक्त ने सितम क्या ढाया है

    यह कैसी बेवसी है ,कैसा वक्त,
    अपनी हद में रह कर भी सजा पाई
    चाहा ही क्या था फ़कत दो गज जमीन ,
    वो भी न मिली और महाभारत हो गयी।
    चाहा ही क्या था बस अपना हक जीने को
    राजनीति में द्रोपदी गुनाहगार हो गयी।
    त्याग,सेवा ,फर्ज दायित्व ही तो निभाये
    देखो तो फिर भी सीता बदनाम हो गयी।
    छल बल से नारी हरण ,राजहरण हुआ
    छली सब घर रहे ,सचाई दरदर भटक गयी।
    राधा ने किया समर्पण सर्वस्व अपना
    पटरानी पर वहाँ रुक्मणि बन गयी।
    अंजना की बाइस बरस की आस अधूरी
    दो पल पिया संग ,देश से निकल गयी।
    द्वापर ,त्रेता हो या कलयुग ,वक्त न बदला ।
    हर युग में सच की अर्थी निकाली गयी।
    माँ भारती ने झेला ,कोलंबस क्या आया
    दंशाहरण का ,वर्षों जंजीरों मे जकडी गयी ।
    दैहिक गुलामी से छूटी भी न थी हाए,
    मानसिक गुलामी में बंधी रह गयी।
    हर वक्त सच को पर ही उंगली उठी,
    देखो आज पुलवामा फिर रोया है ।
    किया बचाव स्वयं का जब भूमि ने ,
    जयचंद हर घर में घुस के आया है।

    मनोरमा जैन पाखी
    स्वरचित ,मौलिक
    28/02/2019
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  • माँ सी हो गई हूँ

    माँ सी हो गई हूँ

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    mother their kids
    माँ पर कविता

    माँ सी हो गई हूँ


    जब भी चादर बदलती
    माँ पर झल्ला पड़ती
        ये क्या है माँ?
    सारा सामान तकिए के नीचे
    सिरहाने में,
    कितना समान हटाऊँ
    चादर बिछाने में!
    बिस्तर का एक पूरा कोना
    जैसे हो स्टोर बना,
    माँ उत्तर देती
    बेटा उमर के साथ याददाश्त कमजोर हो गई है
    क्या कहाँ रखा भूल जाती हूँ,
    इसलिए सिरहाने रख लेती हूँ!
    थोड़ी खीझ होती
    पर मैं चुप रहती,
    धार्मिक किताबों के बिखरे पन्ने,
    जपने वाली माला,दवाइयाँ
    सुई-डोरा,उन स्लाइयाँ,
    डॉ. की पर्ची,उनके नम्बर से भरी डायरी,
    चश्मे का खोल,ईसब घोल,
    पिताजी की तस्वीर,
    हाय रे माँ की जागीर!
    कुछ मुड़े-तुड़े नोट,
    अखबारों की कतरने,
    चमत्कारी भभूति की पुड़िया
    और तो और,
    ब्याही गई नवासी की
    बचपन की गुड़िया!
    आज मैं भी
    माँ सी हो गई हूँ!
    उनकी बूढ़ी,नीली सी आँखें
    मेरी आँखों में समाई है,
    भले ही चेहरे की झुर्रियाँ,
    मेरी सूरत पर उतर नहीं पाई हैं
    बालों की चांदी पर,
    मेहंदी रंग लाई है,
    मोटे फ्रेम के गोल चश्में की जगह,
    पावरफुल लेंस है,
    चलती नहीं लाठी टेककर
    मगर घुटने नहीं दर्द से बेअसर!
    सिरहाने रखे सामान थोड़े कम हैं,
    ढेरों दवाईयाँ नहीं,
    सुई -डोरा,ऊन स्लाइयाँ नहीं,
    नहीं दर्दनिवारक तेल
    स्प्रे है या जैल!
    बाकी सारे सामानों की जगह
    सिर्फ एक मोबाइल है,
    समय बदल गया है न
    नई-नई टेक्नोलॉजी आई है!
    नहीं रखती माँ की तरह
    चमत्कारी भभूति की पुड़िया,
    लेकिन है ब्याही बेटी के
    बचपन की गुड़िया!
    आईना देखूँ तो सोचूँ
    कैसी हो गई हूँ मैं,
    क्या सचमुच
    माँ सी हो गई हूँ मैं…..
    —डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    अम्बिकापुर,(छ. ग.)
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  • सड़क पर कविता

    सड़क पर कविता

    अजगर के जीभ सी ये सड़क
    सड़क नहीं है साहब….
    चीरघर है।
    हर दस मिनट में यहाँ
    होती हैं हलाल…
    इन द्रुतगामी वाहनों से।
    रोज होते सड़क हादसों से
    लीजिए सबक
    जरा सावधानी से
    कीजिए सफर
    क्या तुम्हें नहीं है
    जिन्दगी से प्यार
    नहीं ,तो उनके बारे में सोचिए
    जो मानते हैं आपको संसार।
    जरा संभलकर चलिए हुजूर
    सड़कों पर गाड़ियाँ नहीं
    यमराज गस्त लगाते हैं
    यहाँ रिपोर्ट दर्ज नहीं होता
    सीधे एनकाउन्टर किये जाते हैं।
    जी हाँ, ये सड़क है
    रील लाईफ नहीं
    रीयल लाईफ है
    समझदारी ही काम आती है
    होते ही थोड़ी सी चूक
    हीरोगिरी निकल जाती है।
    ओ जोशीले नवजवां!
    रफ्तार कम कर लो भाई
    जिन्दगी से न करो बेवफाई
    बजनी बाकी है अभी सहनाई
    समझो,सड़क का विधान।
    स्कूटर है,हेलीकॉपटर नहीं
    सड़क पर हो,आसमां पे नहीं
    वाहन चलाओ, न उड़ाओ
    स्वयं बचो और सबको बचाओ।
    ✍ श्रीमती सुकमोती चौहान
    ग्रा/पो -बिछिया(सा),तह- बसना,
    जि – महासमुन्द,छ.ग.493558
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