नाराज़- डॉ० ऋचा शर्मा
माँ बेटे से अक्सर रहती है नाराज़
नहीं करता बेटा कोई भी काज
यही समझाना चाहती है माँ
जीवन का गहरा राज़
बस इसीलिए रहती है बेचारी नाराज़
बेटे को पहनाना चाहती है
कामयाबी का ताज़
समाज को मुँह दिखा पाऊँ
रख ले बेटा इतनी लाज
मैं हार चुकी, थक चुकी हूँ
सुन ले एक बात मेरी आज
सबकी तरह कर पाऊँ
मैं भी तुझ पर नाज
जगा ले भीतर पढ़ने की चाह
तभी मिलेगी सही व नेक राह
परीक्षा है तेरी बोर्ड की इसी माह
केवल किताबों में ही रख तू निगाह
अच्छा इंसान बनेगा तभी कर पाऊँगी
अपने जीते जी तेरा ब्याह
मैं विधवा और तू मेरी इकलोती संतान
अब न सता आखिर कहना मान जा शैतान
कठिन परिश्रम से बन जा
अपने बाबू जी के समान धनवान
न जाने कब बुलावा आ जाए
और बुला ले घर अपने भगवान्
मैं तुझसे पल भर के लिए ही हाेती हूँ नाराज़
बदल डाल बस तू अपने अंदाज़
चल अब जल्दी से कर वादा
आज से, अभी से बदलेगा तू अपना इरादा
बहुत नुकसान भुगत चुकी हूँ
अब तो करदे माँ का फ़ायदा
यही है जीने का सही कायदा
चल जल्दी से कर वायदा।
नाम : डॉ० ऋचा शर्मा
पता : करनाल (हरियाणा)