Category: हिंदी कविता

  • नाराज़- डॉ० ऋचा शर्मा

    नाराज़- डॉ० ऋचा शर्मा

    माँ बेटे से अक्सर रहती है नाराज़
    नहीं करता बेटा कोई भी काज
    यही समझाना चाहती है माँ
    जीवन का गहरा राज़
    बस इसीलिए रहती है बेचारी नाराज़
    बेटे को पहनाना चाहती है
    कामयाबी का ताज़
    समाज को मुँह दिखा पाऊँ
    रख ले बेटा इतनी लाज
    मैं हार चुकी, थक चुकी हूँ
    सुन ले एक बात मेरी आज
    सबकी तरह कर पाऊँ
    मैं भी तुझ पर नाज
    जगा ले भीतर पढ़ने की चाह
    तभी मिलेगी सही व नेक राह
    परीक्षा है तेरी बोर्ड की इसी माह
    केवल किताबों में ही रख तू निगाह
    अच्छा इंसान बनेगा तभी कर पाऊँगी
    अपने जीते जी तेरा ब्याह
    मैं विधवा और तू मेरी इकलोती संतान
    अब न सता आखिर कहना मान जा शैतान
    कठिन परिश्रम से बन जा
    अपने बाबू जी के समान धनवान
    न जाने कब बुलावा आ जाए
    और बुला ले घर अपने भगवान्
    मैं तुझसे पल भर के लिए ही हाेती हूँ नाराज़
    बदल डाल बस तू अपने अंदाज़
    चल अब जल्दी से कर वादा
    आज से, अभी से बदलेगा तू अपना इरादा
    बहुत नुकसान भुगत चुकी हूँ
    अब तो करदे माँ का फ़ायदा
    यही है जीने का सही कायदा
    चल जल्दी से कर वायदा।

    नाम : डॉ० ऋचा शर्मा
    पता : करनाल (हरियाणा)

  • रात ढलती रही

    रात ढलती रही

    रात ढलती रही, दिन निकलते रहे,
    उजली किरणों का अब भी इंतजार है।
    दर्द पलता रहा, दिल के कोने में कहीं ,
    लब पर ख़ामोशियों का इजहार है।
    जीवन का अर्थ इतना सरल तो नहीं,
    कि सूत्र से सवाल हल हो गया।
    एक कदम ही चले थे चुपके से हम,
    सारे शहर में कोलाहल हो गया।
    संवादों का अंतहीन सिलसिला,
    शब्द -बाणों की भरमार है।
    दर्द—–
    जिंदगी का भरोसा हम कैसे करें,
    वक्त इतना मोहलत तो देता नहीं।
    चाँदनी की छटा बिखरे मावस पे कभी,
    रात में सूरज तोनिकलता नहीं ।
    रौशन- सितारों पर पहरा हुआ,
    नजर आता तो बस अंधकार है।
    दर्द ——–
    दुनियां के मुखौटों  की बातें छोड़ो,
    हर रिश्ता है पैबन्द लगा हुआ।
    शब्द -जाल हो गये हैं, जीने के ढंग,
    जिंदगी अर्थ कोहरा- कोहरा हुआ ।
    खुशियाँ दुल्हन सी शर्माती रही,
    दर्द जिंदगी का दावेदार है ।
    दर्द—–
    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • बसंत तुम आए क्यों

    बसंत तुम आए क्यों ?

    मन में प्रेम जगाये क्यों?
    बसंत तुम आए क्यों ?

    सुगंधो से भरी
    सभी आम्र मंजरी
    कोयल कूकती फिरे
    इत्ती है बावरी
    सबके ह्रदय में हूक उठाने

    मन में प्रेम जगाये क्यों?
    बसंत तुम आए क्यों ?

    हरी पत्तियाँ बनी तरुणी
    आलिंगन करती लताओं का
    अनुरागी बन भंवर
    कलियों से जा मिला
    सकुचाती हैं हवाएँ
    दिलों को एहसास दिलाने

    मन में प्रेम जगाये क्यों?
    बसंत तुम आए क्यों ?

    सरसों के फूल खिले
    बासन्ती हो गई उपवन
    सूर्य को दे नेह निमंत्रण
    आलिंगन प्रेम पाश का
    मन में प्रेम सुधा बरसाने

    मन में प्रेम जगाये क्यों?
    बसंत तुम आए क्यों ?
    अनिता मंदिलवार “सपना”
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

  • परदेसी से प्रीत न करना

    परदेसी से प्रीत न करना

    तुमसे विलग   हुए तो कैसे
    कैसे दिवस निकालेंगे।
    दीप    जलाये   हैं हमने ही
    दीपक आप बुझा लेंगे।


    तन्हाई में   जब   जब यारा
    याद तुम्हारी आयेगी।
    परदेसी  से   प्रीत  न करना
    दिल को यों समझा लेंगे।।


    शायद सदमा झेल न पाओ
    तुम मेरी बर्बादी का।
    अपने अंदर  ही अपने हम
    सारे हाल छुपा लेंगे।।
    झूँठा   है ये  प्यार मुहब्बत
    झूँठे हैं सब अफ़साने।।

    तेरा दिल  बहलाने को हम
    अपना खून बहा लेंगे।।
    “करुण”दुआ  मांगे  तेरा ये
    आँगन खुशियों से महके।
    तेरे हर     दर्दोग़म  को हम
    अपना मीत बना लेंगे।

    जयपाल प्रखर करुण

  • माधव श्री कृष्ण पर कविता

    माधव श्री कृष्ण पर कविता

    माधव श्री कृष्ण पर कविता

    shri Krishna
    Shri Krishna

    सबके दिल मे रहने वाला,
    माखन मिश्री खाने वाला।
    गाय चराते फिरते वन मे,
    सुंदर तान सुनाने वाला ।
    खेल दिखाते सुंदर केशव,
    सबके मन को भाने वाला।
    भाये ना केशव मुझको अब,
       हर  दस्तूर जमाने वाला।
    ध्यान धरे है माधव सबकी,
    दुख सबके है हरने वाला।
    क्यों ऐसी बातें करता हैं ,
    हिंसा को भड़काने वाला।


         जागृति मिश्रा रानी