हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

bachpan ki yaadein

बच्चे मन के सच्चे,बच्चो को कोन पसंद नहीं करता सभी उम्र के लोग कभी न कभी बच्चे ज़रूर थे बच्चो से तो सभी को लगव तो होता ही है चाहे वह पशु हो या मनुष्य सभी को अपना बचपन ययद तो आता ही है आज हम बच्चो पर ही आधारित कविता पढेंगे –

school
साक्षरता का अर्थ

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

जब दाँत हमारे कच्चे थे

दिल के तब भी सच्चे थे

आजादी से रहते थे

बिन सोचे बातें कहते थे

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

सुबह मुर्गे की बांग थी

सुहावनी वो सांझ थी

ठंडी बर्फ का गोला था

वो बचपन कितना भोला था

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

इमली की खट्टी गोली थी

कितनी प्यारी बोली थी

संग खेल खिलौने झोली थी

बच्चों की न्यारी टोली थी

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

गलियों में दौड़ लगाते थे

दिन भर शोर मचाते थे

झट पेड़ों पर चढ़ जाते थे

ज़िद अपनी ही मनवाते थे

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

दिन छोटे से रह जाते थे

रातें लम्बी हो जाती थीं

पापा संग घूमने जाते थे

माँ लोरी गा सुलाती थीं

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

ना जिम्मेदारी से भागे थे

ना सुने किसी के ताने थे

ना चिंताओं ने घेरा था

ना अभिलाषाओं का डेरा था

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

त्योहारों का रहता मेला था

मेहमानों का रहता फेरा था

मन में खुशियों का पहरा था

फिर बचपन क्यूँ ना ठहरा था

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

बचपन में जो बात थी

वो अब ना रही

वो दिन ना रहे

वो रात ना रही

हम बच्चे थे…………तब अच्छे थे

प्रिया शर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *